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राग द्वेष आत्मा के परम शत्रु हैं राग द्वेष दूर होने पर ही साम्य समता भाव आता है। ,अरिहंत सिद्ध भगवान केवल ज्ञान रूपी लक्ष्मी के धारी हैं——आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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बांसवाड़ा (विश्व परिवार)। प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज खांदू कॉलोनी बांसवाड़ा में विशाल संघ सहित 1008 श्री श्रेयांसनाथनाथ जिनालय में विराजित हैं।आयोजित धर्म सभा में आचार्य श्री ने मंगल देशना में बताया कि श्रावक धर्म क्या है, पंच परमेष्टि की कैसी आराधना करना चाहिए,चतुर्विध संघ किस प्रकार होता है ,परिवार में कैसे संस्कार दिए जाना चाहिए ,इस पर विस्तृत विवेचना की।

हमारे अरिहंत सिद्ध भगवान ने केवल ज्ञान प्राप्त कर शास्वत मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ किया लौकिक परिपेक्ष्य में आप रुपए पैसे को लक्ष्मी मानते हैं ।हमारे अरिहंत सिद्ध भगवान केवल ज्ञान लक्ष्मी से सुशोभित है। हमारे भगवान वितरागी सर्वज्ञ , हितोपदेशी है भगवान के उपदेश अनुसार आचार्य उपाध्याय साधु परमेष्टि संयम दीक्षा लेकर चारित्र को धारण कर संसार के जन्म मरण से मुक्त होने के लिए मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त करने का पुरुषार्थ करते हैं इसी कारण सभी परमेष्टि हमारे आराध्य है।

ब्रह्मचारी गज्जू भैय्या एवं समाज सेठ श्री अमृतलाल जैन अनुसार आचार्य श्री ने बताया कि सभी श्रावकों को चतुर्विध संघ मुनि ,आर्यिका , क्षुल्लक क्षुल्लिका की आराधना कर विनय करना चाहिए ।शांति धारा में भी सभी का उल्लेख किया जाता है आचार्य श्री ने चतुर्भुज संघ की व्याख्या करते हुए बताया कि साधु चार प्रकार के होते हैं ऋषि ,यति, मुनि और अनगार। वर्तमान में जितने भी साधु है वह अनगार की श्रेणी में हैं श्रावक एवं श्राविका सभी साधुओं की भक्ति आराधना कर आत्म साधना करते हैं णमोकार मंत्र की आराधना साधना से आप धीमे-धीमे आगे बढ़ सकते हैं क्योंकि पंच परमेष्ठी हमारे उपकारी होकर मोक्ष मार्ग के पथ प्रदर्शक हैं ,वह हमें मुक्ति की राह दिखाते हैं। छोटे-छोटे व्रत नियम प्रतिमा लेने से कर्मों की निर्जरा होती है कर्मों की निर्जरा से मुक्ति मिलती है।

राजेश पंचौलिया तथा समाज के प्रतिनिधि अक्षय डांगरा अनुसार आचार्य श्री ने बताया कि णमोकार मंत्र की आराधना श्रद्धा और विश्वास से करने पर रोग कष्ट दूर होते हैं आचार्य श्री ने बताया कि चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज ने दिगंबर मंदिर पर आपत्ति आने पर 18 करोड़ मंत्रों का जाप किया था। णमोकार मंत्र के जाप आसन पर बैठकर करना चाहिए। उच्चारण शुद्ध होना चाहिए मंत्र मन, ज्ञान को स्थिर करने का माध्यम है ,इससे मन विकल्प से दूर रहता है मंत्र से शक्ति प्राप्त होती है इससे मन की चंचलता दूर होती है हमारे शरीर में भी आत्मदेव आत्मा विराजमान है। दीक्षा से जीवन में आमूल चूल परिवर्तन होता है संयम लेकर जीवन में उन्नति के मार्ग पर बढ़ते हैं आत्महत्या नहीं करना चाहिए।

जिस प्रकार आप धन कमाने के लिए पुरुषार्थ करते हैं उसी प्रकार आपको भी दुख सुख में समता भाव धारण कर साम्य भाव रखना चाहिए राग द्वेष हमारे आत्मा के शत्रु हैं राग द्वेष दूर होने पर समता भाव आता है पूर्व जन्मों के पुण्य से श्रेष्ठ मानव कुल मिला है जो संस्कार आप को पूर्वजों से मिले हैं वही धार्मिक संस्कार आप अपने संतान बच्चों को देवें उन्हें श्रावक धर्म अपनाने के हेतु संस्कारित करें।
इससे पुर्व आचार्य श्री के सानिध्य में सुनिल कुमारजी टीकमगढ़ वालो ने मुलनायक श्री श्रेयांसनाथ भगवान की शान्तिधारा की

दीप प्रज्वलन चित्र अनावरण वर्धमान मोतीलाल नायक परिवार द्वारा और जिनवाणी भेट श्रीमती पद्मादेवी वर्धमान नायक परिवार ने किया।

 

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