(विश्व परिवार) –भारतीय संस्कृति में त्योहारों का बहुत बड़ा महत्व है l सभी त्योहार होली ,दशहरा और दिवाली आसुरी शक्तियों पर विजय और धर्म की स्थापना के रूप में बनाए जाते हैं l ज्यादातर त्यौहार प्रकृति के अनुरूप बनाए जाते हैं l होली ऐसा ही एक त्यौहार है l जो बसंत पंचमी से ही प्रारंभ हो जाता है l बसंत पंचमी के बाद से ही बच्चे और युवा होली जलाने के लिए होली स्थान पर लकड़ीया उपले इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं l
होली का त्यौहार फागुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है l उससे एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है l होलिका दहन से पहले समाज के सभी वर्गों की स्त्रियां पूजा की थाली लेकर एकत्रित की हुई लकड़ीयों जिसे होलीका भी कहते हैं के चारों ओर घूम कर पूजा करती हैं l कलावा बाँधती हैं और उपलों की माला चढ़ाती हैं l मुहूर्त के समय पर पूजा कर होलिका दहन किया जाता है l जिसमें बच्चे और बड़े गेहूं की बालियां भूनते हैं l इसलिए इस त्यौहार को होला भी कहा जाता है l कुछ लोग होलिका की अग्नि को अपने घरों में ले आते हैं l इस अग्नि से घर में चूल्हा जलाना शुभ माना जाता है l भुनी हुई गेहूं की बालियों को प्रसाद की तरह दाना निकाल कर खाया जाता है l होलिका दहन के पीछे भारतीय शास्त्रों में जो कथा मिलती है उसके अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक घमंडी राजा था l जो अपने आप को भगवान मानने लगा था l उसने अपने राज्य में भगवान का नाम लेने पर पाबंदी लगा दी थी l इसी हिर्नाकश्यप को एक पुत्र था l जिसका नाम प्रहलाद था l वह ईश्वर का परम भक्त था l हिर्नाकश्यप ने अपने पुत्र को बहुत यातनाएं दी l वह ईश्वर की भक्ति छोड़कर उसे ईश्वर माने l पर वह नहीं माना l तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन ,जिसका नाम होलीका था, और जिसे वरदान प्राप्त था वह अग्नि में नहीं जल सकती थी l उसको प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया l होलीका प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई l और उस अग्नि में होलीका तो जल गई परंतु प्रहलाद का कुछ ना बिगड़ा l इस प्रकार यह त्यौहार होलिका के विनाश और प्रहलाद की प्रभु भक्ति की याद दिलाता है l तब से ही होलिका जलाने की परंपरा चली आ रही है l हिर्नाकश्यप का वध भगवान ने नरसिंह का अवतार लेकर किया l और इस प्रकार एक आसुरी शक्ति का अंत हुआ l
होलिका दहन से अगले दिन जिसे फागुआ या धूलंडी भी कहा जाता है, होली खेली जाती है l बच्चे गुब्बारों में रंग पानी भरकर इकट्ठे कर लेते हैं l और आते जाते लोगों पर फेंकते हैं l वही युवक, लड़कियां, महिलाएं बुजुर्ग अपनी-अपनी टोलिया बनाकर गुलाल और रंग लेकर एक दूसरे के लगाते हैं l होली के गीत गाते हुए गली मोहल्ले में घूमते हैं l और अपने परिचितों रिश्तेदारों के यहां जाकर रंग खेलते हैं l इस अवसर पर गुजिया ,पापड़ दही भल्ले ,पकौड़ियां गाजर का पानी आदि का नाश्ता करते हैं l कुछ लोग इस अवसर पर भांग भी चढ़ा लेते हैं l लाल ,नीले, पीले, हरे, गुलाबी रंगों से पुत जाने के कारण कई लोग पहचान में नहीं आते हैं l दोपहर तक होली का यह हंगामा चलता है और उसके बाद नहा धोकर खाना खाकर शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं l जगह-जगह होली मिलन के कार्यक्रम बसंत पंचमी के बाद से ही शुरू हो जाते हैं l और होली के बाद भी कई दिनों तक चलते हैं l होली के कार्यक्रमों में लोग इकट्ठे होकर गले मिलते हैं l फूलों की होली खेलते हैं l साहित्य ,संगीत ,कवि सम्मेलन ,हास्य व्यंग्य, चुटकले का आनंद लेते हैं l होली के त्योहार पर लोगों में किसी प्रकार का भेदभाव ऊँच नीच नहीं रहती l अमीर गरीब के और गरीब अमीर के बिना किसी जाति और धर्म के भेदभाव के एक दूसरे के रंग लगाते हैं l वास्तव में भारतीय संस्कृति के सभी त्योहार समाज़ में समानता और सद्भावना की स्थापना करते हैं l होली समाज में एकता और समानता का भाव स्थापित करती है l यह सभी जाति धर्म और सभी वर्ग के लोगों के द्वारा मनाया जाता है l होली वास्तव में प्यार का त्यौहार है जो आपसी प्रेम और एकता का संदेश देता है l