- महाराष्ट्र मंडल में मनाई गई स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर की जयंती
- अमृत काल में सरकार भी चल रही वीर सावरकर के बताए मार्ग पर: तोपलाल
रायपुर(विश्व परिवार)। गोलियां खाकर डिप्रेशन दूर करने वाले एक बार सावरकर को पढ़ लें, तो उनकी डिप्रेशन की बीमारी हमेशा के लिए दूर हो जाएगी। स्वतंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर के जीवन में ऐसी घटनाएं एक के बाद एक होते चली गईं जो उन्होंने सोचा ही नहीं था। लगातार विफलताओं के बावजूद सावरकर न कभी निराश हुए और न ही अपने लक्ष्य से भटके। उनके अटूट आत्मबल, आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता, लेखन कौशल, सहनशीलता, बुद्धिमता, वाकपटुता जैसे अनेक गुणों से आसपास के लोग ही उनसे प्रभावित नहीं थे, बल्कि उनके विचारों से आलोचकों से लेकर ब्रिटिश शासन के अधिकारी भी उनकी अनदेखी नहीं कर पाते थे। वीर सावरकर जयंती पर उक्ताशय के विचार प्रफुल्ल पेंडसे ने व्यक्त किए।
महाराष्ट्र मंडल में सावरकर जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में अध्यक्ष अजय काले के अध्यक्षीय संबोधन के बाद मुख्य वक्ता चार्टर्ड एकाउंटेंट प्रफुल्ल पेंडसे ने कहा कि वीर सावरकर को पता था कि कौन सी घटना का प्रभाव कितना और कितनी देर तक रहेगा। वर्ष 1905 में विदेशी कपड़ों की बड़े पैमाने पर होली जलाने की रूपरेखा उन्होंने लोकमान्य गंगाधर तिलक के विचारों से प्रेरित होकर बनाई थी। इससे उस जमाने में ब्रिटिश गवर्नमेंट को 3.5 करोड़ पॉन्ड का नुकसान हुआ था। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर बाजारों में विदेशी कपड़ों की बिक्री भी बंद हो गई थी।
सावरकर पर लगभग 80 मिनट धाराप्रवाह बोलते हुए पेंडसे ने कहा कि जो कर (हाथ) सवार दे, वही सावरकर होता है। दुनिया में वीर सावरकर ऐसे एकमात्र व्यक्ति थे, जिन्हें दो विभिन्न प्रकरणों में 25- 25 साल के कैद की सजा हुई थी। इसके लिए उन्हें अंडमान निकोबार के सेल्यूलर जेल ले जाया गया। जहां के जेलर आइरिश नागरिकता वाले डेविड बेरी से उनका सामना हुआ। डेविड से चर्चा में सावरकर ने कहा कि इस बात की क्या गारंटी है कि मेरे 25- 25 (50) साल के कैद में रहने तक भारत देश में ब्रिटिश सरकार बनी रहेगी। वहीं कानूनन एक मानव जीवन में कार्यावधि 25 साल की होती है और ब्रिटिश अदालत ने मुझे 25- 25 साल की दो बार सजा दी है अर्थात एक सजा मुझे इस जन्म में भुगतनी है और दूसरी अगले जनम में। अर्थात ब्रिटिश सरकार हिंदू धर्म की पुनर्जन्म वाली अवधारणा को मानती है।
इसी तरह सावरकर ने जेल के जमादार मिर्जा बाबू के अत्याचारों का भी जमकर विरोध किया। मिर्जा सेल्यूलर जेल में कैदियों को क्रूरतम सजा देने के लिए कुख्यात था। इसी दहशत के आधार पर वह कैदियों का मतांतरण भी करवाता था। सावरकर ने न केवल इसका विरोध किया, बल्कि जेल के लगभग सभी कैदियों को उनके मूल धर्म में वापस लाया। साथ ही 90 फीसदी कैदियों को शिक्षित भी किया।
प्रफुल्ल पेंडसे के मुताबिक सेल्यूलर जेल में सावरकर को बिना किसी औजार के नंगे हाथों से सैकड़ों नारियल छीलने होते थे। उसके बाद नारियल को कोल्हू में डालकर प्रतिदिन 30 पॉन्ड अर्थात 13 किलो नारियल तेल निकालना होता था। बैल के द्वारा किया जाने वाला यह कार्य जेल में न केवल उनसे लिया जाता था, बल्कि काम के अनुपात में भोजन नहीं दिया जाता था। इसके बावजूद वीर सावरकर का आत्मबल अटूट रहा। वह अपने 7×12 के सेल में राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत 20 पंक्तियां लिखते। उसे याद करते और अगले दिन उसे मिटाकर फिर नई 20 पंक्तियां लिखते थे। अपने 10 साल के कारावास में विनायक दामोदर ने 6000 पंक्तियां न केवल लिखीं बल्कि उन्हें याद भी किया। साल 1914 में जेल से रिहा होने के बाद सावरकर जब रत्नागिरी पहुंचे, तो उन्होंने सेल्यूलर जेल में लिखी हुई 6000 पंक्तियों को अपनी स्मरणशक्ति से कागज पर दोबारा लिख दिया। जेल के नारकीय जीवन में अवसाद तो उन्हें छू तक नहीं गया था। बल्कि वे राष्ट्र भक्ति से ओतप्रोत ओजस्वी पंक्तियां लिखते थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक तोपलाल वर्मा ने कहा कि बाल्य काल में ही विनायक दामोदर सावरकर ने मित्र मेला समूह बनाकर आजादी के बारे में विचार करना शुरू कर दिया था। लगभग 10 वर्ष की आयु में प्लेग बीमारी की जांच की आड़ पर ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों और डॉक्टर भारतीयों पर जुल्म करते थे, खासकर महिलाओं पर। उससे आक्रोशित चाफेकर बंधुओं ने डब्ल्यूसी रेंड और उसके सहायक लेफ्टिनेंट आयस्टर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसकी पूरे विश्वभर में चर्चा हुई और इस घटना से ही सावरकर को बाल्यकाल में ही देश की आजादी का महत्व समझ में आया और वे इसके लिए संकल्पित हुए।
तोपलाल ने कहा कि युवावस्था में सावरकर ने अभिनव भारत संस्था बनाकर छात्रों को संगठित किया था। वह एकमात्र ऐसे छात्र थे, जिन्हें पुणे के फर्गुसन कॉलेज से वंदेमातरम का नारा लगाने के कारण निष्कासित किया गया था। उन्हें बीए की डिग्री मुंबई में जाकर लेनी पड़ी थी। सावरकर ने गोवा में 11 हजार मतांतरित हिंदुओं का शुद्धिकरण कर दोबारा उन्हें हिंदू बनाया था।
तोपलाल के मुताबिक विनायक दामोदर कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीतियों के खिलाफ थे और यही कारण है कि उन्होंने कभी कांग्रेस की सदस्यता नहीं ली। वे हिंदू महासभा में शामिल हुए। भारत देश के अमृत काल में वीर सावरकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाया जा रहा है। नया भारत बनाने में, विकसित भारत बनाने में वर्तमान सरकार सावरकर के विचारों और सिद्धांतों पर काम कर रही है।इन्हीं प्रयासों से भारत न केवल विश्व का मार्गदर्शन करेगा बल्कि विश्व गुरु भी बनेगा। कार्यक्रम का संचालन सचिव चेतन दंडवते और सह सचिव गीता श्याम दलाल ने किया। आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष श्याम सुंदर खंगन की ओर से किया गया।