महाराष्ट्र(विश्व परिवार) | औरंगाबाद नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल. साधना शिरोमणि अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ससंघ निरंतर विहार करते हुए महाराष्ट्र कर्नाटक से विहार करते हुए आज प्रातः आंध्र प्रदेश की भूमि से बिहार करते हुए तेलंगाना की भूमि में प्रवेश किया तेलंगाना गुरु भक्तों में खुशी की लहर चातुर्मास होगा कुलचाराम. ईस अवसर पर आचार्य प्रसन्न सागर महाराज ने प्रवचन मे कहाँ की आज का कड़वा सच तो यही है कि लोग धनपतियों को खूब इज्जत सम्मान देते हैं..
चाहे उनका चरित्र, इमान, इरादा और जीवन व्यसनों से क्यों ना परिपूर्ण हो..!
पापी, दुष्ट, अधर्म, दुष्कर्म करने वाले, मन्दिर में सम्मान पाने लगे हैं।
धर्म के ठेकेदार अब मधुशाला जाने लगे हैं।
काक अब कोयल की मज़ाक उड़ाने लगे हैं।
यदि ऐसा चलता रहा तो हमें, हमारे पुरखें कभी क्षमा नहीं कर पायेंगे,, और आने वाली पीढ़ियां भी कभी माफ नहीं कर पायेगी। जैनी भाईयों — अपनी पहचान, अपनी आन, बान, शान की मुस्तैदी से रक्षा करो। आदर्शों और बुजुर्गों से जो विरासत में मिला है, उसकी सार-सम्हाल करो तथा उसे और अधिक समृद्ध करके आने वाली पीढ़ियों को सौंप दो।
जैन समाज एक अहिंसक, शाकाहारी और शान्ति प्रिय समाज है। पुरी दुनिया में हमारी यही पहचान है और यह पहचान हमें दो चार दिन में नहीं मिली बाबू। इस पहचान को बनाने में हमने सदियों तपस्याएं और साधनाएं की है, तब कहीं जाकर हम इस मुकाम को हासिल कर पाये हैं। आज हमारी पहचान को ही हमारे अपनों से खतरा पैदा हो गया है। हमारे वजूद पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अनूप मण्डल जैसे और कितने मण्डल कुकुर मुत्तो की तरह डर से शांत बैठे हैं। अब हमें इस खतरे से आँख नहीं चुराना है, बल्कि इसका सख्ती से मुकाबला करना है। खतरा सामने आया हुआ देख कर आँख बन्द करके बैठ जाना और यह सोचना कि खतरा टल गया, तो ना समझी और नादानी की पराकाष्ठा होगी।और अभी हमारे समाज में यही हो रहा है। खतरा सिर पर है और हम पंथवाद, सन्तवाद, ग्रन्थ वाद एवं समाज वाद के मकड़जाल में उलझते जा रहे हैं। यही कारणों से हमारी नव पीढ़ी धर्म से गुमराह हो रही है, जैनत्व के मूल संस्कारों को समय के अनुसार खत्म करते जा रहे हैं।
समझदारों के लिये इशारा ही काफी है…!!! पियुष कासलीवाल नरेंद्र अजमेरा औरंगाबाद