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रायपुर का समीकरण… शुक्ल के बाद जिस सीट पर कांग्रेस कमजोर होती चली गई वहां जीत और हार को छोड़ लीड की चर्चा !

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रायपुर(विश्व परिवार)- रायपुर… छत्तीसगढ़ की राजधानी. जहां मौजूद है कल्चुरीकालीन निशानी. जो है ऐतिहासिक नगरी, जो है सदियों पुरानी. जहां गोंड राजाओं के संग मराठों और अंग्रेजों की भी है कहानी. जिसकी धरा में खारुन, शिवनाथ और महानदी का पानी. जहां की सिसायत मेंं छाए रहे नेता नामी. उस राजधानी की एक पहचान है और भी है पुरानी. पुरानी पौराणिक है. पुरातात्विक है. प्रमाण रामायण काल के भी हैं और महाभारत के काल के भी. गुप्त और मौर्य काल के भी. हिंदुओं के संग, जैन और बौद्ध के भी साक्ष्य और दस्तावेज और पुरा अवशेष हैं. रायपुर कई मायनों में विशेष है.

रायपुर की विशेषताओं में औद्योगिकीकरण, नगरीयकरण, नवा रायपुर संग मेट्रो संस्करण भी है. बड़ा बाजार, सोने-चांदी का कारोबार, कपड़े का अंतर्राज्यीय व्यापार, लोहे, सीमेंट का उद्योग, कारखानों का भरमार है. रायपुर में सिनेमाई युग छॉलीवुड भी है. रायपुर में शिक्षा और स्वास्थ्य, परिवहन सुविधाओं का बेहतर रूप भी है. लेकिन इसी रायपुर में सिसायत का सबसे बड़ा केंद्र विधानसभा, सचिवालय, मंत्रालय और समूची सरकार. रायपुर सही मायने में छत्तीसगढ़ का आधार.

छत्तीसगढ़ के आधार में रायपुर की सियासत भी खड़ी है. और राजधानी की सियासत की कहानी बड़ी लंबी है. 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर 2024 के इस चुनाव तक के समीकरण को समझने के लिए चुनावी इतिहास को जानना भी जरूरी है. और इस चुनावी इतिहास में भारतीय राजनीति में चर्चित रहने वाले कई दिग्गजों के नाम हैं. जैसे- आचार्य कृपलानी, मिनीमाता, पुरुषोत्तम लाल कौशिक, श्यामचरण, विद्याचरण शुक्ल, रमेश बैस.

चुनावी इतिहास

रायपुर लोकसभा का अस्तिव सन् 1952 के पहले चुनाव के समय से है. 1952 में इस सीट दो सांसदों का चुनाव हुआ था. अनारक्षित वर्ग से भूपेन्द्रनाथ मिश्रा से और एक एससी आरक्षित वर्ग से मिनीमाता. दोनों ही कांग्रेस की टिकट पर जीते थे. 57 के चुनाव में राजपरिवार के सदस्यों ने जीत हासिल की. राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह और रानी केशर देवी कांग्रेस की टिकट पर जीते. 62 के चुनाव में रायपुर लोकसभा सीट का विभाजन हुआ और यहां से एक ही सांसद चुने की शुरुआत हुई. 62 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर ही दूसरी बार रानी केशर देवी सांसद बनीं थी. वहीं 67 के चुनाव में लखन लाल गुप्ता और 71 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर विद्याचरण शुक्ल जीते थे. इसी तरह से 52 से लेकर 71 के चुनाव लगातार कांग्रेस पार्टी जीतती रही.

आपातकाल के बाद

1975 के आपातकाल के बाद 77 में हुए चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर के बीच कांग्रेस की करारी हार हुई. जनता पार्टी से तब दिग्गज समाजवादी नेता पुरुषोत्तम कौशिक जीते थे. हालांकि 80 के चुनाव में कांग्रेस की शानदार वापसी हुई. 80 और 84 के चुनाव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गांधीवादी छवि के नेता केयूर भूषण कांग्रेस से निर्वाचित हुए थे.

1989 का चुनाव

कांग्रेस की वापसी को 1989 के चुनाव में जोरदार झटका तब लगा, जब पहली बार इस सीट पर भाजपा का कमल खिला था. 89 के चुनाव में भाजपा की टिकट पर जीतकर रमेश पहली बार संसद पहुँचे थे. हलांकि इसके दो साल बाद ही हुए चुनाव में वीसी शुक्ल ने जीतकर कांग्रेस की वापसी करा दी थी.

