Home राजस्थान रत्नत्रय ,धर्म ,संयम के बिना समाधिमरण नहीं होता हैं – आचार्य श्री...

रत्नत्रय ,धर्म ,संयम के बिना समाधिमरण नहीं होता हैं – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

36
0

बांसवाड़ा(विश्व परिवार) | मानव पर पर्याय बहुत अधिक दुर्लभ है।आज के प्राणी का विषय भोगों में जीवन इस प्रकार बीतता है ,जैसे चंदन जैसी बहुमूल्य वस्तु को अग्नि में व्यर्थ जलाना ।प्राणी के मन में विरक्ति की भावना तप ग्रहण करने की भावना होना चाहिए क्योंकि तप , धर्म समाधि से बोधी प्राप्त होती है बोधि का मतलब आत्मा का बोध होना होता है ,अर्थात बोधि मतलब सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान ,सम्यक चारित्र होता है रत्नत्रय के बिना समाधि मरण नहीं हो सकता है यह मंगल देशना वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने प्रगट की। आचार्य श्री ने अपने प्रवचन में सभी को व्रत धारण करने संयम धारण करने की भावना जगाने की प्रेरणा दी इसलिए बोधि दुर्लभ भावना का चिंतन कर धर्म में प्रमाद आलस्य नहीं करना चाहिए धन कंचन राज्य सुख सभी सुलभ कर जान, दुर्लभ है संसार में एक यथार्थ ज्ञान अर्थात धन ,संपत्ति ,सोना चांदी राज सुख सब आसानी से मिल सकते हैं किंतु यथार्थ सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चारित्र ज्ञान का प्राप्त होना अत्यंत ही दुर्लभ है मनुष्य पर्याय पाने के लिए देवता भी तरसते हैं इसलिए उत्तम देश में अच्छा श्रावक कुल में संयम व्रत प्रतिमा धारण करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। ब्रह्मचारी गज्जू भैय्या,समाज सेठ अमृत लाल अनुसार आचार्य श्री के संघस्थ शिष्य मुनि श्री चिंतनसागर जी महाराज ने तत्वार्थ राज वर्तिक ग्रंथ के आधार पर तत्वार्थ सूत्र की टीका 9 की अध्याय 7 में बोधि दुर्लभ भावना की विवेचना कर बताया कि प्राचीन आचार्य अंकलक देव द्वारा रचित इस ग्रंथ में 12 भावना का वर्णन है जिन्हें हम अनुप्रक्षा भावना भी कहते हैं। यह 12 भावना संसार में आवागमन संवर का कारण बताती है । मुनि चिंतनसागर जी ने बोधि दुर्लभ भावना पर चिंतन प्रकट कर बताया कि स्थावर पर्याय की तुलना में त्रस पर्याय बहुत ही मुश्किल से मिलती है क्योंकि निगोदी व्यक्ति के शरीर में इतने अनंत अनंत जीव है जो की समस्त लोक के सिद्ध भगवान से भी अनंत गुना अधिक है तब जाकर त्रस पर्याय मिलती है। स्थावर पर्याय की तुलना में इतना दुर्लभ बताया गया है कि बालू के समुद्र में अगर हीरा गुम जाए तो उसे खोजना कितना कठिन है इस प्रकार स्थावर जीवन की तुलना में त्रस जीव की पर्याय दुर्लभ है पर्याय में भी दो इंद्रीय से चार इंद्रीय अनेक जीव है पंचेेंद्रीय बनना भी बहुत दुर्लभ है मनुष्य बनना उससे भी अधिक दुर्लभ है इसके लिए एक उदाहरण में बताया कि जैसे कीमती रत्न अगर चौराहे पर रखकर भूल जाए तो वह दोबारा मिलना नामुमकिन है। दूसरे उदाहरण में बताया कि मनुष्य मनुष्य पर्याय इतनी दुर्लभ है कि जैसे एक जले हुए वृक्ष में दोबारा पौधे का अंकुरित होना अथवा उस वृक्ष की राख से पुनः वृक्ष बन जाना ,अर्थात यह दुर्लभ से भी दुर्लभ है इतनी दुर्लभता के बाद मनुष्य पर्याय मिलती है। राजेश पंचोलिया एवम समाज प्रतिनिधि अक्षय डांगरा अनुसार मुनि श्री ने आगे बताया कि मनुष्य पर्याय में भी अच्छा कुल ,अच्छा देश, शील, विनय आचरण ,सभी अंगोपांग पूर्ण शरीर का होना ,सुंदरता रूप मिलना बहुत दुर्लभ है ।जिस प्रकार आंखों के बिना जीवन व्यर्थ है उसी प्रकार मानव जन्म भी इतना अधिक दुर्लभ है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here