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रत्नत्रय सहित 7 तत्वों पर सही श्रध्दान कर सम्यक दर्शन प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त करने का पुरुषार्थ करें – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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बांसवाड़ा(विश्व परिवार) | पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सहित खांदू कालोनी में विराजित हैं आज की धर्म सभा में आचार्य श्री ने धर्म देशना में बताया कि केवल ज्ञानी परमात्मा जिनेन्द्र भगवान समवशरण की धर्मसभा में विराजित रहते हैं उनकी दिव्य ध्वनि गणधर स्वामी के माध्यम से देशना को सभी प्राणी अपनी अपनी भावना भाषा अनुसार ग्रहण करते हैं आठ कोष्ट में देवता एक में मुनि एकमें आर्यिका श्राविका एकमें मनुष्य तथा एक कोष्टमें तीर्यंच श्रवण करते हैं ।आदिनाथ भगवान ने भरत के प्रश्न के उत्तर में बताया था कि तुम्हारे कुल में तुम्हारा पुत्र मरीचि कुमार अंतिम 24 वे तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी होंगे यह सुनकर मरीचि मान कषाय के वसीभूत होकर धर्म सभा से चले गया और बोले अगले भव किसने देखा मैं तो इसी भव में तीर्थंकर बनूंगा और उन्होंने 363 पाखंड मत चलाए ।जब अनेक पर्याय में होते हुए मरीचि का जीव वापस मनुष्य पर्याय में भगवान महावीर स्वामी के रूप में आए तब महावीर स्वामी ने उन 363 पाखंड मतों का अपने देशना से खंडन किया ।ब्रह्मचारी गज्जू भैय्या एवं समाज अध्यक्ष सेठ अमृत लाल अनुसार आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने उपदेश में बताया कि कर्म कैसे उदय में किसके आएंगे कर्म बंध क्यों होता हैं कोई नहीं जानता सभी जानते हैं राग द्वेष अनादिकालीन संस्कार के निमित्त रागऔर द्वेष होता है ऐसे जीव सतत कर्म का बंध करते रहते हैं कर्म उदय में आने पर निमित्त पर दृष्टि जाती है कि इन्होंने मेरा बुरा किया, इनके कारण मुझे दुख मिल रहा है। भगवान की जिनवाणी जिन शासन कहता है कि हमारे कर्मों के उदय में आने के कारण हम दुखी हैं।भारत देश पराधीनता से स्वाधीन हुआ पराधीनता किसी को भी अच्छी नहीं लगती गृहस्थ जीवन हमारा है इसमें हम भी अनेक कर्म से पराधीन है हमारी आत्मा भी पराधीन है इस पर भी कर्मों ,पुद्गल ,पर द्रव्य उदय में आने से कर्म बंध है। कर्मों के उदय में आने पर सभी को सहन करना पड़ता है सभी परेशान होते हैं दुखी होते हैं चाहे घर हो, परिवार हो ,समाज हो सभी में कर्म उदय के कारण अशांति होती है।तीर्थंकर भगवान अपनी जिनवाणी धर्म रत्नत्रय सम्यक दर्शन ,सम्यक ज्ञान सम्यक चारित्र की औषधि से हमारे जन्म मरण के रोग दूर करने का प्रयत्न करते हैं।आप सभी घर में रहने में अशांति से रहते हैं, मन व्याकुल होकर शांत नहीं रहता है। इसके उपाय में आचार्य श्री ने बताया कि समता धैर्य धन ही अशांति दूर करता है ।साधु भी हर परिस्थिति में समता की साधना करते है राजेश पंचोलिया एवम समाज प्रतिनिधि अक्षय डोंगरा अनुसार आचार्य श्री ने कथानक से बताया कि दुकान में ग्राहक अशांति करता है नाराज होता है तब भी आप चुप रहकर शांति रखते हैं क्योंकि आपका व्यापार का स्वार्थ होता है कठोर बात भी आप सहन करते हैं, इसी प्रकार का साम्यभाव आपको अपने घर, समाज में रखना चाहिए क्योंकि भगवान के वचन परम औषधि हैं भगवान की वाणी आचार्य के माध्यम से हमें प्राप्त हुई है संसारी प्राणी ने विषय कषाय को हृदय में रखा है इस मोह रोग को दूर करने का प्रयास नहीं करते अनादि काल से नाना प्रकार की चारों गति की पर्याय में सभी इंद्रीय के सुख आपने लिए हैं ।चाहे स्पर्श सन ,रसना ,चक्षु इंद्रीय हो या कामवासना परिग्रह हो अनेक विषयों को अनेक बार भोगा है। विषय भोग ,भौतिक सुख का त्याग करने से दीक्षा रूपी संयम अमृत प्राप्त होता है ।कष्ट साधु जीवन में भी आते हैं किंतु साधु समता ज्ञान से सहन करते हैं। भगवान की वाणी गंभीर , हित मीत प्रिय हितकारी और निर्दोष होती है। आस पास के नगर के समाज जन आचार्य श्री को नगर पधारने का निवेदन कर रहे है मंदिर समिति द्वारा अतिथियों का सम्मान किया गया हैं श्री जी की शांति धारा ओर आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन ,जिनवाणी सौभाग्यशाली परिवार ने किया |

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