विदिशा(विश्व परिवार)– श्री शांतिनाथ जिनालय स्टेशन जैन मंदिर में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से प्रथम दीक्षा प्राप्त आचार्य श्री आर्जवसागर जी महाराज ससंघ श्री शांति नाथ जिनालय स्टेशन जैन मंदिर विदिशा में विराजमान है। उनके साथ विदिशा एवं गंजबासौदा गौरव मुनि श्री सानंद सागर जी एवं मुनि श्री सजग सागर जी के साथ अन्य मुनिराज विराजमान है। प्रातःकालीन बेला में प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री आदिनाथ का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर आचार्य श्री ने कहा कि विदिशा नगरी तो धर्म की वह नगरी है जहां धार्मिक अनुष्ठान होते ही रहते हैं, उन्होंने कहा कि यह तो रत्नों की खान है। यहां से तो गुरूदेव से दीक्षित चेतन रत्न है जो मोक्षमार्ग के पद को प्रशस्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान का जन्म तृतीय काल में इच्छावाकु वंश में आयोध्या नगरी में हुआ और उसी काल में मोक्ष को गये। आप राजा नाभिराय- मरुदेवी के पुत्र थे उन्होंने कहा कि भगवान के गर्भ में आने के छह माह पहले से ही जन्म होने तक प्रतिदिन देवों द्वारा चौदह करोड़ रत्नों की वर्षा प्रारंभ होती रही एवं चारों और भय रहित सुख शांति का बातावरण था आम जन 10 प्रकार के कल्पवृक्ष से ही भोग उपभोग की वस्तुएं प्राप्त कर लेते थे।भगवान आदिनाथ से ही कर्म भूमि का आरंभ हुआ इनके ज्ञान, कौशल ,प्रतिभा को देखकर लोगों को इनसे ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा जागृत हुई। कर्मभूमि का शुभारंभ हुआ अतः लोगों को षट कर्म की शिक्षा दी। लोगों को खेती करना सिखाया उन्होंने कहा कि”कृषि करो या ऋषी बनो” का संदेश भगवान आदिनाथ के काल से ही प्रारंभ हुआ,जिस तरह से उन्होंने जीना सिखाया। जब जब भी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा होते है तो भगवान आदिनाथ को ही प्रतीक स्वरुप रखा जाता है। 83 लाख पूर्व वर्ष बीत जाने के बाद उन्होंने उपदेश दिया कि “हमारा लक्ष्य मात्र जीवन का भरण पोषण करना ही नहीं अपितु हमारा लक्ष्य तो जन्म मरण का अंत करना है” “मुक्ति को प्राप्त करना है” पुरुषार्थ करके अपने जीवन को सार्थक बनाना है। यह उपदेश हमें ऐसे दिगंबर ,वीतरागी, तपस्वी संत ही दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में अपने गुरु अवश्य बनाना चाहिए क्योंकि “जिसके जीवन में गुरु नहीं ,उसका जीवन शुरू नहीं।” गुरु ही हमें जीवन में आगे बढ़ने का मोक्षमार्ग को प्रशस्त करने का उपदेश देते हैं। उन्होंने हमें बताया कि धर्म ,अर्थ,काम और मोक्ष पुरुषार्थ किस प्रकार करें? हमें आज जो यह धर्म मिला है। वह भगवान आदिनाथ से ही प्राप्त हुआ है;जिनका अंतिम लक्ष्य मात्र मोक्ष को प्राप्त करना था। आप के प्रथम पुत्र भरत के नाम से ही इस देश का नाम “भारत”पड़ा आपके पुत्र बाहुबली ने पोदनपुर में राज्य किया और उस राज्य का त्याग कर मुनि बनकर पदवी धारियों में प्रथम रूप से मोक्ष प्राप्त किया। कर्नाटक राज्य में गोम्मटेश बाहुबली की प्रतिमा विश्व के आश्चर्य में गिनी जाती है। बंधुओं हमारा भी यही लक्ष्य होना चाहिए। हमें यही भावना भानी चाहिए कि हे भगवान! हम भी आपके मार्ग पर चलें। आपके बताए हुए धर्म का पालन करें और आपके गुणों को प्राप्त कर आप जैसे बनें।
अंत में आचार्य गुरुदेव ने कहा कि प्रत्येक धर्म में हिंसा और दया का मूल स्थान है। अतः हमें अहिंसा का पालन करके देश को भी आहिंसामय बनाकर जीवन को सफल बनाना है। अहिंसा ही परम धर्म है। उपरोक्त जानकारी प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया प्रतिदिन श्री शांतिनाथ दि. जैन मंदिर स्टेशन पर 8:30 बजे से प्रवचन चल रहे है। उधर बाईपास पर अग्रवाल एकादमी में। संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनि श्री विमलसागर जी महाराज स संघ की आहार चर्या संपन्न हुई