(विश्व परिवार)-समय परिवर्तन का संदेश देता है उसे संदेश पर ध्यान देने की जरूरत है, जीवन का विकास और उत्थान के लिए परिवर्तन जरूरी है। नूतन विक्रम संवत प्रारंभ हुआ है पारसोला नगर ने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ,सिद्धचक्र मंडल विधान का लाभ लिया है तथा बहुत वर्षों की प्रतीक्षा भी चातुर्मास की घोषणा से पूरी हो गई है। समाज को सजगता और सावधानी की जरूरत है जो संत समागम का लाभ मिला है उससे पुण्य अर्जन का अवसर छूटना नहीं चाहिए भगवान की पूजा आरती करना पर्याप्त नहीं है दुर्लभ मनुष्य पर्याय में अनेक अवसर आते हैं उन अवसर का सदुपयोग करना चाहिए जन्मदिन के साथ संभावित मरण का भी ध्यान रखना जरूरी है क्योंकि जीवन की हर सांस ,हर पल नश्वरता का संदेश देता है ।दुर्लभ मनुष्य पर्याय में जीवन को कैसा सुरक्षित बनाएं उसकी शिक्षा लेकर जीवन को संस्कारों से सार्थक करें । यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने पारसोला की धर्म सभा में प्रगट की। गज्जू भैय्या राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने जीवन की जन्म ,बचपन ,किशोर अवस्था, यौवन अवस्था और बुढ़ापे का जिक्र कर बताया कि जो समय बीत जाता है वह वापस नहीं आता है यौवन अवस्था बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे जीवन अच्छा भी होता है और जीवन बिगड़ भी जाता है। संत समागम से युवा अवस्था में सही दिशा मिलती है जिससे दशा सुधर जाती है ।जीवन में व्रत नियम का बांध बनाकर जीवन को संयमित और संस्कारित करने से जीवन उन्नत होता है। आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि श्री हितेंद्र सागर जी ने प्रवचन में बताया कि श्रावक को द्रव्य ,क्षेत्र, काल और भाव के दृष्टिकोण से भक्ष्य और अभक्ष्य पदार्थ का ज्ञान होना चाहिए जिस प्रकार पानी को रोक कर बांध बनाने से पानी ऊपर उठता है , इसी प्रकार जीवन में भी व्रत नियम की बाढ़ लगाने से जीवन ऊपर उठता है संस्कारित होता है और विकार रूपी कर्मबंध नहीं होते हैं ।जैन धर्म रतन का दीप है नियम से अक्षय संपदा मिलती है।
धर्म सभा में शिष्या आर्यिका श्री महायशमति माताजी ने बताया कि श्रावक श्रविका का मनुष्य पर्याय में क्या कर्तव्य है इसकी विवेचना में बताया कि श्रावक श्राविका को भगवान के दर्शन पूजा ,अर्चना ,परिणाम में छल कपट दूर रख निर्मलता और सरलता से करना चाहिए। मनुष्य को चार प्रकार के दान देना चाहिए आहार दान, औषधि दान अभयदान ,और शास्त्र दान मुख्य है आहार दान की चर्चा करते हुए माताजी ने बताया कि आहार देने वाले में क्या गुण होना चाहिए इन गुणों से आहार परिणाम और भाव निर्मल रखकर दिए जाते हैं तो पुण्य की वृद्धि होती है आहार देने वाले में श्रद्धा, संतोष, विज्ञान लोभ का अभाव ,नवधा भक्ति सत्यता ,क्रोध का त्याग और क्षमा गुण का होना जरूरी है इससे परिपूर्ण जो दाता साधु को आहार देता है उसके पुण्य में वृद्धि होती है।