सागर(विश्व परिवार) – अनादिकाल से सूरज प्रतिदिन नियत समय पर अपनी ऊर्जा व ऊष्मा से हमें भरता है और अंधेरा खत्म करके दुनिया में उजाला लाता है। कहते हैं बाँटने पर भी सूरज की ऊर्जा कम नहीं होती । बस ऐसे ही सूरज हैं, आचार्य विद्यासागर जी। जिनका जीवन काल हमारे लिये सूरज की सी ऊर्जा बिखेरता रहता था। हमें बिन मेहनत बड़ी ही सहजता से ज्ञान की विद्या का उजाला मिलता था।
खगोलविद् बताते है कि सितारे भी अपने सूरज की तरह विशाल व ऊष्मा से भरे हुये रहते हैं।
लेकिन वे हमसे इतनी दूर रहते हैं कि जब हमारे सामने अंधेरा आता है, तो आसमान की ओर नजर उठाने पर ही उनकी झिलमिलाती दिलखुश चमक हमें नजर आती है। आचार्य विद्यासागर जी अब एक ऐसे ही सितारा बन गये हैं, जिनकी खुशनुमा रौशनी हमें अंधेरे की बीच सर उठाने का श्रम करने पर ही मिल सकेगी।
हमारा एक सूरज बस अब एक सितारा बन गया है। जिन्दगी जीने का अंदाज हमें दिखा व सिखा गया। जिन्दा रहने का तरीका और मौत का सफर कैसे सहजता से किया जाता है ? इस सवाल का जबाब खुद ही दिखा-सिखा गया और मरने की कला एवं भयहीन मृत्यु को अपने आगोश में समाने का बेमिसाल हुनर भी हमको दिखा-सिखा गया।
अरबों खरबों की दौलत पास होना समृद्धी व शान्ति दायक हो ऐसा जरूरी नहीं। अपेक्षाकृत एक फकीर के पास शान्ति व सुकून का खजाना बेहद हो सकता है। गुरूवर से हमने यह भी सीखा कि हमारे पास जो है, उसमें ही संतुष्ट रहना ही बेहतर जीवन यात्रा का प्रतीक है। हम इस जहाँ में पाने नहीं खोने आये हैं। हर अहितकारी सोच-समझ को खोना ही बेहतर रास्ता है।
संतोष में ही परम सुख है। हमेशा खुश रहना चाहिए, ये सोचकर कि दुनिया में हम से भी ज्यादा परेशान और लोग भी हैं। जो काम खुद को सुकून न दे वो कभी नहीं करना चाहिये।
मौत सिर्फ जिस्म छीन सकती है। गुरूवर कहीं नहीं गये
हमारे दिलों में अमर हैं। हर पल अपने अँदर झाँकते रहिये। आत्मावलोकन करते रहें। गुरू जी का भौतिक शरीर अब हमारे सामने भले ही न हो पर उनकी बताई राह पर चलकर हम बेहतर जीवन जी सकते हैं। किसी शायर ने कहा है:-
सारा आलम ’गौस-बर-आवाज‘ है………….
आज जाने किन हाथों में दिल का साज है,
छुप गया वो साजे हस्ती छेड़ के
अब तो बस आवाज ही आवाज है।।
आचार्य गुरूवर के इन अल्फाजों के अनुरूप ही, इस शाब्दिक अभिव्यक्ति को समझने की गुजारिश है:- ’’ शब्द अर्थ नहीं वह तो अर्थ की ओर ले जाने वाला संकेत मात्र है’’।