बांसवाड़ा (विश्व परिवार)| यह जीव अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण कर रहा है। उसे अपना वास्तविक घर नहीं मिल रहा है संसार में भ्रमण करते हुए अनंत काल बीत गया किंतु किनारा नहीं मिला। इसी प्रकार संसार रूपी समुद्र में भी सही गंतव्य की जानकारी नहीं होने से जहाज में बैठकर किनारा नहीं मिलता क्योंकि सही दिशा पता नहीं है। इसी प्रकार वन में भी आप भटकते रहते हैं आपको रास्ता नहीं मिलता। इसी प्रकार आज का प्राणी जीवन रूपी चौराहे पर खड़ा है उसे किस रास्ते पर जाना है उसे ज्ञान नहीं है, आपने बहुत आरंभ परिग्रह किए हैं इससे नरक गति, मायाचारी करने से व्यक्ति तिर्यचगति में जाता है, अच्छे कार्य करने से मनुष्य देव गति में जाता है। जीवन के इस चौराहे पर किस लक्ष्य को जाना है नरक गति तिर्यच गति के दुख साक्षात देख रहे हैं । नरक गति से आपको डर भय लगता है ।देवगति में सुख और दुख दोनों है देव 4 प्रकार के होते हैं भवनवासी, व्यंतरवासी ज्योतिषवासी और वैमानिक देव इसमें मात्र वेमानिक देव सम्यक दर्शन प्राप्त कर सकते हैं किंतु शेष तीन देव मिथ्यादृष्टि होते हैं वैमानिक देव गति में भी बलशाली प्रभावशाली देव के अधीन रहना होता है कभी-कभी किन्हीं देवों के वाहन हाथी सिंह आदि बनना होता है ।इसलिए चारों गति में दुख ही दुख है मनुष्य गति में आप दरिद्रता से, रोग से दुखी होते हैं। संपन्न व्यक्ति खुश दिखता है किंतु उसे भी अलग-अलग चिंता होने से शरीर बीमार होता है और उसकी भी असमय मृत्यु होती है वस्तु स्थिति में चारों गति ही संसार है इससे जन्म मरण से मुक्त होने पर ही सुख मिलेगा। जैसे अपराधी या पशु को बंधन से मुक्त कर दिया जाए तो उसे खुशी होती है इसी प्रकार आप भी संसार रूपी आवागमन से मुक्त होने पर सिद्ध बनने पर वास्तविक शाश्वत सुख को प्राप्त करेंगे। यह मंगल देशना वात्सल्य वारिधी पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने खांदू कालोनी बांसवाड़ा की धर्म सभा में प्रगट की ।ब्रह्मचारी गज्जू भैया,समाज सेठ अमृतलाल अनुसार आचार्य श्री ने बताया कि कर्म के बंधन से परिजनों से राग द्वेष होता है और शत्रु के प्रति बैर भाव कारण द्वेष होता है आज सगा भाई भी एक दूसरे के प्रति द्वेष रखता है और शत्रुता अधिक समय होने पर वह बेर के रूप में परिवर्तित हो जाती है और यह बैर अनेक भव तक कष्ट देता है भगवान पारसनाथ और कमठ की कहानी आप सभी जानते हैं कि कमठ ने अगले 10 भवों तक पारसनाथ भगवान के जीव पर उपसर्ग पहुंच कर उन्हें दुखी किया
प्राणी चाहे तो मनुष्य गति और तिर्यच गति में भी सम्यक दर्शन प्राप्त कर सकता है पारसनाथ भगवान के जीव ने उपसर्ग कारण मृत्यु होने तिर्यच गति में हाथी बन मुनिराज के उपदेश से धर्म ,अणुव्रत धारण किया आज के मानव को छोटे-छोटे नियम व्रत प्रतिमा लेने में बहुत विचार आता है कि हम नियमों का पालन नहीं कर सकते हैं किंतु पारसनाथ भगवान के हाथी की पर्याय को आप देखिए जब स्वाध्याय करेंगे तभी वास्तविक ज्ञान मिलेगा। वह हाथी हरे पत्ते नहीं खाता था पानी के पास जाता था तो पानी नहीं पीता था तब अन्य भले प्राणी उसे पानी को हिलाते थे पानी हिलने से वह जल प्रासुक हो जाता था तब वह हाथी पानी पीता था, अन्य प्राणी उसके लिए सूखे पत्ते आदि थे तो वह हाथी सूखे पत्ते खाकर उसने अपने अणुव्रत नियम की रक्षा की। उसने धर्म का दृढ़ता पूर्वक अणुव्रत का पालन कर अपनी पर्याय को ठीक कर लिया ।आचार्य श्री बताते हैं कि आप जैसे परिणाम करेंगे उसे अनुसार आयु का बंध होता है जिस प्रकार माता वात्सल्य ममतामई होती है ,वह बच्चों को दुलार करती है बच्चे को दुखी नहीं देख सकती बच्चे का दुख दूर करने का प्रयत्न करती है ।इस प्रकार जिनवाणी माता के स्वाध्याय करने से हमें ज्ञान मिलता है और यही ज्ञान हमारे दुख को दूर करता है। राजेश पंचोलिया और समाज प्रवक्ता अक्षय डांगरा अनुसार आचार्य ने बताया कि मनुष्य गति में सुख और दुख दोनों मिलते हैं इसलिए आपको नियमित जिनवाणी शास्त्र का स्वाध्याय करना चाहिए शास्त्र के स्वाध्याय से ज्ञान प्राप्त होता है इस ज्ञान से तत्व को समझें धर्म के प्रति श्रद्धा से सम्यक दर्शन प्राप्त होगा और आपको मोक्ष का सही मार्ग प्राप्त होता है इसलिए मनुष्य भव में देव दर्शन अभिषेक पूजन आचार्य साधु परमेष्टि की देशना सुनने को मिलती है ।मृत्यु हर उम्र की होती है इसलिए सावधानी और सजकता से धर्म को धारण कर मनुष्य जीवन को धन्य और सार्थक करने का पुरुषार्थ करें।