96 का चुनाव, भाजपा का गढ़

91 के चुनाव में हुई कांग्रेस की वापसी एक तरह से अंतिम जीत की तरह इतिहास में दर्ज हो गई है. क्योंकि 91 के बाद कांग्रेस इस सीट पर जीत ही नहीं पा रही है. 1996 के चुनाव में भाजपा की टिकट पर रमेश दूसरी बार जीतने में सफल रहे थे. बैस की दूसरी जीत के साथ ही यह सीट भाजपा के गढ़ में बदल गई और बैस लगातार चुनाव जीतते रहे. 89 की पहली जीत के बाद 96, 98, 99, 2004, 09 और 14 के चुनाव तक 7 बार जीत कार रिकॉर्ड बना दिया.

2019 का चुनाव

2019 के चुनाव में भाजपा प्रयोग किया और लगातार 6 चुनाव जीतने वाले रमेश बैस का केंद्रीय मंत्री रहते टिकट काट दिया. बैस की जगह ओबीसी वर्ग से नए चेहरे के तौर पर सुनील सोनी को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत का परचम लहराया. सुनील सोनी रायपुर नगर निगम के महापौर रहे और उन्होंने 2019 के चुनाव में महापौर रहे कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद दुबे को 3 लाख से अधिक मतों से हराकर इतिहास रचा था.

2024 का चुनाव

2024 के चुनाव में भाजपा ने फिर प्रयोग किया और मौजूदा सांसद सुनील सोनी की जगह भाजपा के दिग्गज नेता और साय सरकार में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को टिकट दे दिया. बृजमोहन अग्रवाल के मुकाबले कांग्रेस ने भी प्रयोग किया है. उन्होंने युवा चेहरे और पश्चिम के पूर्व विधायक विकास उपाध्याय को प्रत्याशी बनाया है.

बृजमोहन अग्रवाल, भाजपा प्रत्याशी

भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल छत्तीसगढ़ भाजपा में सबसे वरिष्ठ और ताकतवर नेता हैं. 4 दशक से सक्रिय राजनीति में हैं. लगातार 8 बार के विधायक हैं. लोकसभा चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं, लेकिन 7 लोकसभा चुनावों के संचालक रहे हैं. प्रदेश भर में समर्थकों की मजबूत टीम है. राजनीति के साथ सामजाकि क्षेत्र में सबसे सक्रिय नेता हैं. आर्थिक रूप से समृद्ध परिवार से हैं. राज्य से लेकर केंद्र तक चिर-परिचित चेहरा. अन्य राजनीतिक दलों के साथ भी व्यक्तिगत तौर पर बेहतर संबंध.

विकास उपाध्याय, कांग्रेस प्रत्याशी

वहीं कांग्रेस प्रत्याशी विकास उपाध्याय दो दशक से अधिक समय से राजनीति में हैं. वर्मतान में कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव हैं. रायपुर पश्चिम से विधायक रहे हैं. युवाओं के बीच लोक्रपिय, मिलसार और जुझारू नेता की छवि है. राष्ट्रीय स्तर पहचान रखने के साथ ही गांधी परिवार के भी करीबी हैं.

36 अन्य प्रत्याशी

भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों के साथ ही रायपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में 36 अन्य प्रत्याशी भी हैं.

क्षेत्रीय और भौगोलिक समीकरण

रायपुर लोकसभा सीट में रायपुर और बलौदाबाजार जिले की 9 विधानसभा सीटें शामिल हैं. रायपुर उत्तर, दक्षिण, पश्चिम, ग्रामीण, अभनपुर, आरंग, धरसींवा, भाटापारा और बलौदाबाजार. इन 9 सीटों में 8 में भाजपा काबिज सिर्फ एक भाटापारा सीट में कांग्रेस का कब्जा है. ग्रामीण और शहरी भौगोलिक रूप से समान है, लेकिन आबादी शहरी क्षेत्रों की अधिक है. क्योंकि लोकसभा में क्षेत्र में दो नगर निगम रायपुर और बीरगांव शामिल हैं. इसी तरह से भाटापारा, बलौदाबाजार नगर पालिका है, जबकि आरंग, अभनपुर और धरसींवा नगर पंचायत हैं. शहरी क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ लोकसभा के चुनाव में कई दशकों से बेहद मजबूत रही है, जबकि कांग्रेस शहरी क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव में कमजोर हो चली गई है. इस सीट पर जातिगत समीकरण बेअसर ही रहा है. हालांकि कुर्मी समाज के रमेश बैस 7 बार तक इस सीट से सांसद रहे, जिससे यह चर्चा होती रही है कुर्मी समाज का एक तरफा प्रभाव दिखता है, लेकिन ऐसा नहीं है. इस सीट पर अलग-अलग समाज के लोग भी चुनाव जीतते रहे हैं.

