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सुख और दुख – एक सिक्के के दो पहलू : क्षु. प्रज्ञांश सागर

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भटगांव(विश्व परिवार) | परम श्रद्धेय श्रुताराधक संत क्षुल्लक श्री १०५ प्रज्ञांश सागर जी महाराज का श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, रानी बाग में मंगल आगमन पर समस्त समाज द्वारा भावभीना स्वागत किया गया। भक्तों को सम्बोधित करते हुए क्षुल्लक श्री ने कहा कि मनुष्य के जीवन में वेदनीय कर्म के उदय से आने वाले दो मुख्य भाव सुख और दुःख दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं।

साता वेदनीय के उदय से जब किसी इंसान के जीवन में सुख का उदय होता है तो निश्चित है वह कभी ना कभी अस्त तो होगा ही और सुख जाते समय दुःख देकर जाता है। अगर कभी किसी इंसान के जीवन में असाता वेदनीय का प्रभाव है तो दुःख उदय में आता है और जब वह कर्म निर्जरा को प्राप्त होता है और सुख रूप परिणत होकर जाता है।

किन्तु विचारणीय विषय है कि जो कर्म हमें दुःख देकर जाता है उसमें हम रोते-पीटते, चीखते-चिल्लाते हैं और जो कर्म हमें सुख देकर जाता है उसमें हम आनन्द का अनुभव करते हैं। इसीलिए हमें सुख और दुःख दोनों में समता भाव से रहना चाहिए। सुख में फूलना नहीं चाहिए और दुख में कूलना नहीं चाहिए।

उल्लेखनीय है कि क्षुल्लक श्री का यहां से प्राचीन श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, भटगांव (सोनीपत) के लिए मंगल प्रस्थान हुआ। अत्यंत हर्ष का विषय है कि हम सभी के प्रबल पुण्योदय से क्षुल्लक श्री का आगामी चातुर्मास 2024 राजधानी दिल्ली में सम्भावित है।

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