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जिससे मृत्यु की मृत्यु हो जाये ऐसी मृत्यु ही समाधिमरण है, अभिनव आचार्य श्री समयसागर महाराज

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कुण्डलपुर(विश्व परिवार) । जिस मृत्यु से मृत्यु की मृत्यु हो जाये वही मृत्यु समाधिमरण है,अभिनव आचार्य श्री समयसागर महाराज ने आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज के समाधिमरण दिवस पर आयोजित धर्मसभा में जनसभा को संबोधित करते हुए मृत्यु और मुक्ति और मृत्यु से मुक्ति के गहन ज्ञान से, श्रोताओं को सरल व्याख्या करते हुए बोध कराया।
मध्यप्रदेश के दमोह जिला के सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर में आचार्य श्री समयसागर महाराज ने समझाया कि महापुरुषों के शब्द का अर्थ ज्ञात न भी हो तो उनके शब्दों की तरंगें शुद्धि में उपयोगी होती हैं।बाल्यकाल में हमने आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज की वाणी का श्रवण किया,हम अल्पायु में थे अर्थ नहीं समझते थे। आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज मारवाड़ी भाषा में प्रवचन देते थे और हमें मारवाड़ी तो क्या हिंदी भाषा का भी ज्ञान न था।मगर उनके शब्द कानों के मार्ग से होते हुए अंतरंग तक पहुंच गये। हमें नवकार मंत्र का पाठ तत्समय में हमारे अग्र भ्राता जो कि संसार में संत शिरोमणि हुए,आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने हमें पढ़ाया,ये हमारा सौभाग्य था कि हमारा ऐसे कुल में जन्म हुआ था।
श्रोताओं को संबोधित करते हुए आचार्य श्री समयसागर महाराज ने बताया कि यथाजात लिंग करण नहीं उपकरण है। जैसे दृश्य को स्पष्ट देखने के लिए नयन पर उपनयन सहायक है,ऐसे ही यथाजात लिंग मोक्ष मार्ग की साधना में उपकरण है।यथाजात लिंगी ही अनावृत महाव्रती है। आवरण का एक धागा भी तीर्थंकरत्व में बाधक है। यथाजात भाव लिंगीं ही तीर्थंकर पद का धारक होता है। यथाजात भाव लिंगी रूप ,स्वरूप की अनुभूति कर सिद्ध स्वरूपी मुक्ति पाता है/पा सकता है।
आपने यम और नियम का अंतर समझाते हुए कहा कि अंतिम श्वास तक संकल्प के साथ व्रत का पालन करना यम है और व्रतों का सावधि संकल्प के साथ व्रत का पालन करना नियम है। दिगम्बर मुनि सल्लेखना समाधि मरण के लिये यम नियम के साथ साधना करता है,जीवन व्यतीत करता है।जिससे मृत्यु की भी मृत्यु हो जाये ऐसी मृत्यु ही समाधिमरण है। जिसका जन्म हुआ है,उसकी मृत्यु होगी ये सुनिश्चित है, किंतु जिसका मरण हो उसका पुनः जन्म हो ये नियम नहीं है।समाधि मरण कर मृत्यु की जिसने मृत्यु कर ली हो उसका पुनः जन्म नहीं होगा और वह जन्म मरण से मुक्त है उसने मुक्ति पा ली है।
आपने कहा कि हितमितप्रिय वाणी के के साथ निज आत्मा का कल्याण करते हुए पर कल्याण के भाव रखना सोलहकारण भावना का भाव है।आज आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज के समाधिमरण मृत्यु महोत्सव के दिवस यही भावना भाता हूं जैसा उन्होंने कल्याण किया ऐसा ही हमारा जो मेरे साथ बैठे हैं और जो सामने हैं सबका कल्याण हो।

धर्मसभा को निर्यापक श्रमण श्री योगसागर महाराज,निर्यापक श्रमण श्री नियमसागर महाराज,निर्यापक श्रमण श्री अभयसागर महाराज ने भी संबोधित किया।

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