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जीवन में मंगल धर्म से होता है।धर्म,त्याग,तपस्या से कर्मो की निर्जरा करे,आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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 प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज की मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज संघ सहित पारसोला में विराजित है।

(विश्व परिवार)-आज धर्म सभा में आचार्य श्री ने बताया कि सिद्ध चक्र महामंडल विधान की सातवीं पूजा में 512 द्रव्य विधानाचार्य पंडित कीर्तिय के निर्देशन में अर्पित किए । अरिहंत भगवान ,सिद्ध भगवान, आचार्य परमेष्ठी और उपाध्याय परमेष्ठी के गुणों के सौ सौ अध्र्य चढ़ाये गए। यह मंगल देशना पारसोला सम्मति भवन में आयोजित सिद्धचक्र विधान पूजन की धर्म सभा में पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने प्रकट की। ब्रह्मचारी गज्जू भैया ,राजेश पंचोलिया इंदौर अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि अरिहंत भगवान के गुणों की पूजा कर रहे हैं, आप सभी मनुष्य हैं यह मनुष्य जन्म बहुत कठिनता से प्राप्त होता है मां के गर्भ में आना और जन्म हो जाना यह पर्याप्त नहीं है शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य जन्म अल्प आरंभ और अल्प परिग्रह किए जाने का फल है। मनुष्य जन्म में परिग्रह और आरंभ कम करना चाहिए परिग्रह अधिक करने से आरंभ भी अधिक करना होता है और इससे हिंसा भी होती है। मनुष्य जन्म में जो वस्तुएं प्राप्त है वह देवताओं को प्राप्त नहीं होती है आधुनिक विद्युत उपकरण से सुख शांति नहीं मिलती है अनेक ख़रबपति बहु मंजिला इमारत में अकेले बगैर परिवार के नौकरों के साथ रह रहे हैं तो ऐसा धन भौतिक संपदा किस काम का ? आचार्य श्री ने बताया कि धन से धर्म नहीं मिलता है धर्म जिनालयों में, धर्म देव शास्त्र गुरु से, धर्म संत समागम और उनके उपदेश से मिलता है ।अहिंसा सत्य अचोर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के माध्यम से पांच पापों से निवृत्ति करना चाहिए संयम तप धर्म के अंग है धर्म धारण करने के लिए ही यह मनुष्य पर्याय मिली है ।देव पर्याय में धर्म और संयम नहीं है ।इस बात का हमें सतत चिंतन करना चाहिए धर्म करने के लिए भी स्वस्थ शरीर का होना जरूरी है स्वस्थ शरीर से भगवान के दर्शन, अभिषेक, पूजन का उत्तम फल मिलता है ।आचार्य श्री ने आगे बताया कि अरिहंत भगवान और सिद्ध भगवान के गुणों की पूजा कर रहे हैं ,पहले धर्म सभा से लोगों को वैराग्य होता था किंतु वर्तमान में धर्म सभा से किसी को वैराग्य नहीं हो रहा है ।विगत दिनों आपके नगर में पंचकल्याणक महामहोत्सव हुआ उसे अपने क्या सीखा? क्या याद रखा कि भोजनशाला कैसे थी हमें भोजन नाश्ता चाय पानी की अच्छी व्यवस्था थी? यह आपको याद है किंतु यह याद नहीं है कि पंचकल्याणक में पाषाण और धातु की प्रतिमा को किस प्रकार मंत्रोचार से संस्कारित कर उन्हे भगवान बनाया गया।
पंचकल्याणक और सिद्ध चक्र मंडल विधान से जीवन को संस्कारित करें ,संसार में उत्तम वस्तु धर्म है उसको प्राप्त करने का प्रयास करें । धर्म और अधर्म का भेद समझे सात तत्व और 6 द्रव्यों का भेद समझ कर चिंतन करें ।जीवन में मंगल धर्म से होता है धर्म के संस्कार से त्याग और तपस्या से कर्मो की निर्जरा कर मनुष्य जीवन को सार्थक करने का प्रयास करें।

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