Home राजिम   मड़वा म दुलरू तोर बदन कुम्हलाए गीत गाकर गुड्डा गुड़ियों का किया...

मड़वा म दुलरू तोर बदन कुम्हलाए गीत गाकर गुड्डा गुड़ियों का किया टिकावन

63
0

अक्षय तृतीया पर एक दिन पहले चुलमाटी लाकर किया गुड्डा गुड़िया का विवाह

राजिम(विश्व परिवार)– अंचल में अक्षय तृतीया के अवसर पर बड़ी संख्या में छोटे-छोटे बच्चों के द्वारा गुड्डा गुड़ियों का विवाह रचाया गया। एक दिन पहले पूरे रीति रिवाज के साथ चुलमाटी लाने के बाद मंडपाच्छादन मंगरोहण, हरदाही, तेल, मायन, बारात प्रस्थान और पाणिग्रहण गोधुली बेला में संपन्न हुआ। इसमें बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था। बाजे गाजे के साथ खूब धूम धड़ाका के साथ नाच गाना किए। हल्दी लगाकर खुशी से झूमते रहे। कई जगह मोबाइल से विवाह गीत गाकर खूब नाचें। बताना होगा कि एक सप्ताह पहले से ही बालिकाओं के द्वारा तैयारी शुरू हो गई थी। बाजार से पुतरा पुतरी खरीद कर ले आए थे। उन्हें नए कपड़े पहनाया गया। सिर पर मौर लगा दिया गया। पीला चावल करके टीकावन हुआ। पूरे मोहल्ले एवं चीर परीचित को कागज में लिखकर निमंत्रण कार्ड भी भेजा गया था लोग आते गए और आशीर्वाद समारोह में सम्मिलित हुए। उन्हें बड़ा, भजिया, सोहारी, लड्डू, इत्यादि परोसे गए। बच्चों के साथ में बड़े भी विवाह के रंग में रंग गए थे। बताया जाता है कि यह दिन देव लगन होता है इस दिन विवाह अत्यंत शुभ माना गया है।गूंजेश्वरी, वाणी, डिंपल, हर्षिता ने बताया कि हम लोग प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया को गुड्डा गुड़ियों का विवाह रचाते हैं और ऐसा करने से हमें बहुत ही अच्छा लगता है। साल भर में यह पर्व आते हैं इसे लेकर काफी उत्सुकता रहती है। यह हमारी संस्कृति और संस्कार का अहम हिस्सा है। पूरी दुनिया में छत्तीसगढ़ की संस्कृति विरले हैं। नेविका, याशिका, पायल, खुशी, रितु ने कहा कि विवाह के सारे संस्कार शादी विवाह में हम सिर्फ देखते थे लेकिन गुड्डू गुड़ियों के विवाह में सारी व्यवस्था खुद किए हैं जिम्मेदारी मिलने से जानकारियां होती है। अक्षय तृतीया का हमें काफी दिनों से इंतजार रहता है। कुछ बच्चियां साड़ी पहनी हुई थी और विवाह गीत गाने का प्रयास कर रही थी।मिली जानकारी के अनुसार अक्ति पर्व पर ग्राम्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना किया गया। सुबह से ही लोग ठाकुर देवता में परसा पन्ने पर दोना बनाकर धान चढ़ाया गया। गांव के बैगा तथा ग्रामीणों के द्वारा पूजा अर्चना की गई तथा धान बोनी की सारी औपचारिकताएं पुरी की गई। बाद में बचा हुआ वही धान लाकर अपने-अपने खेतों में छिड़काव किए हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here