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किसानों को समृद्ध और सशक्त बनाने उद्यानिकी और पशुपालन से होगा जोड़ना

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  • आधुनिक खेती, फूड प्रोसेसिंग प्लांट को भी बढ़ावा देने की जरूरत

रायपुर(विश्व परिवार)- छत्‍तीसगढ़ को मध्य भारत का धान का कटोरा कहा जाता है। यहां का मुख्य फसल धान है। इसके अतिरिक्त मक्का, कोदो-कुटकी, बाजरा, तुअर, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी समेत अन्य उपज के उत्पादन में वृद्धि भी हो रही है। सिंचाई और बिजली की सुविधा के कृषि क्षेत्र को विस्तार दिया है, लेकिन किसानों को समृद्ध और सशक्त बनाने के लिए बहुवैकल्पिक फसलों के साथ नियमित आमदनी के स्रोत से जोड़ने की दिशा में काम करने की जरूरत है। इसके लिए उन्हें परंपरागत कृषि के साथ उद्यानिकी और पशुपालन से जोड़ना होगा।

प्रदेश में न तो खाद्य प्रसंस्करण की सुविधा का विस्तार हो पाया है और न ही पशुपालन की ओर किसान आकर्षित हुए हैं। प्रदेश में उद्यानिकी, पशुपालन और मत्स्य पालन किसानों के लिए बड़ा लाभ कमाने का माध्यम बन सकता है। उद्यानिकी फसलें आम, केला, अमरूद तथा अन्य फलों और विभिन्न प्रकार की सब्जियों को बढ़ाने के लिए यहां की जलवायु उपयुक्त है।

छत्तीसगढ़ में कृषि क्षेत्र का विकास हुआ है, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है। पांच बार कृषि कर्मण पुरस्कार प्रदेश को मिल चुके हैं। अलग कृषि बजट बनाने के साथ जैविक व प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। खेती का क्षेत्र भी बढ़ रहा है। इस वर्ष पूरे प्रदेश में 144.92 लाख टन से अधिक धान की खरीदी हुई। बीते साल की बात की जाए तो 2022-23 में कुल 107.53 लाख टन धान की खरीदी हुई थी। उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ खेती की लागत में भी वृद्धि हुई है। खाद, बीज, खेत तैयार करने के साथ मजदूरी की लागत बढ़ी है, जिसके कारण लाभकारी मूल्य किसानों को नहीं मिल पा रहा है।

बाजार की अनुपलब्धता और प्रसंस्करण की सुविधा का अभाव

राज्य सरकार की ओर से इस बार किसानों से 3,100 रुपये प्रति क्विंटल धान की खरीदी की गई है। हालांकि, किसान इससे भी संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि उन्हें अभी भी लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है। यह तब तक संभव नहीं होगा, जब तक किसान परंपरागत कृषि के साथ-साथ उद्यानिकी और पशु पालन से नहीं जुड़ेंगे। इसके लिए सरकार के स्तर पर प्रयास भी हो रहे हैं पर ये नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं। न तो किसानों को समुचित प्रशिक्षण मिल पा रहा है और न ही बाजार। बिलासपुर, राजनांदगांव, दुर्ग-भिलाई, जगदलपुर समेत अन्य जिलों के किसानों ने केला, अमरूद, टमाटर, मिर्च सहित अन्य फसलों की खेती प्रारंभ की तो उन्हें लाभ भी हुआ। हालांकि, बाजार की अनुपलब्धता और प्रसंस्करण की सुविधा का अभाव बड़ी समस्या है। यही कारण है कि किसान को बिचौलियों के माध्यम से ही उपज को बेचना पड़ता है।

मोटे अनाजों का बढ़े समर्थन मूल्य

प्रदेश में किसान ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कोदो, कुटकी और कुट्टू आदि मोटा अनाज की फसल की खेती होती हैं। लेकिन, समर्थन मूल्य पर्याप्त नही होने की वजह से किसान रूचि नही ले रहे हैं। किसान संगठन से जुड़े नवीन शेष का कहना है कि ये फसलें आम तौर पर सीमांत और असिंचित भूमि पर उगाई जाती हैं, इसलिए इनकी उपज स्थायी खेती और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करती है। राज्य सरकार को मोटे अनाज का समर्थन मूल्य बढ़ाने तथा निजी उद्यमियों को बाजरा प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

टमाटर की फसल लेकिन नहीं है कोई टोमेटो प्रोसेसिंग प्लांट

दुर्ग जिले में 10,000 एकड़ में किसान टमाटर की खेती करते हैं। इसके तहत 24 करोड़ किलो यानी 2.40 लाख टन टमाटर का उत्पादन होता है। प्रतिवर्ष टमाटर के लेवाल नहीं मिलने के कारण 50,000 टन से ज्यादा टमाटर खराब हो जाता है। लंबे समय से किसानों की मांग थी कि दुर्ग जिले में एक टोमेटो प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जाए। इसके लिए पूर्व भूपेश सरकार ने घोषणा भी की थी, लेकिन अब यह अतीत की बात होकर रह गई है । बताते चलें कि दुर्ग जिले के दुर्ग, नागपुर, धमधा, पाटन में टमाटर का उत्पादन होता है। इस टमाटर को दक्षिण भारत के तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु सहित ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली जैसे प्रदेशों में भेजा जाता है।

दुर्ग जिले के किसान 12 महीने टमाटर की फसल लेते हैं। यहां पर टमाटर के लिए अनुकूल मौसम होने के कारण किसान अधिक उत्पादन तो ले लेते हैं लेकिन उन्हें बारिश और ओलावृष्टि से काफी क्षति भी होती है। ऐसी स्थिति को देखकर ही किसानों की मांग थी कि टमाटर को संरक्षित रखने के लिए उचित व्यवस्था की जाए। जिला फल सब्जी किसान संघ अध्यक्ष रिेतेश टांक का कहना है कि लंबे समय से सरकार से मांग की जाती रही है कि टोमेटो प्रोसेसिंग प्लांट बनाया जाए या फिर जिन प्रदेशों में टमाटर ट्रकों से भेजा जा रहा है वहां पर टोल माफ किया जाए। साथ ही टैक्स में कटौती की जाए।

आय बढ़ाने का बेहतर माध्यम इंटीग्रेटेड फार्मिंग

पूर्व पशु संचालक एसके पाण्डेय का कहना है कि इंटीग्रेटेड फार्मिंग का मतलब समन्वय खेती है। यदि किसी के पास थोड़ा खेत है तो उसमें कई तरह की चीजें कर सकते हैं। जैसे कुछ गाय, बकरी बतख, मुर्गी भी पाल सकते हैं। इनसे दूध ही नहीं बल्कि पनीर, खोवा, दही, जैसी चीज भी बनाकर बेच सकते हैं। इससे फसल के साथ मुनाफा काफी अच्छा होता है। इसके अलावा बकरी का दूध, बायलर मुर्गा व लेयर मुर्गा, ज्वार, बाजरा मिलेट जैसी खेती भी थोड़ी जमीन पर और कम पानी में की जा सकती है। किसान की आमदनी तब तक नहीं बढ़ेगा, जब तक वह परंपरागत खेती के साथ उद्यानिकी और पशुपालन को नहीं अपनाएगा।

यह कहते हैं आंकड़े

40.11 लाख कृषक परिवार छत्तीसगढ़ में

57 लाख हेक्टेयर है कृषि योग्य भूमि

48.08 लाख हेक्टेयर में खरीफ की खेती

18.08 लाख हेक्टेयर में रबी की फसल

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