औरंगाबाद (विश्व परिवार)। भारत गौरव साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का निरंतर पदविहार करते लैंको हिल्स,गुरुभक्त मनोज चौधरी नानकरामगुडा, हैदराबाद मै हुआ भव्य मंगल आगमन हुआ ईस अवसर पर आचार्य प्रसन्न सागर महाराज नै कहाॅ की संसार से हमारे सम्बन्ध कैसे होने चाहिए-?
हमने कहा — हम सब यात्री हैं, हमारे सम्बन्ध नदी नाव जैसे होने चाहिये..!
देर सवेर तो बिछड़ना ही है। हर मिलन के क्षणों में विदाई को ना भूलें।किसी से भी मिलो तो ध्यान रखना, कल बिछड़ना भी है। किसी से हाथ मिलाओ तो यह मत भूलो कि कल उसे अलविदा कहना है। फूल खिले तो, खिले फूल में मुरझाये फूल को देख लेना। परन्तु आज कल रिश्तों में रस नहीं बचा। जरा सी एक गलत फहमी, अच्छे-खासे रिश्तों को भी तोड़ देती है। अब आप ही सोचिये–? वो रिश्ता अच्छा कैसे हुआ, जो गलत फहमी से टूट जाये।इसका मतलब हुआ कि वो गलती खोज रहा था रिश्ता तोड़ने के लिये–? यदि रिश्ता मजबूत होता या भावनात्मक होता, तो हजारों गलत फहमीयों से भी नहीं टूटता।
इसलिए —
आज कल के कुछ रिश्तों में अनजान रहना ही अच्छा है..
कभी कभी सब कुछ जान लेना भी तकलीफ दायक हो जाता है…!!!
– नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल