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किए गए कार्यों से कर्मो का आश्रव बंध, संवर और निर्जरा होती हैं-मुनि श्री प्रभव सागर जी

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बांसवाड़ा(विश्व परिवार)– पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी बाहुबली कालोनी बांसवाड़ा में सहित विराजित हैं आज नगर के मंदिरों के संघ सहित दर्शन किए। समाज प्रवक्ता महेंद्र अनुसार धर्म सभा में प्रवचन में मुनि श्री प्रभव सागर जी ने प्रवचन में बताया कि द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव परिणाम अनुसार पुण्य और पाप की प्राप्ति होती है। वर्तमान में श्रेष्ठ मनुष्य भव ,जैन कुल पुण्य से मिला है अब जो कार्य करेंगे उससे कर्मों का आश्रव , बंध संवर और निर्जरा होगी । पिछले भव के कर्मों के उदय में आने से उसका फल पुण्य या पाप मिलता है इसलिए परिणाम और भाव अच्छे रखकर संत समागम करें। मुनि श्री मुमुक्षु सागर जी ने प्रवचन में बताया कि जीवन अनमोल है इसे व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए। भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि मैं दुखी हूं, शांति और समता मुझे नहीं मिली है। सभी को यह चिंतन करना चाहिए कि वह क्यों दुखी हैं असार संसार में सभी जन्म जरा रोग से दुखी हैं कोई भी सुखी नहीं है समाधान तभी मिलेगा जब आप अनमोल धर्म को धारण करेंगे ।धर्म धारण करने से जीवन सुखी होता है मनुष्य राग द्वेष भोग कषाय पाप और कर्मो कारण दुखी है । संयम और धर्म धारण करने से पुण्य रूपी संपदा मिलती है ।

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