Home इंदौर भगवान चिंतामणि रत्न और कामधेनु समान चिंता दूर कर सुख प्रदान करते...

भगवान चिंतामणि रत्न और कामधेनु समान चिंता दूर कर सुख प्रदान करते हैं-आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

72
0

पारसोला से बांसवाड़ा की और हुआ विहार सजल नेत्रों से दी बिदाई

(विश्व परिवार)-विक्रम संवत 2081 का प्रारंभ क्षेत्र शुक्ला एकम से प्रारंभ हुआ जैन शास्त्रों के अनुसार श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से वर्ष प्रारंभ का उल्लेख है किंतु रूढ़ी और मान्यता को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है , रूढ़ी और मान्यता जो हितकारी हो उसी को मनाना चाहिए ।कल के प्रवचन में भी वर्ष परिवर्तन के साथ जीवन में परिवर्तन लाने का उपदेश किया था धर्म शाश्वत है, समय परिवर्तन का धर्म पर कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि धर्म स्थाई होता है और स्थाई धर्म , धारण करने योग्य होता है ।दिन-रात के परिवर्तन के बाद सूर्योदय से आपके जीवन में उत्साह ताजगी आती है। दैनिक कार्य के बाद धार्मिक कार्य करना चाहिए प्रातः काल श्री जी के दर्शन अभिषेक पूजन करना चाहिए क्योंकि भगवान दुख दूर करने में समर्थ है । भगवान के प्रति सम्यक दर्शन स्थिर नहीं है, दृढ़ता नहीं है ,जैसे भगवान ने वीतरागता प्राप्त की वैसे वीतरागता हमें भी प्राप्त हो यह चिंतन करना चाहिए संसार की वृद्धि शरीर भोग से होती है । जैसे दर्पण में मुंह चेहरा देखकर आप शरीर को सेट करते हैं बाल ठीक करते हैं चेहरे , बाल ,कपड़ों को ठीक करते हैं हर व्यक्ति दर्पण के सामने 15 से 20 मिनटसे ज्यादा समय लगता है आपको भगवान के समक्ष खड़े होकर भी भगवान को देखकर अपने अपसेट जीवन को सेट करने का प्रयास करना चाहितभी जीवन में परिवर्तन आएगा और दुख दूर होकर सुख मिलेगा यह मंगल देशना पार सोला में विराजित चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की पट्ट परंपरा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने धर्म सभा में प्रकट की। ब्रह्मचारी गज्जू भैया राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि विषय भोग विरक्ति वीतरागता का संदेश मिलता है जैसा अनुराग आप विषय भोग शरीर के लिए करते हैं वैसा ही अनुराग देव शास्त्र गुरु के प्रति करना चाहिए क्योंकि देव शास्त्र गुरु धर्म के प्रति अनुराग रखने से जीवन में सुख और पुण्य की प्राप्ति होती है। संसार शरीर अपना नहीं है सजावट में आप अधिक समय लगाते हैं आत्मा निकलने मृत्यु होने पर शरीर यहीं रह जाता है वस्तुतः शरीर का अनुराग देव शास्त्र गुरु के लिए संयम तप साधना के लिए होना चाहिए। आचार्य श्री ने बताया कि आपकी आत्मा कल्प वृक्ष समान हैं भगवान चिंतामणि रत्न और कामधेनु समान हैं जो हमारी चिंता दूर कर सुख धर्म प्रदान करते हैं। संघस्थ शिष्य मुनि श्री हितेंद्र सागर जी महाराज ने भक्ष्य और अभक्ष्य द्रव्यों के बारे में बताया कि द्रव्य ,क्षेत्र , काल और भाव अनुसार चार भेद होते हैं भक्ष्य और अभक्ष्य भोजन सामग्री के अलावा अन्य दृष्टिकोण से भी होते हैं भोजन सामग्री जो शरीर के अनुकूल हो वह करना चाहिए।शुद्ध व्यक्ति द्वारा स्पर्शित सामग्री का भोजन करना चाहिए भोजन के समय हिंसात्मक वचन होने पर भोजन अभक्ष्य हो जाता है वस्त्र के बारे में बताया कि जो कपड़े पहने जाते हैं उन कपड़ों पर पशु पक्षी अश्लील चित्र नही होना चाहिए।संभावित विहार बांसवाड़ा नगर की ओर होगा। अनेक नगरों की समाज द्वारा गुरुदेव को आगमन हेतु श्रीफल भेंट कर निवेदन किया जा रहा है ।आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का विशाल संघ सहित शाम को 5 km सेवा नगर बिहार हुआ रात्रि विश्राम सेवा नगर होगा 11 अप्रैल को श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर नरवाली के लिए विहार होगा समाज ने अश्रुपूरित नेत्रों से विदाई दी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here