Home रायपुर कर्म युग के सनातन पुरोधा थे तीर्थंकर ऋषभदेव

कर्म युग के सनातन पुरोधा थे तीर्थंकर ऋषभदेव

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रायपुर(विश्व परिवार)– चैत्र कृष्ण नवमी के दिन फाफाडीह स्थित दिगंबर जैन मंदिर में भगवान ऋषभदेव का जन्मोत्सव पूर्ण उल्लास के साथ मनाया गया। श्री जी के अभिषेक के पश्चात भगवान आदिनाथ के जन्म एवं तप कल्याण की पूजा की गई।
इस अवसर पर एक प्रेस नोट जारी कर श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कैलाश रारा ने बताया कि इस युग में जैनों के 24 तीर्थंकरों में ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर हुए है। वे स्वामभुव मनु की पांचवीं पीढ़ी में से थे। मनु के प्रियव्रत, प्रियव्रत के अगग्नीध्र,अगग्नीध्र के नाभि तथा नाभि के ऋषभदेव हुए। वेदों की 141 रिचाओ में ऋषभदेव का नाम आदरपूर्वक आता है। जब कल्पवृक्ष समाप्त हो रहे थे तथा लोगों के सामने भोजन की समस्या उत्पन्न होने लगी तब अयोध्या नरेश ऋषभदेव ने प्रजा जनों को असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य एवं शिल्प इन 6 विद्याओ का उपदेश देकर लोगों को आजीविका के योग्य बनाया। अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि एवं सुंदरी को अंकों का ज्ञान कराकर जगत में साहित्य का संचार किया।
एक बार राज दरबार में नीलांजना नामक नृत्यांगना का नृत्य देखते देखते महाराज ऋषभदेव को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उन्होंने अपना राज पाट अपने प्रतापी पुत्र चक्रवर्ती भरत को प्रदान कर कैलाश पर्वत पर जाकर तपस्या की तथा वही से निर्वाण को प्राप्त किया।
ऋषभ पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम भारत विख्यात हुआ। सारे वेद पुराण एवं सनातन साहित्य इस बात का प्रमाण है। अयोध्या में ऋषभदेव के अतिरिक्त चार अन्य जैन तीर्थंकर भी हुए हैं जिनमे दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ, चौथे संभवनाथ, पांचवें अभिनंदननाथ तथा 14वें अनंतनाथ हुए। जैन पुराणो में उल्लेख आता है कि भविष्य में सभी जैन तीर्थंकर अयोध्या नगरी से जन्म लेंगे तथा सम्मेद शिखर से निर्वाण को प्राप्त करेंगे।

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