असम (विश्व परिवार)। हालिया वर्षों में असम की मौजूदा सरकार पर कथित रूप से अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने के आरोप लगते रहे हैं. आरोप है कि पहले सरकार और हिंदुत्ववादी संगठनों ने मुसलमानों को निशाना बनाया और अब ईसाई समुदाय उनके निशाने पर है. कथित रूप से अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने के लिए पूर्वोत्तर राज्य असम की मौजूदा सरकार की हाल के वर्षों में आलोचना होती रही है. कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों ने सरकार से अपील की है कि मिशनरी स्कूलों से धार्मिक प्रतीक और प्रतिमाएं हटाई जाएं और सरस्वती पूजा शुरू करवाई जाए. ईसाई संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया है. असम में ईसाइयों की आबादी करीब 3.74 फीसदी है, जो 2.3 फीसदी के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले ज्यादा है. राज्य में 300 से ज्यादा मिशनरी स्कूल हैं.
चर्च की गतिविधियों को निशाना बनाने के आरोप
प्रदेश की पुलिस ने कैथोलिक समुदाय, उनके चर्चों, संस्थाओं और धर्मांतरण के बारे में एक सर्वेक्षण शुरू किया है. राज्य के ईसाई समुदाय ने इसमें सहयोग ना करने का फैसला किया है. गुवाहाटी के आर्चबिशप जानमूलाचिरा ने कहा है कि इस संबंध में बीते साल 16 दिसंबर को असम पुलिस की ओर से जारी किया गया सर्कुलर भेदभावपूर्ण है. उन्होंने आरोप लगाया कि इसके जरिए चर्च की गतिविधियों को निशाना बनाया गया है. पुलिस की ओर से जारी उक्त सर्कुलर में बीते एक साल के दौरान बने नए चर्चों की संख्या के साथ ही बीते छह वर्षों के दौरान हुए धर्मांतरण और धर्मांतरण की वजहों के बारे में ब्योरा देने को कहा गया था. इसमें धर्मांतरण के लिए काम करने वाले लोगों की शिनाख्त करने का भी प्रावधान था. असम क्रिश्चियन फोरम के प्रवक्ता एलेन ब्रुक्स सवाल करते हैं, “आखिर राज्य में ईसाइयों को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है? मंदिर, मस्जिद और दूसरे धार्मिक संस्थानों का ब्योरा क्यों नहीं जुटाया जा रहा है?”असम के पड़ोसी ईसाई-बहुल मेघालय के कैथोलिक एसोसिएशन ऑफ शिलांग ने भी हिमंता सरकार पर ईसाई समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है. संगठन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि पुलिस की ओर चर्च की गतिविधियों का ब्योरा जुटाने के लिए प्रस्तावित सर्वेक्षण का मकसद इस तबके को धमकाना और परेशान करना है.ईसाई समुदाय के बढ़ते विरोध के बाद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि यह पुलिस का मामला है और उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है. सत्तारूढ़ बीजेपी के नेताओं ने भी कहा है कि प्रशासन, राज्य में ईसाइयों की गतिविधियों के सर्वेक्षण के पक्ष में नहीं है.
मिशनरी स्कूलों को चेतावनी
दूसरी ओर, इस मुद्दे पर जारी विवाद के बीच ही ‘कुटुंब सुरक्षा परिषद’ नाम के एक कट्टर हिंदुत्ववादी संगठन ने प्रदेश के मिशनरी स्कूलों से तमाम धार्मिक प्रतीकों और प्रतिमाओं को हटाने का निर्देश देकर स्कूल प्रबंधन और चर्च की चिंता बढ़ा दी है. ऐसे कई स्कूलों के प्रिसिंपलों ने स्थानीय पुलिस को लिखे पत्र में सुरक्षा की मांग है. संगठन के प्रमुख सत्य रंजन बोरा ने 7 फरवरी को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि तमाम मिशनरी स्कूलों को परिसर के भीतर बने धार्मिक प्रतीक, ईसा मसीह और मैरी की प्रतिमा और चर्च को हटाना होगा. उन्होंने सुबह की प्रार्थना और शिक्षकों के पहनावे को भी बदलने की बात कही. बोरा ने कहा, “क्रिश्चियन मिशनरी स्कूलों और शिक्षण संस्थानों को धार्मिक संस्थानों में बदल रहे हैं. हम ऐसा नहीं होने देंगे. संगठन ने चेतावनी दी थी कि इस निर्देश का पालन नहीं करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा और ऐसे संस्थान ही नतीजे के लिए जिम्मेदार होंगे.”
मिशनरी स्कूलों में डर का माहौल
स्कूलों की ओर से राज्य पुलिस को पत्र भेजा गया. पुलिस महानिदेशक जी.पी. सिंह ने पत्रकारों को बताया है कि उन्होंने जिला पुलिस को इस बात का ध्यान रखने की सलाह दी है कि कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं घटे. उक्त संगठन के अल्टीमेटम की समय सीमा पार हो जाने के बाद सम्मिलित सनातन समाज नामक एक अन्य संगठन की ओर से शिवसागर, तिनसुकिया और जोरहाट समेत ऊपरी असम के कुछ जिलों में मिशनरी स्कूलों की दीवारों पर लगभग इसी मांग में चेतावनी भरे पोस्टर लगाए गए हैं. इसके बाद जोरहाट के कार्मेल स्कूल की प्रिंसिपल सिस्टर रोज फातिमा ने स्थानीय पुलिस को पत्र भेज कर सुरक्षा की मांग की है. प्रिंसिपल फातिमा कहती हैं कि इस प्रकरण से स्कूल परिसर में दहशत का माहौल पैदा हो गया है.
सरकार के रवैये की आलोचना
असम क्रिश्चियन फोरम के प्रवक्ता एलेन ब्रुक्स कहते हैं कि प्रिंसिपलों की ओर से भेजे गए पत्र के प्रति पुलिस का रवैया सकारात्मक है, लेकिन सरकार इस मामले में समुचित कार्रवाई नहीं कर रही है. कई मामलों में महज एक फेसबुक पोस्ट के लिए लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है. लेकिन इस मामले में एक व्यक्ति और कुछ संगठन खुलेआम एक खास तबके पर हमला करते हुए जहर उगल रहे हैं. बावजूद इसके सरकार ने चुप्पी साध रखी है. अब ईसाई नेता इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उन्हें अपनी चिंता से अवगत कराने पर विचार कर रहे हैं. इन प्रतिनिधियों का कहना है कि हालिया वर्षों में पूर्वोत्तर में हिंदुत्ववादी समूहों का वर्चस्व बढ़ने के बाद ईसाईयत और मिशनरी गतिविधियों पर खतरा बढ़ा है. अब यह कुप्रचार चल रहा है कि ईसाई धर्म के नेता इलाके में आदिवासियों का धर्मांतरण करने में जुटे हैं. ईसाई नेताओं की दलील है कि संविधान के तहत सबको अपने-अपने धर्म का पालन करने का अधिकार मिला है. ऐसे में विभिन्न संगठनों की ओर से मिलने वाली धमकियां इस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है. लेकिन यह सब देखने के बावजूद सरकार और पुलिस ऐसे तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है.