गौरेला(विश्व परिवार)– जैन दर्शन के अद्वितीय आचार्य श्री कुंदकुंद भगवान ने राह दिखाई और आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने उस राह पर चलकर दिखाया। आचार्य कुंदकुंद भगवान ने निर्यापक श्रमण परंपरा बताई और आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने दो हजार वर्ष उपरांत उस परंपरा को साकार कर निर्यापक श्रमण बनाये। इसीलिए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जैन श्रमण परम्परा के महान संत आचार्य माने जाते हैं। निर्यापक श्रमण श्री वीरसागर महाराज की जिज्ञासा का समाधान करते हुए निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज ने मध्यप्रदेश के दमोह में उपरोक्त मंतव्य व्यक्त किया।आपने बताया कि कुंदकुंद भगवान अद्वितीय हैं और वर्तमान काल में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज भी अद्वितीय हैं।आपने कहा कि दो महान आचार्यों की तुलना वहीं कर सकता है जो गुणों में उनसे भी श्रेष्ठ हो और मुझमें तो उन महान आचार्यों की चरण रज की भी योग्यता की भी नहीं है।
इस जिज्ञासा पर कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की ख्याति जिस ऊंचाई तक पहुंची अन्य आचार्य की क्यों नहीं,इसका समाधान करते हुये मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज ने बताया कि आचार्य महाराज ने वैराग्य की भावना रखने वालों के अंदर ये साहस ये विश्वास जागृत कर दिया कि वह भी वीतरागी बन सकता है। दिगम्बर मुनि की कठिन साधना करना कठिन नहीं सरल है,संभव है। समाज को वीतरागता के पथ पर चलने की संभावना को बल प्रदान किया, समर्थवान होने की अनुभूति कराई,ये प्रेरणा अद्भुत और अद्वितीय है। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की इस क्षमता ने उनको सर्वमान्य सर्वश्रेष्ठ संत आचार्य संसार ने माना। उन्होंने निरीहता को गुफा के अंधकार से,वीतरागता को सागर की गहराई से और अध्यात्म को क्षितिज की ऊंचाई से निकालकर चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया। समाज के सामने रख दिया।जिसे कठिन समझा जाता था वो सरल प्रतीत होने लगा।
सदियों से दिगम्बर जैन मुनि चर्या की कठिन और निर्दोष साधना असंख्य मुनि महाराज करते आये हैं ,अपना आत्मकल्याण किया किंतु ये कठिन साधना को सरलता से निर्दोष पालन किया जा सकता है,ये विश्वास ये अनुभूति आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने संसार को कराई, इन आदि विशेष गुणों को देखकर,पाकर संसार ने उन्हें महान जैनाचार्य माना। आचार्य महाराज कुछ नहीं करते थे मगर सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न हो गये। उनका कोई तीर्थ नहीं था मगर जहां पहुंच जाते तीर्थ बन जाता । किसी कार्य को स्पर्श नहीं किया मगर सभी कार्य साकार हो गये।
मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज ने कहा कि आचार्य महाराज ने समाज हित और राष्ट्रीय हित पर भी ध्यान दिया। जो भी राष्ट्रनेता दर्शनार्थ आते उन्हें अहिंसा के आधार पर आत्मनिर्भर बनाने का ज्ञान देते,मार्ग दिखाते, परोपकार और जनकल्याण की नीति बताते। उनके लेखन सृजन में भी संसार की समस्याओं का समाधान है वहीं जगत कल्याण की भावना है और सभी संदेशों के आधार में अहिंसा और जैन दर्शन के मूल तत्व विद्यमान हैं। दो हजार वर्ष पूर्व आचार्य कुंदकुंद भगवान ने मार्ग बतलाया , आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने उस मार्ग पर चलकर दिखलाया,दोनों ही अद्वितीय हैं और अतुलनीय हैं।
मुनिपुंगव निर्यापक श्रमण श्री सुधासागर महाराज ने कहा कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के कथनों,वीतरगता,निरीहता और आध्यात्मिकता को सिद्ध करना,मेरा हमारा मंच पर विराजमान निर्यापक मुनि प्रसाद सागर जी,निर्यातक मुनि वीरसागर जी,मुनि पद्म सागर जी सहित संपूर्ण मुनि संघ का दायित्व है।