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अन्तर्मना उवाच

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(विश्व परिवार)-जीते जी रिश्तों में आग और मरने के बाद आग,
अपने ही लगाते हैं..
इसलिए जीते जी जलना छोड़ दो,
अन्यथः अपने ही जलायेंगे..!

जैसा तुम जीना चाहते हो, वैसा ही सब जीना चाहते हैं।

जैसे तुम सुख पाना चाहते हो, वैसै ही सब सुख पाना चाहते हैं।

जो तुम अपने लिए और अपने परिवार के लिए चाहते हो, वो तुम सबके लिए चाहो।

यदि आप नहीं चाहते हैं कि कोई मेरा बुरा करे, नुकसान करे, अपमान करे, तो आप भी दूसरों के प्रति ऐसा ना करें, और

जो आप अपने प्रति चाहते हैं कि सब मेरे प्रति प्रेम, सम्मान, सुख, शान्ति, आनंद का व्यवहार करे, तो आप भी आज से ऐसा जीना शुरू कर दें।

जो आप अपने प्रति चाहते हैं, वैसा दूसरों के प्रति व्यवहार करना शुरू कर दें,,

क्योंकि जो जीने की चाह आपके भीतर छुपी है,, वैसी चाह पड़ोसी के भीतर भी छुपी है।

जो सम्वेदना आपके भीतर है, वैसी सम्वेदना दूसरों के पास भी जीने की है।

दोनों की सम्वेदनाओं का विस्तार एक ही है अच्छे पन से जीने का।

कहने का अर्थ है – मेरे भीतर और आपके भीतर जो चेतना है, वह एक ही चेतना का फैलाव है। जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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