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राग,द्वेष,मोह चेतन आत्मा में अचेतन द्रव्य और भाव कर्मों का बंध करते हैं – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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बांसवाड़ा (विश्व परिवार)| आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज कि अक्षुण्ण मूल बालब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज खांदू कॉलोनी श्री श्रेयांसनाथ जिनालय बांसवाड़ा में संघ सहित विराजित है। आज संघस्थ शिष्या आर्यिका श्री वत्सल मति और आर्यिका श्री विलोकमति जी ने केशलोचन किए ।आज आयोजित धर्म सभा में वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने श्रावक धर्म,श्रावको के कर्तव्य,पांच पाप आदि की विवेचना कर अपनी देशना में बताया कि श्रावक धर्म भगवान का बताया हुआ धर्म है, भगवान ने चार पुरुषार्थ धर्म ,अर्थ,काम और मोक्ष पुरुषार्थ की देशना दी है। श्रावक को धर्म पुरुषार्थ करने से ही मोक्ष पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है ।श्रावक और साधु धर्म ,श्रावक अर्थ और काम , और मोक्ष पुरुषार्थ श्रावक और साधु दोनों कर सकते हैं

भगवान सर्वज्ञ वितरागी और हितोपदेशी है उन्होंने अपने दिव्य देशना के माध्यम से चारो पुरुषार्थ की देशना दी है। काम का अर्थ वासना नहीं काम का अर्थ अनंत इच्छाओं कामनाओं पर नियंत्रण से है ।धर्म पुरुषार्थ से मोक्ष पुरुषार्थ की ओर बढ़ सकते हैं। श्रावक अर्थ पुरुषार्थ में लगे रहते हैं उन्हे जो व्यापार व्यवसाय करते हैं उसे धर्म,न्याय नीति पूर्वक करना चाहिए श्रावको को पांच पापों से बचने का प्रयास करना चाहिए परिग्रह पाप की श्रेणी में आता है आपको आवश्यकता से अधिक चल अचल संपत्ति वस्तु खाद्य सामग्री का त्याग करना चाहिए आप उनका उपभोग नहीं करते तो भी उनका दोष आपको लगता है।

ब्रह्मचारी गज्जू भैय्या समाज के सेठ श्री अमृतलाल जैन अनुसार आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया कि श्रावको को धर्म, देवशास्त्र, गुरु के लिए चार दान करना चाहिए श्रावक को पूजा के साथ दान देना उसका कर्तव्य है।सभी को समाज और धर्म की रक्षा करना चाहिए। श्रावक को अपने उपकार के साथ परोपकार भी करना चाहिए। सभी को अपने कर्मों का फल अपने कार्यों के अनुसार मिलता है। कार्यों के आधार पर ही पुण्य या पाप कर्म के उदय से सुख या दुख मिलता है राग द्वेष मोह के कारण चेतन आत्मा में अचेतन कर्म बंध कर दुख देते हैं। द्रव्य और भाव की अपेक्षा से कर्मों का बंध निरंतर होता है ।आचार्य श्री ने प्रेरणा दी आपको जो भी पदार्थ का सेवन करें चाहे मिनरल वाटर हो या खाद्य सामग्री हो उसके निर्माण की प्रक्रिया भक्ष्य अभक्ष्य की जानकारी होना जरूरी है ।इच्छा भूख प्यास सभी गति के सभी प्राणियों को लगती है इसलिए योग्य अयोग्य का चिंतन कर ही भोजन करना चाहिए भगवान के भक्त भगवान की वाणी को श्रद्धालु होकर सुनकर, अपनाकर जीवन को सार्थक करते हैं।

समाज प्रतिनिधि अक्षय डांगरा के अनुसार आचार्य श्री ने खांदू कॉलोनी में प्रतिदिन दर्शन अभिषेक पूजन स्वाध्याय में सैकड़ो व्यक्तियों के शामिल होने पर प्रसन्नता व्यक्त की। आचार्य श्री ने कहा कि धार्मिक कार्यों में मन उपयोग को स्थिर रखना चाहिए अभिषेक पूजन का प्रथम अंग है। शांति धारा इसलिए की जाती है कि जो अभिषेक पूजन में हमसे त्रुटि हुई है वह बीजमंत्र से दूर होती है आचार्य कल्प श्री श्रुत सागर जी कहते थे कि साधु 22 परिषह सहन करते हैं जबकि श्रावक 22000 हजार परिषह लौकिक व्यवहार में सहन करते हैं।*

आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने उपदेश में बताया कि प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी के समाज पर अनेक उपकार है आपने धर्म , जिनालय,जिनवाणी और संस्कृति का संरक्षण किया समाज को उपकारी के उपकार को भूलना नहीं चाहिए ।धर्म श्रावक जीवन में धर्म मोक्ष मार्ग की नीव है। मोक्ष मार्ग पर श्रावकों को धर्म जिनवाणी अनुरूप पालन कर मनुष्य जीवन को सार्थक करना चाहिए।

इससे पुर्व आचार्य श्री के सानिध्य में मालविया मनोज कुमार मोतीलाल एवं संजीवजी विद्युतकुमार जी डुंगरपुर वालो ने शान्तिधारा का पुण्यार्जन किया
आचार्य श्री के पादप्रक्षालन एवं शास्त्र भेट का पुण्यार्जन श्री सेठ अमृतलालजी धुलजी परिवार ने किया

 

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