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देश का सबसे बड़ा घाट, आस्था व पर्यटन का अनूठा संगम

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 बिलासपुर  (विश्व परिवार)। अरपा नदी का तोरवा छटघाट आस्था व पर्यटन का अनूठा संगम है। हर साल यहां देशभर से बड़ी संख्या मं पर्यटक विभिन्न अवसरों पर पूजा अर्चना एवं घूमने फिरने आते हैं। दिवाली के बाद छटपर्व पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्तों की भीड़ जुटती है। यहां आठ एकड़ में घाट बना हुआ है। 15 एकड़ में पार्किंग की खास सुविधा भी है। अरपा नदी के प्राकृतिक सुंदरता और आसपास हरियाली मन को सुकून और शांति प्रदान करता है। आस्था के साथ ही पर्यटन स्थल भी है। शहरी चका चौंध के बीच सुबह यहां परम आनंद की अनुभूति यहां होती है।
शाम को सूर्यास्त के समय सूर्यदेव का दर्शन अद्भुत प्रतीत होता है। सुरम्य वादियों के बीच शांति ही शांति मिलती है। इस तट पर सभी वर्ग जाति के लोग पहुंचते हैं। यहां छटघाट के पास उदासीन आश्रम भी है, जहां भगवान भोलेनाथ, मां दुर्गा और हनुमान जी की प्रतिमा है। जिसके दर्शन करने दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं। इस आश्रम की अद्भुत महिमा है। ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान शिव के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। यह भी सच है कि मन में सच्ची श्रद्धा और आस्था रखकर आने वालों की जिंदगी में तेजी से बदलाव होता है। आश्रम से लगे हरियाली से आच्छादित वृक्ष खूब आकर्षित करते हैं। रविवार को यहां लोग परिवार सहित पिकनिक मनाने भी पहुंचते हैं। सुरक्षा को लेकर भी तोरवा पुलिस नजर रखे रहती है। इसके अलावा छटघाट पर दिनभर लोगों का आना-जाना रहता है।

देश का सबसे बड़ा घाट
छट पूजा समिति के वर्तमान अध्यक्ष डा.धर्मेंद्र कुमार दास का दावा है कि यह घाट देश का सबसे बड़ा घाट है। हर साल यहां 50 हजार से अधि व्रती उगते और डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने पहुंचते हैं। छठ पूजा के लिए बिहार में कई घाट हैं। अकेले राजधानी पटना में 80 से ज्यादा घाट हैं, पर सभी घाटों का एरिया महज 100 से 200 मीटर ही है, जबकि तोरवा स्थित छठ घाट साढ़े आठ एकड़ में फैला हुआ है। यहां डेढ़ किलोमीटर के क्षेत्र में पूजा व अर्घ्य के लिए बेदी बनाई जाती है। मुंबई का जुहू स्थित चौपाटी सबसे बड़ा घाट माना जा सकता है, लेकिन वह स्थाई नहीं है। तोरवा छठ घाट स्थाई है।

सेल्फी व फोटो का खास क्रेज
23 वर्षों से यहां लगातार छट महापर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। जिसमें सभी शहरवासी भी जुटते हैं। पाटलीपुत्र संस्कृति विकास मंच, भोजपुरी समाज, सहजानंद सरस्वती समाज के सहयोग से महापर्व मनाया जाता है। इसके अलावा हिंदू धर्म के सभी व्रत एवं त्यौहार की शुरूआत यहीं से होती है। छत्तीसगढ़ी भोजली परंपरा का भी यहां विशेष महत्व है। देवी-देवताओं की प्रतिमा भी इसी तट पर विसर्जित की जाती है। सभी अवसरों पर सेल्फी व फोटो का खास क्रेज रहता है।

सुविधा के साथ पहुंच आसान
तोरवा घटघाट पर स्थाई रूप से लाइटिंग, पार्किंग स्थल, सामुदायिक भवन, गार्डन के साथ ही समीप में पुलिस चौकी भी है। हालांकी कुछ दूर पर तोरवा पुलिस थाना भी है, जहां से जवानों का गश्त रात में भी जारी रहता है। शहर से लगे होने के कारण यहां पहुंचना सबसे आसान है। दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर रेलवे स्टेशन है। पर्यटकों के लिए सबसे अच्छी बात यह कि मौसम के अनुरूप आनंद मिलता है। सर्दी में नदी का विहंगम दृश्य, गर्मी में सुहानी शाम और वर्षा ऋतु में नदी का उफान मन को खुशी से भर देता है।

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