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इंदौर शहर में 15 दिनों तक मनता था होली का उत्सव

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  • मध्य प्रदेश की होती है तो इंदौर में भी होली का पर्व कुछ खास रंगत लिए हुए नजर आता है।
  • होलकरकाल में राजवाड़े पर राजघराने की होली जलने पर किला मैदान से तोपों की सलामी दी जाती थी।
  • राजवाड़ा पर होलिका दहन के बाद इंपीरियल ब्रिटिश बैंड और होलकरी बैंड राजवाड़ा की परिक्रमा कर सलामी देते थे।

 इंदौर(विश्व परिवार)–  हर पर्व अपने आप में खास है और कुछ शहरों के उस पर्व को अलहदा अंदाज में मनाकर उसे और भी खास बना दिया है। ऐसा ही एक पर्व है होली। ब्रज की होली के साथ वाराणसी की होली भी प्रसिद्ध है और जब बात मध्य प्रदेश की होती है तो इंदौर में भी होली का पर्व कुछ खास रंगत लिए हुए नजर आता है। तभी तो यहां निकलने वाली गैर का आनंद लेने अन्य शहरों से भी लोग आते हैं।

इतिहासकार शर्वाणी ने बताया कि शहर में होली पर्व को खास बनाने की कोशिश कुछ वर्ष पहले नहीं बल्कि रियासतकाल में ही शुरू हो गई थी। होलकरकाल में राजवाड़े पर राजघराने की होली जलने पर किला मैदान से तोपों की सलामी दी जाती थी। यह सलामी शहरभर को सूचित करती थी कि अब वे अपनी होली जला सकते हैं। होली के जश्न के लिए तब 50 सेर गुलाबजल, 200 ग्राम इत्र, 200 ग्राम सेंट और 50 सेल केवड़े के जल का उपयोग कर राजवाड़ा धोया जाता था। 20 हजार पान के बीड़े, सौ मन मिठाई, 50 मन हार-फूल से पूजन होता है

वीरगति को प्राप्त हुए बलिदानियों को पर्व पर किया जाता था नमन

राजवाड़ा पर होलिका दहन के बाद इंपीरियल ब्रिटिश बैंड और होलकरी बैंड राजवाड़ा की परिक्रमा कर सलामी देते थे। इंदौर में फाग महोत्सव 15 दिन तक मनाया जाता था। होलकर राज परिवार युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए बलिदानियों को भी इस पर्व पर नमन करता था। इसके तहत योद्धा हाथ में ढाल-तलवार लिए राजवाड़ा के सामने से गुजरते थे और उनकी पूजा होलकर राजपरिवार के पुरोहित किया करते थे। अब बात राजाओं की करें तो हर शासक के शासनकाल में होली का अलग ही रंग-ढंग नजर आया।

शिवाजीराव होलकर को पहलवानी का बहुत शौक था इसलिए उन्होंने होली पर कुश्ती कराने की परंपरा शुरू की। यह दंगल कई दिनों तक जारी रहता था। वक्त बदला और जब तुकोजीराव होलकर द्वितीय गद्दी पर बैठे तो कुश्ती कम और संगीत की सभा बढ़ने लगी। इसके पीछे भी राजा का रूझान था। चूंकि तुकोजीराव कला-संस्कृति के शौकीन थे इसलिए संगीत की सभाएं बहुतायत में हुआ करती थी। शहर में जब रंगपंचमी की गैर निकलने का क्रम शुरू हुआ तो होलकर शासकों ने उसमें भी रुचि दिखाई।
रंग की बौछार से लोगों को रंगने के पीछे यशवंतराव होलकर द्वितीय की सोच रही। जब यशवंतराव द्वितीय छोटे थे तब उनके मन में यह विचार आया कि फायरब्रिगेड वाहन की मदद से रंग घुले पानी की बौछार क्यों नहीं कराई जा सकती। इस पर सहमति बनी और गैर को नया रूप मिला। इसके बाद टैंकर में रंग घोलकर गैर में शामिल होने वालों को रंगा जाने लगा। सराफा बाजार और कपड़ा बाजार में भी होली का उत्सव देखने लायक होता था। वहां हुकुमचंद सेठ के निर्देशन में व्यापारी यह पर्व मनाने थे।

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