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बांसवाड़ा में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने प्रवचन में बताया कि पुण्य रूपी संपदा का उपयोग ज्ञान के साथ धार्मिक क्रिया में करना चाहिए

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बांसवाड़ा(विश्व परिवार)। पुण्यशाली जीव के भंडार भरे रहते हैं ,वह समृद्ध होते हैं इस भंडार का सही उपयोग करना चाहिए , धर्म के स्वरूप का चिंतन कर यथार्थ रूप से समझना होगा। जीवन की दिशा को धर्म की ओर परिवर्तित करना होगा मूल में धूल नहीं करना चाहिए ।स्वयं का चिंतन जरूरी है जीवन में किये जा रहे कार्यों का मूल्यांकन करें, प्रतिदिन मंदिर में भगवान के दर्शन अभिषेक पूजन माला जाप करते हैं इससे जीवन में बदलाव आने पर तथा धर्म पर आगे बढ़ने पर ही आपकी भक्ति पूजन सार्थक होगी। यह मंगल देशना वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म सभा में प्रगट की । समाज सेठ अमृत लाल एवं समाज प्रतिनिधि अक्षय डांगरा अनुसार आचार्य संघ के शिष्य मुनि श्री मुमुक्षु सागर जी ने उपदेश में बताया कि पुण्य का सदुपयोग कर चक्रवर्ती भी वैराग्य धारण करते हैं जबकि वह अतुलनीय संपदा 14 रत्न नव निधि के धारी होते हैं। आपकी आत्मा ज्ञानी, शक्तिमान, और भक्तिमान है अजर अमर ज्ञायक निजानंद स्वरूपीं हैं ।इसलिए आत्मा का चिंतन करो और सही धर्म के मार्ग का चयन करो आप भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हम संसार के दुखों से पीड़ित है मुझे शाश्वत सुख चाहिए अभी तक चारों गति में भ्रमण करते हुए निगोद ,नरक गति में एक सांस में 18 बार जन्म और मरण भी आपने किया है, इसके बाद स्थावर जीव , त्रस जीव पंचेेंद्रीय आदि चारों गति में भ्रमण कर रहे हैं जिस प्रकार जानवर पानी में कितना भी नहा ले वह धूल में लौट लगाता है उसी प्रकार आप लोगों को कितने भी संत समागम में धर्म की वाणी सुनाई जाए मंदिर में आप धार्मिक क्रिया करो उसके बाद विषय भोगों में पूर्णरत हो जाते हो। राजेश पंचोलिया अनुसार आज संघस्थ शिष्या आर्यिका श्री देशना मति माताजी ने केशलोच किए।

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