(विश्व परिवार)-कुछ रिश्ते अनोखे और इतनी प्रेरणा देने वाले होते हैं कि लोगों के दिलों दिमाग में रच-बस जाते हैं. ऐसा ही रिश्ता था छोटे पर्दे के ‘श्रीराम’ अरुण गोविल और ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ की मोस्ट पॉपुलर होस्ट, मशहूर अदाकारा तबस्सुम का. इत्तेफाक देखिए कि दोनों को अपार लोकप्रियता टीवी के पर्दे पर मिली. वैसे तो दोनों उससे पहले फिल्मों में भी अच्छी पारी खेल चुके थे और अपने अभिनय कौशल से तमाम लोगों का दिल जीत चुके थे. तबस्सुम तो महज तीन साल की उम्र से ही फिल्मी पर्दे पर अदाएं दिखा चुकी थीं तो अरुण गोविल भी बतौर नायक फिल्मों में एक सीधे-सादे सौम्य चेहरे वाले युवक की छवि से आम भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार के दर्शकों के बीच पैठ बना चुके थे. रामायण से पहले अरुण गोविल पारिवारिक फिल्मों के नायक के रूप में भरपूर सराहना हासिल कर चुके थे. आज राजनीति के मैदान में अपने उसी शालीन अंदाज में संबोधन करते देखे जा रहे हैं |
बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि अभिनेत्री तबस्सुम अरुण गोविल की रिश्ते में सगी भाभी लगती हैं. और उनके एक्टिंग के करियर को परवान चढ़ाने में भी तबस्सुम का बड़ा योगदान था. अरुण गोविल को रामायण सीरियल में ‘श्रीराम’ के चेहरे के तौर पर घर-घर में ख्याति मिली तो उसके पीछे भी तबस्सुम की प्रेरणा और मेहनत थी. अगर तबस्सुम ने उनको फिल्मों में एंट्री दिलाने में मदद न की होतीं तो अरुण गोविल की प्रतिभा से आज करोड़ों लोग वंचित रह जाते. टीवी पर अरुण गोविल ने मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की भूमिका को जिस संजीदगी से साकार किया, वह अभिनय जगत का आदर्श बन गया. ‘श्रीराम’ बोलते और सुनते ही आज भी हर किसी के जेहन में अरुण गोविल की मोहक मुस्कान लिये सूरत चमक उठती हैं |
सत्तर के दशक में मेरठ से पहुंचे मुंबई
ये कहानी सत्तर के दशक की है. सन् 1975 के आस-पास अरुण गोविल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर मेरठ से मुंबई पहुंचे. हालांकि अरुण गोविल उन कलाकारों की तरह नहीं थे जिन्हें मुंबई में रहने का कोई ठिकाना नहीं था. इस मामले में वो थोड़े खुशकिस्मत थे. उनके बड़े भाई विजय गोविल का मुंबई में अपना कारोबार था. अरुण गोविल का पहला मकसद उसी कारोबार से जुड़ना था. लेकिन वहीं घर में जब कलाकार भाभी तबस्सुम मिलीं तो उनके भीतर का अभिनेता भी कुलबुलाने लगा. मेरठ में कॉलेज के दिनों में नाटक आदि किया करते थे, लिहाजा वह बैकग्राउंड काम आया. ऊपर से भाभी तबस्सुम का साथ मिल गया |
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन की शूटिंग देखने जाते थे
