Home मध्य प्रदेश संस्कार शिक्षण शिविर का हुआ सानंद समापन

संस्कार शिक्षण शिविर का हुआ सानंद समापन

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दमोह(विश्व परिवार) | समाधि सम्राट गुरुवर आचार्य विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज के ससंघ मंगल सानिध्य में नन्हे मंदिर दिगंबर जैन धर्मशाला में 22 मई से 28 मई तक चले श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर के समापन पर सम्मान एवं पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया गया इसमें प्रातः काल मंगलाचरण दीप प्रज्वलन के पश्चात मुनि श्री की संगीतमय मंगल पूजन की गई विभिन्न महिला मंडलों एवं संस्थाओं के सदस्यों ने सामूहिक रूप से अर्ध समर्पित किय शिविर में सम्मिलित बालिकाओं ने एक सुंदर नाटिका के माध्यम से जन जागरण के विषयों पर मनमोहक प्रस्तुति की जिसमें जिसमें आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के द्वारा प्रारंभ प्रकल्पों एवं संदेशों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया शिविर के मुख्य कलश को स्थापित करने वाले दिल्ली के वीरेंद्र जैन अहिंसा ज्वेलर्स एवं लघु कलश स्थापना कर्ताओं को भी समिति एवं जैन पंचायत की ओर से सम्मानित किया गया तथा कलश का निष्टापन कर उनको प्रदान किए गए शिविर में सम्मिलित हुए बच्चों एवं पुरुष एवं महिलाओं की विभिन्न कक्षाओं में अध्ययन उपरांत परीक्षा में प्रथम द्वितीय तृतीय स्थान पाने वालों को समिति और पंचायत की ओर से पुरस्कार प्रदान किए गए इस मौके पर शिविर के प्रभारी डॉ प्रदीप आचार्य एवं कार्यकर्ताओं का भी सम्मान दिगंबर जैन पंचायत एवं अन्य संस्थाओं के द्वारा किया गया इस अवसर पर निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज एवं निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज ने शिविर के सफल आयोजन के लिए अपना आशीर्वाद प्रदान किया मुनि श्री ने कहा कि हमारे जीवन में ऐसी उपलब्धि होनी चाहिए कि हमें यह सदैव स्मरण रहे कि हमें यह ज्ञान दमोह के शिविर से प्राप्त हुआ है यदि हमें अपने दुश्मन से भी सीखने को मिले तो अच्छे गुण सीख लेना चाहिए गुणवान लोगों की संगति करने से मनुष्य के अंदर भी गुणोंका विकास होता है यह शिविर तो एक सैंपल मात्र हैं जिस तरह बाजार में शोरूम में अपने उत्पादों का प्रदर्शन किया जाता है इस तरह शिविर के माध्यम से शिविरार्थियों को धर्म की अच्छाइयों से अवगत कराया जाता है महापुरुष अपने आत्मज्ञान को दूसरों को देकर आनंद मानते हैं वे सदैव सोचते हैं कि जो आनंद मेरे पास है वह मैं दुनिया को दे दूं दूसरों को सम्मान देने में भी बहुत आनंद आता है मुझे पढ़ाने में आनंद आ रहा है और तुम्हें पढ़ने में आनंद आ रहा है भगवान के महिमा का गुणानुवाद करने से हम में भी वे गुण विकसित होने लगते हैं हम प्रभु की जय बोलते हैं और यश हमारा बढ़ता है जो अपने से बड़ों को सम्मान और स्नेह देता है उसको उच्च गोत्र का बंध होता है।

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