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यूपी की जनता ने बीजेपी को क्यों नकारा? समीक्षा बैठकों में निकलकर आई ये वजह, पार्टी भी परेशान

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नई दिल्ली(विश्व परिवार) | भर्ती परीक्षाओं का लीक होना, राज्य में अधिकारियों को मिली हुई खुली छूट और विपक्ष द्वारा संविधान और रिजर्वेशन के मुद्दे उठाने से ओबीसी व दलित मतदाताओं का मत विभाजन… ये वो वजहें है, जिन्हें बीजेपी ने यूपी में अपनी खराब प्रदर्शन के रूप में चिन्हित किया है। लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में बीजेपी का वोट शेयर 41.37% पर पहुंच गया जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में यह 49.98% था।

बीजेपी ने 19 जून से 25 जून के बीच यूपी की 78 लोकसभा सीटों पर अपने प्रदर्शन की समीक्षा की। इन सीटों में पीएम नरेंद्र मोदी की वाराणसी और डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह की लखनऊ लोकसभा सीट शामिल नहीं है। बीजेपी ने हर सीट पर अपने प्रदर्शन की समीक्षा के लिए 24 सवालों का सेट तैयार किया था।

इन सवालों के साथ बीजेपी सीनियर लीडर्स की टीम लोकल नेताओं पर जन प्रतिनिधियों से मिली और यह जानने की कोशिश की कि क्यों उसे हार का सामना करना पड़ा और ऐसी क्या वजहें रहीं कि जिन सीटों को उसने रिटेन किया, वहां जीत का मार्जिन कम हो गया।

द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा सूत्रों के हवाले से दी गई जानकारी के अनुसार, चुनाव परिणाम पर यूपी बीजेपी के पदाधिकारियों और RSS पदाधिकारियों के बीच मीटिंग हुई। बीजेपी की यूपी ईकाई ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है और माना जा रहा है कि ये रिपोर्ट इस हफ्ते सेंट्रल लीडरशिप को सौंपी जा सकती है।

समीक्षा बैठकों में शामिल बीजेपी के सीनियर कार्यकर्ता ने बताया कि विपक्ष द्वारा संविधान और आरक्षण पर चलाया गया कैंपन, पेपर लीक और बेरोजगारी की वजह से निराशा और स्थानीय प्रशासन की उपेक्षा और अपमान की वजह से बीजेपी वर्कर्स कार्यकर्ताओं में निराशा ने पार्टी को चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया।

उन्होंने बताया कि आखिरकार जिम्मेदारी संगठन पर ही है क्योंकि चुनाव सियासी दल लड़ता है, सरकार नहीं। लेकिन वोटर सरकार के प्रदर्शन के आधार पर वोट करता है, राजनीतिक दल के आधार पर नहीं।

जब उनसे यह सवाल किया गया कि रिव्यू मीटिंग में कार्यकर्ताओं की निराशा की वजह क्या निकलकर आई तो उन्होंने कहा, “कार्यकर्ता हतोत्साहित थे। लंबे समय से लोकल पुलिस स्टेशनों और तहसील कार्यालयों में अधिकारियों द्वारा उनका अपमान किया जा रहा था। इसी वजह से इस बार उन्होंने अपने मतदान केंद्रों में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए उत्साह नहीं दिखाया। राज्य सरकार के ‘VIP कल्चर’ पर नकेल कसने के फैसले ने पुलिसकर्मियों को बीजेपी कार्यकर्ताओं को परेशान करने की अनुमति दी। बीजेपी कार्यकर्ताओं के वाहनों से पार्टी के झंडे उतारे गए, उनके वाहनों की जांच की गई और ट्रैफिक रूल्स के कथित उल्लंघन के लिए चालान काटे गए।”