2019 का परिणाम

2019 के चुनाव में कांग्रेस को करारी हार हुई थी. कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद दुबे को भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी ने 3 लाख 48 हजार से भी अधिक मतों से हराकर जीत का रिकॉर्ड बना दिया था. सोनी को 8 लाख 23 हजार 902 वोट मिले थे, जबकि दुबे को 4 लाख 89 हजार 664 वोट मिले थे. तीसरे नंबर बसपा के खिलेश्वर रहे थे, जिन्हें करीब 11 हजार मत प्राप्त हुए थे. वहीं कुल 68 फीसदी मतदाताओं ने मतदान किया था.

इससे पहले 1999 से 2014 के ये रहे थे परिणाम

वर्ष 1999 – भाजपा- रमेश बैस (जीते) – 354736 – कांग्रेस- जुगल किशोर साहू (हारे)- 274676
वर्ष 2004 – भाजपा – रमेश बैस (जीते) – 3,76,029 – कांग्रेस – श्यामाचरण शुक्ल (हारे)- 2,46,510
वर्ष 2009 – भाजपा – रमेश बैस (जीते) – 3,64,943 – कांग्रेस – भूपेश बघेल (हारे) – 3,07,042
वर्ष 2014 – भाजपा – रमेश बैस (जीते) – 6,54,922 – कांग्रेस – सत्यनारायण शर्मा (हारे) – 4,83,276

जीत-हार से ज्यादा लीड की चर्चा

रायपुर लोकसभा सीट में 2024 के चुनाव में जीत-हार से कहीं ज्यादा चर्चा शहर लेकर गांवों, पार्टी कार्यालयों से लेकर चौक-चौराहों तक लीड की है. चर्चा ये कि जो जीतेगा उसकी लीड क्या होगी ? किस अंतर से प्रत्याशी हारेगा ? इसके पीछे शायद वजह कई बड़े दिग्गजों के चुनाव हारने की भी रही है. भाजपा ने रायपुर लोकसभा को एक ऐसा अभेद्य किला बना डाला है, जिसे 1996 के बाद बड़े से बड़े दिग्गज कांग्रेस के नेता भी नहीं भेद पाए हैं. वीसी शुक्ल जैसे दिग्गज नेता 96 के चुनाव में हारे, तो कांग्रेस में हार का सिलसिला ही चल पड़ा. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल, भूपेश बघेल और सत्यनारायण शर्मा भी हारे हैं.

जानकारों का मत

ऐसे में अब युवा नेता और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव विकास उपाध्याय ने अजेय योद्धा बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ चुनाव लड़कर सबको चौंका दिया है. जिस रायपुर में कांग्रेस के बड़े से बड़े दिग्गज चुनाव से दूरी बना रहे वहां विकास विधानसभा चुनाव हारने के बाद फिर से चुनाव लड़ने की तैयार में जुट चुके थे. चुनाव प्रचार में विकास उपाध्याय और बृजमोहन अग्रवाल दोनों ने पूरी ताकत झोंक दी है. लेकिन जानकारों का यही मानना है कि रायपुर सीट में राम का नाम भारी है. हिंदुत्व की लहर और मोदी मैजिक भी प्रभावकारी है. लेकिन बेरोजगारी और किसानों का मुद्दा चुनाव के समीकरण प्रभावित करेंगे. बावजूद इसके चर्चा जीत-हार से कहीं ज्यादा लीड की है |

मुद्दे

मेट्रों सुविधा की मांग, शुद्ध पेयजल, पर्यावरण, बढ़ते औद्योगिकीकरण, आईटी पार्क, धान, किसान, सरकारी भर्तियां, ग्रामीणों क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं. चर्चा में महतारी वंदन और महालक्ष्मी नारी न्याय योजना भी.

कुल मतदाता- 20,46,014 वो
पुरुष मतदाता- 10,39,867 पुरुष मतदाता
महिला मतदाता- 10,05,871 महिला
पिछले लोकसभा चुनाव में 13,96,250 मतदाताओं ने मतदान किया था. मतलब यहां 68 फीसदी मतदान हुआ था |

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