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आचार्य विद्यासागर महाराज ने स्वयं को कठिन तप में लगा दिया था, इसलिए दोबारा नहीं लौटे जन्म और दीक्षा स्थल

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HIGHLIGHTS

  • आचार्य विद्यासागर महाराज दोबारा नहीं लौटे जन्म और दीक्षा स्थल
  • 25 फरवरी को भारतवर्ष के जैन समाज एक साथ देगा विनयांजलि

राजनांदगांव  (विश्व परिवार)। आचार्य विद्यासागर महाराज ने शुरू से स्वयं को कठिन तप में लगा दिया था। यहीं कारण हैं वे संयम के पथ पर सफर शुरू करने के बाद दोबारा अपने जन्म और दीक्षा स्थली नहीं लौटे। आचार्य के अनुयायियों के अनुसार ऐसा इस इस कारण किया गया ताकि जन्म और दीक्षा स्थल से लगाव व मोह न हो जाए। देह त्याग के बाद आचार्य के शिष्य उनके वैराग्य जीवन की गाथाएं सुना रहे हैं। इस बीच 25 फरवरी को पूरे भारतवर्ष के जैन समाज एक साथ विनयांजलि देगा।

विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनीं। विद्यासागर को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी, जो आचार्य शांतिसागर के शिष्य थे। आचार्य विद्यासागर को 22 नवंबर 1972 में आचार्य ज्ञानसागर द्वारा आचार्य पद दिया गया था। चंद्रगिरी तीर्थ के ट्रस्टी सूर्यकांत जैन ने बताया कि आचार्य बनने के बाद विद्यासागर महाराज लगातार कठिन तप कर संयम मार्ग पर चलते रहे। भारत के अलग-अलग राज्यों में विहार किए, लेकिन दोबारा अपने जन्म और दीक्षा स्थली नहीं गए।

छतरपुर में पहली दीक्षा भाई को दी थी

बता दें कि विद्यासागर महाराज आचार्य बनने के बाद पहली दीक्षा 1980 को छतरपुर में मुनि समय सागर महाराज को दी थी। इसके बाद सागर जिले में योग सागर और नियम सागर महाराज को दीक्षित किया। समय सागर और योग सागर उनके गृहस्थ जीवन के भाई हैं। विद्यासागर महाराज ने मुनि समय सागर महाराज को उत्तराधिकार बनाया है। मुनि समय सागर महाराज गुरुवार को जैन संतों के साथ चंद्रगिरी तीर्थ स्थल पहुंचेंगे। छह फरवरी को आचार्य विद्यासागर महाराज ने मुनि योग सागर से चर्चा करने के बाद आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने मुनि समय सागर महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा की थी। मुनि समय सागर महाराज के चंद्रगिरी तीर्थ पहुंचने के बाद विधिवत उन्हें आचार्य की गद्दी सौंपी जाएगी।

25 फरवरी को एक साथ देंगे विनयांजलि

चंद्रगिरी तीर्थ के ट्रस्टी सूर्यकांत जैन ने बताया कि आचार्य विद्यासागर महाराज को 25 फरवरी को दोपहर एक बजे पूरे भारत वर्ष के जैन समाज के लोग विनयांजलि देंगे। इसके लिए मुनि समय सागर महाराज ने निर्देश दे दिए हैं। गुरुवार को मुनि समय सागर महाराज जैन संतों के साथ चंद्रगिरी तीर्थ पहुंचेंगे। मुनि समय सागर महाराज के पहुंचने के बाद ही आगे के कार्यक्रम तय किए जाएंगे। चंद्रगिरी तीर्थ में अलग-अलग राज्यों के जैन संतों के साथ अनुयायी पहुंच रहे हैं।

आचार्य विद्यासागर महाराज ने की थी परिकल्पना

आचार्य विद्यासागर महाराज का डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ स्थल से विशेष लगाव था। पहली बार डोंगरगढ़ पहुंचे आचार्य विद्यासागर महाराज ने स्थानीय जैन समुदाय के समक्ष चंद्रप्रभु के तीर्थ स्थल के रूप में एक मंदिर निर्माण की कल्पना की थी। करीब सौ करोड़ की लागत से चंंद्रगिरी तीर्थ में चंद्रप्रभु के मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। मंदिर का निर्माण भी विद्यासागर महाराज के देखरेख में तेजगति से चल रही थी।

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