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संकटकाल में पूर्व अर्जित पुण्य रक्षा करता है।पुण्य और फल भिन्न भिन्न रूपी होता है। सुधासागरजी महाराज

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(विश्व परिवार) =पुण्य भिन्न भिन्न रुपी होता है और पुण्यफल भी भिन्न भिन्न होता है। मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज ने पुण्य का विश्लेषण करते हुये बताया कि कर्मों का फल जन्म जन्मांतर तक मिल सकता है/ मिलता है।
 कानपुर से कुण्डलपुर पदविहार करते हुये छतरपुर के ग्राम सटई में जिज्ञासाओं का समाधान करते हुये निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागरजी महाराज ने पुण्य और पुण्यफल का विश्लेषण करते हुये बताया कि दोनों भिन्न भिन्न रूपी होते हैं। महाराज जी ने बताया आज अर्जित पुण्य भविष्य में संकट के समय फल देता है। उस फलोदय से टले संकट को ही चमत्कार कह देते हैं।
  श्रमण शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के सुयोग्य शिष्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज ने पुण्य और कर्म की पहेली को अनावृत्त करते हुये बताया कि कभी कभी भयंकर दुर्घटना में वाहन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है और सवार सुरक्षि बच जाते हैं। दुर्घटना में सुरक्षित बचे ये सवार पूर्व में देव शास्त्र गुरु की यात्रा में साथ चले होगें। संत के पदविहार में पदयात्रा करते हुये कुछ कदम चले होगें।भगवान की शोभायात्रा में नगर भ्रमण करते हुये अनुशासन और समर्पण के साथ चलकर जो पुण्य अर्जन हुआ था उसका ही फल है कि दुर्घटना में वाहन क्षतिग्रस्त हो गया मगर सवार सुरक्षित बच गये।

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