Home धर्म जिनालय में भगवान की नासा दृष्टि और मोन स्वभाव का चिंतन जीवन...

जिनालय में भगवान की नासा दृष्टि और मोन स्वभाव का चिंतन जीवन में परिवर्तन लाता है – मुनि श्री प्रणित सागर

139
0
वैशाली नगर इंदौर (विश्व परिवार)। देव , गुरु, जिनालय के दर्शन क्यों किए जाते हैं ,श्री महावीर स्वामी की आराधना का फल यही है कि हम अपने आराध्य की नासा दृष्टि, और भगवान के  मौन स्वभाव जीवन में अपना सके । आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी के  प्रभावक शिष्य इंदौर नगर गौरव मुनि श्री प्रणीत सागर जी महाराज ने 13 वर्षों के बाद जन्म नगरी इंदौर में प्रवेश के समय वैशाली नगर दिगंबर जैन मंदिर में यह  उद्गार व्यक्त किए। मुनि श्री ने प्रवचन में बताया कि व्यक्ति जिनालय में जाकर सिद्धि ,प्रसिद्ध या कार्य सिद्धि चाहता है, जिनका सिद्धि का लक्ष्य रहता है वह भगवान और साक्षात विद्यमान  परमेष्ठि के  समागम से जीवन में परिवर्तन कर सिद्धि का लक्ष्य रखते हैं ,कुछ मनुष्यों का लक्ष्य प्रसिद्धि का रहता है  और अधिकांश व्यक्ति का लक्ष्य सिद्धि और प्रसिद्धि नहीं होकर केवल कार्यसिद्धि होता है । जिन इंसानों का लक्ष्य कार्यसिद्धि है वह धरती पर भर स्वरूप है ।आज नगर प्रवेश हुआ अनेक जिनालय बड़े जिनालय भी रास्ते में आए नेमी नगर जैन कॉलोनी ,सुदामा नगर गुमास्ता नगर राजेंद्र नगर वैशाली नगर आदि। साधु पुरुष किए गए उपकार को भूलते नहीं है यही कारण है कि जिस चमत्कारी अतिशय से युक्त श्री महावीर स्वामी जिनालय वैशाली नगर से हमें वैराग्य की प्रेरणा मिली इसलिए नगर आगमन में पहले वैशाली नगर श्री महावीर जिनालय प्रवेश किया क्योंकि उपकारी का उपकार चुकाना प्रथम कर्तव्य है।
मुनिश्री ने 10 प्रकार के मुंडन का जिक्र करके बताया कि चक्षु और कर्ण इंद्रीय हाथ पैर इंद्रियों का संयम बहुत जरूरी है ताकि कर्ण  कान अंतिम समय तक जिनवाणी का श्रवण कर सके और नेत्र भगवान के चेहरे का, गुरु के चेहरे का दर्शन कर सके हूं मुनिश्री ने नौ प्रकार के मोन का वर्णन कर बताया कि व्यक्ति को जिनालय में प्रवेश करते समय तथा जीवन में नौ स्थानों पर मौन रहना चाहिए। मंदिर प्रवेश में पूजन करते समय, सामायिक करते समय ,स्नान करते समय ,वमन उल्टी करते समय, मल मूत्र का विसर्जन करते समय आदि समय मौन रहना चाहिए क्योंकि स्वर और व्यंजन मिलकर 64 वर्ण होते हैं इनका अगर विनय नहीं किया जाता है तो आपकी याददाश्त कमजोर हो जाती है इसलिए मौन रहने का उचित प्रबंधन जरूरी है। इस अवसर पर मंगलाचरण के बाद  श्री जी का चित्र अनावरण एवम् दीप प्रवज्जलन अतिथियों एवम् कमेटी के पदाधिकारियों ने किया मुनि श्री को अनेक कालोनी उप नगरों की समाज ने पधारने हेतु श्रीफल भेट किया। इसके पूर्व महाराष्ट्र में चातुर्मास  पश्चात लगभग 700 km विहार कर इंदौर दीक्षा गुरु से मिलन हेतु मुनि श्री प्रणित सागर एवम् मुनि श्री निर्मोह सागर जी का मंगल प्रवेश इंदौर में हुआ।संचालन देवेंद्र छाबड़ा ने किया। अध्यक्ष सुभाष ,राजेश पांड्या विजय बज इंद्रमल अनुसार मुनि श्री का अल्प शीत कालीन  प्रवास वैशाली नगर जैन मंदिर में रहेगा ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here