पेपर लीक से गुस्से में युवा

बीजेपी की रिव्यू मीटिंग्स में यह भी सामने आया है कि भर्ती परीक्षाओं के लीक होने से न सिर्फ युवा नाराज थे बल्कि उनके परिवार वालों के गुस्से का सामना भी बीजेपी को करना पड़ा। योगी सरकार ने पिछले महीने ही पेपर लीक से संबंधित नया कानून बनाया है। इसके तहत मामले में दोषी पाए जाने पर दो साल से आजीवन कारावास की सजा हो सकती है और एक करोड़ रुपये फाइन हो सकता है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि अगर ये कदम पहले उठा लिया गया होता तो बीजेपी को युवाओं के वोट का नुकसान न होता।

कन्नौज में अखिलेश यादव से हारने वाले सुब्रत पाठक तो खुलकर पेपर लीक को पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजह बता चुके हैं। X पर उन्होंंने पोस्ट कर कहा कि यूपी में बीजेपी की हार के कई कारण हैं लेकिन पेपर लीक एक बड़ी वजह है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार ने “शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है”। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए यूपी और केंद्र की सरकार के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।

जातिगत समीकरण नहीं साध पाई बीजेपी

बीजेपी के रिव्यू में यह भी सामने आया है कि विभिन्न जाति और समुदायों वोटों को लेकर उसकी कैलकुलेशन गलत साबित हुई। इसमें खासतौर पर दलित और ओबीसी शामिल हैं। बीजेपी के एक नेता ने बताया कि विपक्ष के कैंपेन की वजह से आरक्षण और संविधान पर विपक्ष के अभियान के कारण दलितों और ओबीसी के करीब 8% वोट कट गए।

पार्टी के अनुसार, बीएसपी के वोट बेस में से अच्छी संख्या में जाटव मतदाता सपा और कांग्रेस पर शिफ्ट हो गए। बीजेपी के एक नेता ने कहा कि आरक्षण और संविधान पर कैंपेन की वजह से करीब 6% जाटव वोटर सपा और कांग्रेस पर शिफ्ट हो गए क्योंकि उनका मानना था कि बीएसपी भाजपा को हराने के लिए चुनाव नहीं लड़ रही है। बीजेपी को उम्मीद थी कि बीएसपी कुछ मुस्लिम वोट हासिल करने में सफल रहेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

बीजेपी के एक सीनियर नेता की मानें तो करीब 70% ओबीसी कुर्मी वोट सपा-कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गए। उन्होंने कहा कि मतदाता इस बात से संतुष्ट नहीं थे कि बीजेपी आरक्षण खत्म नहीं करेगी। हम असहाय थे। उन्होंने कहा कि सेंट्रल और पूर्वी यूपी में कुर्मी वोटर्स को पर्याप्त टिकट न देने का नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा। इसके अलावा सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड में ओबीसी शाक्य वोटर्स ने पार्टी का समर्थन नहीं किया। इसके अलावा उसे ओबीसी मौर्य औऱ सैनी वोटों का भी नुकसान उठाना पड़ा।

चौथे फेज तक उठाना पड़ा राजपूतों की नाराजगी का नुकसान

पार्टी के एक नेता ने बताया कि समीक्षा में यह भी निकलकर आया कि पहले फेज में यूपी वेस्ट में राजपूतों की नाराजगी से बीजेपी को नुकसान हुआ। राजपूतों को मनाने के लिए प्रयास हुए लेकिन ये फेल हो गए और इसका नुकसान बीजेपी को चौथे फेज तक उठाना पड़ा।

बीजेपी की अंदरूनी जानकारी रखने वालों के अनुसार, रिव्यू रिपोर्ट में सरधना के विधायक संगीत सोम पर राजपूतों को भड़काने का आरोप है। इससे मुजफ्फरनगर में संगीत सोम को नुकसान हुआ। एक नेता ने बताया कि इससे राजपूतों में एंटी बीजेपी भावना पैदा हुई। बीजेपी सिर्फ मुजफ्फरनगर ही नहीं हारी बल्कि उसे सहारनपुर और कैराना भी गंवानी पड़ी। मेरठ वह मामूली अंतर से जीत पाई। राजपूतों ने सभी सात फेज में बीजेपी को नुकसान पहुंचाया। उन्होंने कहा कि सेंट्रल लीडरशिप यह तय करेगी कि मामले में क्या कार्रवाई की जाए।

 

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