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संसार रूपी समुद्र से देव शास्त्र गुरुओं एवम धर्म का अवलंबन से पार होते है-आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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घाटोल(विश्व परिवार)-शास्त्रों में संसार को समुद्र सागर की उपमा दी है जिस प्रकार समुद्र बहुत गहरा होता है उसका कोई किनारा पास नहीं होता एक बार समुद्र में डूबने पर व्यक्ति का निकलना मुश्किल होता है ,उसी प्रकार इस संसार से गृहस्थ का निकलना अत्यंत कठिन है क्योंकि संसारी प्राणी को इसमें सुख नजर आता है इसलिए आप राग मोह के कारण संसार को छोड़ना नहीं चाहते हैं संसार में रहते हुए अनंत काल में अनेक पर्याय बदल ली। यह देशना पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने घाटोल की धर्म सभा में प्रगट की। नगर के मूल नायक श्री वासु पूज्य भगवान 12वें तीर्थंकर है और 24 तीर्थंकरों में वह प्रथम बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर हैं तीर्थंकरों के पास भी धन वैभव लक्ष्मी की कमी नहीं थी उन्होंने अपने राज पाट,महल ,परिवार से राग मोह को छोड़ा और जगत के कल्याण की भावना लेकर धर्म कार्य करते हुए तीर्थंकर बने हैं ।भगवान समता रूपी धन रखते हैं । तीर्थंकर देवों द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलकर ही संसार समुद्र से पार उतरा जाता है इसलिए तीर्थंकर वाणी धर्म देशना का आश्रय लेकर संसार के समुद्र से पार उतरा जा सकता है|

जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है आपके द्वारा प्रतिदिन जो भी क्रिया की जाती है वह विवेक के साथ करना चाहिए क्योंकि श्रावक को श्रद्धावान ,विवेकवान और क्रियावान होना चाहिए जिनालय में प्रवेश के समय विवेक पूर्वक कार्य करना चाहिए श्रद्धा विवेक के साथ की जाने वाली क्रिया से मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है।आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व आर्यिका श्री महायश मति माताजी ने उपदेश में बताया कि
संसार में गुरु का उपदेश और वचन ग्रहण करने योग्य हैं क्योंकि गुरु के वचन हितकारी होते हैं, उपकारी होते हैं कल्याणकारी होते हैं ,गुरु के वचन सामान्य वचन नहीं होते। इसलिए गुरु के वचनों को सुनकर ग्रहण करें, उन्हें समझ कर चिंतन करें और जीवन में उतारने का प्रयास करें माताजी ने एक ग्वाले और मुनिराज के कथानक के माध्यम से बताया कि एक ग्वाले ने मुनिराज की जंगल में रात्रि भर सुरक्षा की, सेवा की । प्रातः मुनि राज ने नमो अरिहंतानम का एक छोटा मंत्र जाप करने को दिया वह ग्वाल दिनभर मंत्र का जाप करता था एक बार ग्वाले की गाय नदी में चली गई उन्हें बचाने में वह डूब गया किंतु डूबते हुए भी उसने नमोकर मंत्र का जाप नहीं छोड़ा उसे मंत्र के जाप से उसकी गति सुधर गई और वह आगामी जीवन में सेठ सुदर्शन बना सेठ सुदर्शन ने भी जीवन में धर्म कर बाद में वह भी मोक्ष गामी हो गए। इसलिए गुरु के वचनों का बहुत प्रभाव होता है गुरु के वचनों से जीवन में आमूलचूल परिवर्तन होता है इसलिए गुरु के वचनों को जीवन में चरितार्थ कर धारण करना चाहिए। माता जी ने तीन प्रकार के व्यक्तियों की विवेचना कर बताया कि कोई मनुष्य परोपकारी होते हैं कोई स्वउपकारी होते हैं और तीसरे प्रकार के मनुष्य स्व पर उपकारी होते हैं|

परोपकारी मनुष्य नदी के पुल के समान होते हैं जिस पर चलकर व्यक्ति पुल पर से पार हो जाता है किंतु पुल वहीं का वहीं रहता है। दूसरे प्रकार के स्वपरोपकारी होते हैं जो मुक्त केवली होते हैं या नदी में तैरने वाला तैराक जो स्वयं पार हो जाते हैं तीसरे प्रकार के स्व पर उपकारी अरिहंत भगवान ,तीर्थंकर आचार्य साधु परमेष्ठी होते हैं यह नाव के समान होते हैं जिस पर जो बैठता है वह भी नदी से पार होता है और नाव भी नदी से पार हो जाती है इसी कारण गुरु को तरण तारण कहा गया है जो संसार समुद्र से खुद भी तैरते हैं और दूसरों को भी तिराते हैं गुरु के सानिध्य में व्रत ग्रहण करना चाहिए नियमों के प्रति आस्था विश्वास श्रद्धा होना चाहिए इसी प्रकार हमारे को श्रद्धा भक्ति आस्था विश्वास जिनेंद्र भगवान के प्रति होना चाहिए ।श्रावको को जीवन में आगे बढ़ने के लिए 12 प्रकार के व्रत का पालन करना चाहिए तभी आपका जीवन सार्थक होगा आर्यिका माताजी ने आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज का गुणानुवाद कर बताया कि वह अपने व्रत नियम के प्रति सजग रहे उन्होंने मुनियों का मार्ग दिखलाया, जिनवाणी और जिनालयों का संरक्षण किया आज आचार्य शांति सागर जी के संदेश को घर-घर पहुंचना समाज का कर्तव्य है|

माताजी ने आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का गुणानुवाद में बताया कि आचार्य श्री में चुंबक जैसे गुण है जिस प्रकार चुंबक ठोस होता है वैसे ही आचार्य ज्ञान में ठोस है चुंबक से किरणें निकलती है उसी प्रकार आचार्य श्री के वचनों देशना से ज्ञान की किरणें निकलती है ,चुंबक से रोग का उपचार थेरेपी की जाती है उसी प्रकार आचार्य श्री भव संसार से पार उतरने का मार्ग दिखलाते हैं। जिस प्रकार चुंबक लोहे को आकर्षित करता है वैसे ही आचार्य श्री अपने वात्सल्य से सबको मुग्ध कर देते हैं माताजी ने बताया कि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का जीवन दीर्घकालीन दीक्षित होकर वर्तमान में श्रेष्ठ आचार्य हैं आपमें पूर्वाचार्यों के सभी गुण विद्यमान है आचार्य शांति सागर जी जैसी निर्भयता, श्री वीर सागर जी जैसी निर्मलता श्री शिव सागर जी जैसा अनुशासन और धर्म सागर जी जैसे निस्पृहता और अजीत सागर जी जैसी चिंतन शक्ति ज्ञान विद्यमान है। आचार्य श्री संघ का 15 अप्रैल को विहार होकर आहार चर्या देवदा में हुई आपका विहार बांसवाड़ा की ओर चल रहा है

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