Home विदिशा भक्तामर बाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध आचार्य विनम्रसागर जी महाराज का...

भक्तामर बाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध आचार्य विनम्रसागर जी महाराज का आगमन सम्भवतः2 मई को

69
0

विदिशा(विश्व परिवार)–  गणाचार्यविरागसागर जी महाराज के शिष्य भक्तामर बाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध “जीवन है पानी की बूंद” के रचयिता आचार्य श्री विनम्रसागर जी महाराज जिनका 2023 का चातुर्मास मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था वंहा से मंगलविहार करते हुये धर्म नगरी विदिशा की ओर उनका आगमन हो रहा है जैन समाज के प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया आचार्य श्री संघ की रविवार की आहार चर्या राहतगढ़ में संपन्न हुई 29 अप्रेल सोमवार को बागरोद में तथा 30 अप्रेल मंगलवार को ग्यारसपुर में तथा एक मई वुद्धवार को हिरनई में प्रवास एवं आहार चर्या संपन्न होंने की सम्भावना है एवं 2 मई गुरुवार को धर्मनगरी विदिशा मे सम्भावित अगवानी होगी।

श्री सकल दि. जैन समाज विदिशा एवं मुनि सेवक संघ सहित विदिशा नगर के स्वंय सेवकों ने नगर के सभी धर्म श्रद्धालुओं से निवेदन किया है कि आचार्य श्री संघ के मंगलविहार में ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचकर धर्म लाभ लें इधर श्री पारसनाथ जिनालय अरिहंत विहार में उन्ही की संघस्थ आर्यिका विमलमति माताजी ने रविवारीय प्रवचन में कहा कि यदि शास्वत सुख चाहिये तो वर्तमान के सुख को छोड़ना पड़ेगा इतिहास गवाह है जिन्होंने वर्तमान के सुख को छोड़ा और वन को गये वह भगवान बन गये उन्होंने कहा कि जो हमें यंहा इस भव में सुख देते है वह पर भव में दुःख ही दुःख देते है,जिन्होंने यंहा पर सुख देखा उनको परभव में दुःख ही उठाना पड़ा।

उन्होंने कहा कि भगवान महावीर जब माता त्रिशला के गर्भ में आये तो तीन माह पश्चात अर्थात छै माह पूर्व से रत्नों की वर्षा होंने लगी थी और लगातार जन्म होंने तक यह रत्नों की वर्षा चलती रही” उन्होंने त्याग की महिमा का वर्णन करते हुये कहा कि वर्धमान के पास इतना वैभव था वह चाहते तो वह यंहा का सुख भोग सकते थे लेकिन उन्होंने वर्तमान का सुख और रत्नों को छोड़कर बन में गये और तीन रत्न सम्यक् दर्शन सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चारित्र को प्राप्त करके मतिज्ञान,श्रुतज्ञान,तथा अवधि ज्ञान को प्राप्त कर चौथा ज्ञान मनपर्यय ज्ञान को प्राप्त कर चार अघातिया कर्म का नाश कर कैवल्यज्ञान को प्राप्त कर अपने आपको बना लिया एवं समवसरण की विभूति प्राप्त हो गयी। एवं योग निरोध करते हुये उस समवसरण का भी त्याग करके लोक के अर्धभाग में पहुंच गये आर्यिका श्री ने त्याग की महिमा बताते हुये कहा कि जिन्होंने इस भव में सुख को चाहा है उनको दुःख ही मिला है और जिन्होंने इस भव में दुःखों को कष्ट को गले लगाया है उनको पर भव में सुख ही सुख मिला है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here