Home इलाहाबाद गांव, बिन पीपल पेड़

गांव, बिन पीपल पेड़

89
0

इलाहाबाद(विश्व परिवार)– गाँव शब्द सुनते ही मन में सुकून की लहर दौड़ पड़ती हैजहां प्राकृतिक संसाधन के साथ मानव व्यवहार में अपनत्व का मिठास घुली होती है। गाँव जहां खेतखलिहाननदीतालाबअमरैया का छाँवजहां बरगद और पीपल का पेड़ अपनी जटा फैलाए खड़े होते हैं। आप और हममें से किसी ना किसी पीढ़ी ने गाँव से ही अपने जीवन की शुरुवात की होगी। पर आज वैश्वीकरण के इस दौर में रोज़गार के लिए गाँव से शहरो की ओर पलायन बढ़ा है। इन्ही घटना क्रम के बाद आज कई गाँवों में बरगदपीपल के पेड़ नदारद हो रहे हैं। बिना पीपल पेड़ के क्या स्थिति हो सकती है हमे समझना होगा। यह कहानी भी ऐसे ही एक गाँव की हैजहां अब पीपल के वृक्ष नहीं दिखते हैं। बात उस समय की है जब साहिल ने इलाहाबाद में मां गंगा के पवित्र जल पर अपने दादाजी के अस्थि विसर्जन कर वापस आकर अपने गांव के बस्ती से दूर मैदान पर निर्मित बड़े तिरपाल से बंबू नुमा स्थान पर रुका हुआ है।

दादाजी अर्थात सामाजिक रूप से वैभवशाली व्यक्तित्व एक सफल जीवन जी कर 87 साल के उम्र में स्वर्गवास कर गए थे। दादा जी के पीछे उनका बड़ा संयुक्त परिवार है। साहिल का गाँव लगभग 2000 आबादी वाला छोटा सा गांव हैजहां आज भी यह मान्यता है कि अपने कोई भी इष्ट जब स्वर्गवास कर जाता है तब उसके अस्थि का विसर्जन मां गंगा को अर्पण करने से स्वर्ग लोक प्राप्ति के साथ ही मृत आत्मा को शांति प्राप्त होती है। चूँकि साहिल के दादाजी सामाजिक और विकासशील विचारों के थे। उनके स्वर्गवास के पश्चात परिवार के सभी सदस्यों ने इच्छा जताई कि दादा जी के व्यक्तित्व के अनुरूप उनको सम्मानजनक विदाई दिया जाये एवं उनके अस्थि को प्रयागराज में मां गंगा के पावन जल में विसर्जन किया जाए। सभी के इच्छाओं के अनुरूप साहिल अपने पिताजी और अपने बड़े पिताजी तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ इलाहाबाद में माँ गंगा में दादा जी के अस्थि को प्रवाह कर तीन दिन के यात्रा के पश्चात आज वापस अपने गांव लौटा है।

पहले और आज भी गांव में ऐसी मान्यताएं हैं कि गंगा में आप किसी अपनो के अस्थि विसर्जन करके आते हैं तो सीधे घर पर प्रवेश नहीं करते। बल्कि आप बस्ती से कुछ दूरी पर रुकते हैं वहीं पर आप भोजनपानी करते हैं। उसके बाद आपके घर के सदस्यगांवसमाज के लोग आपको लेने जाते हैं। कहते हैं कि गंगा में अस्थि विसर्जन के लिए गए हुए व्यक्ति के साथ में वहां से कई देवतुल्य शक्ति साथ में वापस गाँव आती हैं। देव तुल्य शक्ति जो हमारे पूर्वज ही होते हैं। इलाहाबाद में पिंडदान पूजा के लिए पांडा होते हैं जिनके पास आज भी हमारे कई पीढ़ी की जानकारी संरक्षित है। आप अपने पूर्वजों के बारे में उन पांडों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं वही से पूर्वजों की देवतुल्य आत्माएँ साथ आती ऐसी मान्यताएँ हैं। माँ गंगा से साथ में गाँव आये हुए शक्तियों को पूजा अर्चना करके ससम्मान पुनः देवलोक भेजा जाता है। ऐसी मान्यताएं प्रचलित में है और इस मान्यता का पालन करने के लिए सदस्यों को बस्ती से दूर मैदान पर रोकने की परंपरा रही है। तब घर से खीर या फिर अन्य प्रसाद बनाकर पूरे समाज परिवार रिश्तेदार के साथ भजन कीर्तन करते हुए वापस घर पर प्रवेश कराया जाता है। पहले जब वन संपदा अधिक और गांव पर मकान कम हुआ करते थे तो गांव को बड़ेबड़े वृक्षों से आच्छंदित पाया जाता था। साहिल के गांव में भी घर से कुछ दूर पर ही 100 मीटर चौड़ाई और लगभग से 400 मीटर लंबाई का मैदान हुआ करता था जहां शुरू से लेकर आखिर तक बरगद और पीपल के चार बड़ेबड़े वृक्ष हुआ करते थे।

साहिल अपने दादाजी को याद करते हुए गहन मंथन एवं चिंतन पर खोया हुआ हैजिस गांव पर बरगद और पीपल का भरमार हुआ करती थी आज उस मैदान पर एक भी बरगद या पीपल का पेड़ नहीं है। साहिल अपने अतः मन गाँव को याद कर के विचार करता है तो पाता है कि केवल उस मैदान में ही नहीं अपितु पूरे गांव में अब पीपल या बरगद का वृक्ष मौजूद नहीं है। जिस पीपल पेड़ के नीचे कभी कई सदस्य या फिर ऐसे कई परिवार अपने करीबियों के अस्थि विसर्जन करके आने के पश्चात छांव के नीचे विश्राम किया करते थे। आज उसके बदले एक तिरपाल के सहारे निर्मित छाव पर विश्राम कर रहे हैं। यह सोचकर साहिल का मन बहुत अधिक व्यथित था। गाँव में पहले जहां चौक चौराहों का नाम वृक्षों से हुआ करता था नीम चौराबरगद चौरापीपल चौरा अब ना तो वह चौक रहा और ना ही वृक्ष। जिस गांव पर वृक्षों की संख्या अधिक हुआ करती थी आज नदारत हो गए हैं। यह कहीं ना कहीं हम मानव जाति का ही अभिशाप है जो वन संपदा का अंधाधुन दोहन करते आए हैंअपने बीते हुए सालों को याद करते हुए साहिल आज यह प्रण लेता है की 87 साल के उम्र में दादाजी का स्वर्गवास और वर्तमान में मेरी उम्र 21 साल कुल मिलाकर 108 वर्ष। दादा जी को सच्ची श्रद्धांजलि तब ही मिलेगी जब गाँव में फिर से बड़ेबड़े पीपलबरगद के वृक्ष अपनी जटा फैलाए मिले। साहिल यह प्रण लेता है कि 108 पीपल और बरगद का वृक्ष अपने गांव में रोपित करूँगारोपित ही नहीं अपितु उसको बड़ा होते तक संपूर्ण देखभाल करूंगा ताकि भविष्य में जब मैं दादा के उम्र का रहूंगा तो मेरे स्वर्गवास पर मेरे पोते या फिर मेरे परिवार के सदस्यों को यूं बंबू के सहारे ना रहना पड़े और कोई गाँव बिना पीपलबरगद पेड़ ना रहे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here