अरुण गोविल का बचपन शाहजहांपुर में बीता था. उनके पिता सरकारी अफसर थे. कहते हैं न कि होइहें वही जो राम रचि राखा. मुंबई में बड़े भाई विजय गोविल कारोबार के लिए निकल जाते तो तबस्सुम फिल्मों और टीवी सीरियल की शूटिंग के लिए निकल जातीं. शुरुआत में अरुण गोविल दोनों ही जगहों पर जाते रहे. एक तरफ कारोबार की दुनिया तो दूसरी तरफ फिल्मी दुनिया. अपने एक इंटरव्यू में अरुण गोविल ने बताया था कि वो तबस्सुम भाभी के साथ दूरदर्शन के स्टूडियो में फूल खिले हैं गुलशन गुलशन के सेट पर जाते थे और उनको बड़ी हस्तियों के साथ होने वाले उनके इंटरव्यू को साक्षात देखते थे|
पिता सरकारी अफसर बनाना चाहते थे
मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से पढ़े अरुण गोविल की छवि एक ऐसे युवक की थी जो सामान्य खाते-पीते परिवार में किसी संघर्षशील युवा से मेल खाती थी लिहाजा उन्हें इसी मिजाज की फिल्में भी मिलीं. अरुण गोविल जब 1975 में मुंबई पहुंचे तो भाभी तबस्सुम को भी लगा कि उनकी पर्सनाल्टी एक अभिनेता जैसी है. ऐसे में उन्होंने अरुण गोविल की ख्वाहिश को पूरी करने की ठानी. हालांकि अरुण गोविल के सरकारी अधिकारी पिता अपने बेटे को भी सरकारी अधिकारी बनाना चाहते थे. लेकिन उनका दिल अभिनय की दुनिया में बसता था |
तबस्सुम ने मिलवाया था ताराचंद बड़जात्या से
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में तबस्सुम की अपनी पहचान थी. तमाम फिल्मों में अभिनय करने के पश्चात् उन्होंने सन् 1972 में मुंबई दूरदर्शन पर एक सेलिब्रिटी टॉक शो होस्ट किया, यह शो 21 साल चला. सन् 1975 तक आते आते यह शो काफी पॉपुलर हो चुका था और तमाम फिल्मी हस्तियों के बीच तबस्सुम की एक प्रतिष्ठा बन चुकी थी. इसी बीच उन्होंने राजश्री प्रोडक्शन के निर्माता ताराचंद बड़जात्या से अरुण गोविल की मुलाकात करवाई, जिसके बाद उन्हें पहली फिल्म मिली- पहेली. यह सन् 1977 में रिलीज हुई. फिल्म का प्रभाव औसत रहा लेकिन दो साल बाद 1979 में सावन को आने दो फिल्म से राजश्री प्रोडक्शन और अरुण गोविल का रिश्ता भी काफी मजबूत हो गया. आगे चलकर दोनों ने मिलकर कई मशहूर पारिवारिक फिल्में पेश की |
रिश्ते की भाभी ही नहीं मेंटॉर भी थीं तबस्सुम
सन् 2022 में जब अरुण गोविल की भाभी तबस्सुम का 78 साल की उम्र में निधन हो गया तब अरुण गोविल ने अपने कुछ इंटरव्यूज़ में उस रिश्ते की कई अहम बातों का खुलासा किया था. उन्होंने कहा था- तबस्सुम हमारे परिवार की सबसे प्रिय और हंसमुख सदस्य थीं. हमेशा उसी तरह से मुस्कराती थीं जैसे उनको टीवी के पर्दे पर देखा जाता था. आम जिंदगी में भी वह उतनी ही खुशमिजाज थीं. अरुण गोविल ने ये भी बताया था कि तबस्सुम केवल उनकी भाभी ही नहीं थीं बल्कि उनकी मेंटॉर भी थीं |
अरुण गोविल ने बताया था कि तबस्सुम का असली नाम किरण था. तबस्सुम के पिता का नाम था- अयोध्या प्रसाद सचदेव और उनकी मां का नाम था- असगरी बेगम. पिता स्वतंत्रता सेनानी थे तो वहीं मां का रिश्ता लेखन,कला और संगीत से भी था. मां की प्रेरणा से ही किरण बतौर बाल कलाकार फिल्मों में आईं और अपना शुरुआती नाम बेबी तबस्सुम रखा. बाल कलाकार के रूप में उन्होंने नरगिस के बचपन से लेकर कई यादगार रोल किए हैं |