Home ललितपुर रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस -18 जून विशेष

रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस -18 जून विशेष

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  • “खूब लडी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी”
  • नारी अस्मिता का प्रतीक हैं वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई 

ललितपुर(विश्व परिवार) | “बुंदेले हर बोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लडी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।” भारतीय बसुंधरा को गौरान्वित करने वाली झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई एक आदर्श वीरांगना थीं। सच्चा वीर कभी आपत्तियों से नहीं घबराता है। प्रलोभन उसे कर्तव्य पालन से विमुख नहीं कर सकते। उसका लक्ष्य उदार और उच्च होता है। उसका चरित्र अनुकरणीय होता है। अपने पवित्र उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह सदैव आत्मविश्वासी, कर्तव्य परायण, स्वाभिमानी और धर्मनिष्ठ होता है। ऐसी ही थीं वीरांगना लक्ष्मीबाई। समूचे विश्व में झांसी को महारानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है।आजादी की प्रथम दीपशिखा वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई वह नाम है जिसने महिला वीरता की एक अमर गाथा लिखी। चार सौ साल से भी अधिक पहले बना किला उनकी शौर्य गाथा का गवाह है।नगर की वीरांगनाओं ने रानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा को परिचर्चा में व्यक्त किया।

01- युवाओं की प्रेरणास्रोत हैं रानी लक्ष्मीबाई- विनीता

शिक्षिका विनीता पांडे का कहना है कि सन् 1857 की क्रांति की सबसे बड़ी नायिका और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम वीरता की श्रेणी में सबसे ऊपर रखा जाता है। रानी लक्ष्मीबाई का व्यक्तित्व आज सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। रानी लक्ष्मीबाई 18 जून 1858 में ग्वालियर में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती हुई शहीद हुईं थी। उनके आदर्श आज युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत के रुप में हैं।

02- गौरवशाली इतिहास की प्रतीक हैं रानी लक्ष्मीबाई- आकांक्षा

आकांक्षा विश्वकर्मा का मानना है कि झांसी के गौरवशाली इतिहास की जगमगाती उदाहरण मणिकर्णिका रही हैं।वर्तमान समय में नई पीढ़ी को ध्यान देना चाहिए कि ब्रिटिश हुकूमत के संदेश से देश की आजादी का बिगुल झांसी की पवित्र धरती से फूंका था। रानी लक्ष्मीबाई हमारे इतिहास की प्रतीक बन गयी हैं।

03- खूब लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी- आरती

आरती सोनी का कहना है कि सन् 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाली वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ही थी। उन्होंने स्वराज की खातिर अंग्रेजों से युद्ध में लड़ते हुए 18 जून 1858 को वीरगति को प्राप्त किया था।इस बलिदान दिवस की तिथि को जानकर भारतीय कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के मुंह से देशभक्ति से ओतप्रोत इन पंक्तियों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए – “बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।” इसी बलिदान के कारण रानी लक्ष्मीबाई शौर्य का प्रतीक बनकर नारी जागृति का कारण बनी थी।

04- झूठ व अन्याय के खिलाफ थी रानी लक्ष्मीबाई- पलक जैन

पलक जैन का कहना है कि बचपन में इन्हें प्यार से लोग मनु, छबीली, मणिकर्णिका आदि नामों से पुकारते थे।बचपन में जब भारतीय छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियां,गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेलते थे तब मनु तलवार बाजी,
घुड़सवारी का अभ्यास करती थी। बचपन से ही बहुत निडर थी। झूठ,अन्याय का साथ उन्होंने कभी नहीं दिया।सत्य का उन्होंने हमेशा साथ दिया।

05- वीरांगना लक्ष्मीबाई के जीवन से लें प्रेरणा- अंजूलता

शिक्षिका अंजूलता वर्मा का मानना है कि अंग्रेजी सेना ने झांसी पर अपना राज्य स्थापित करने की कोशिश की तो रानी लक्ष्मीबाई ने निडरता पूर्वक कहा था-“मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।”झांसी की रक्षा हेतु उन्होंने स्वयं अंग्रेजों से युद्ध किया था और आज के ही दिन वीरगति को प्राप्त हुई थी। देश के होनहार नई पीढ़ी के बालक- बालिकाओं को ऐसी वीरांगना झांसी की रानी की इतिहास की धरोहर से हमें वीरता,निडरता, देशप्रेम की शिक्षा लेकर उनकी पुण्यतिथि पर घर-घर दीप जलाकर अपनी भावांजलि अर्पित करनी चाहिए।

यह थे रानी लक्ष्मीबाई के संदेश-

● अगर मैं युद्ध भूमि में मृत हो जाऊं तो मेरी देह को अंग्रेजों के हाथ में न पडने देना।

● जिसे अपनी मृत्यु का भय हो तो वह युद्ध भूमि को छोडकर घर जा सकता है।

● रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्ति के समय कहा था- “ओम वासुदेवाय नम:”

युवावस्था में थामी थी झांसी की कमान:-

18 साल की उम्र में थामी थी झांसी
की बागडोर:-

रानी लक्ष्मीबाई ने 18 वर्ष की उम्र में ही झांसी की शासिका बन गई थी। जब उनके हाथों में झांसी राज्य की कमान आयी तब उनकी उम्र महज 18 साल ही थी। उनकी शादी 14 साल से भी कम उम्र में झांसी के मराठा शासक गंगाधर राव से हुई।

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