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गुजरात के बाद इंदौर में भाजपा की सबसे बड़ी जीत, दस लाख वोट से आगे चल रहे है शंकर लालवानी

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इंदौर(विश्व परिवार) | लोकसभा चुनाव परिणाम में इंदौर के वर्तमान सांसद और भाजपा के प्रत्याशी शंकर लालवानी Shankar Lalwani दस लाख 38 हजार 618 वोट से आगे चल रहे हैं। वे देश की सबसे बड़ी जीत की ओर बढ़ रहे हैं। बता दें कि इससे पहले देश की सबसे बड़ी जीत गुजरात के नाम दर्ज थी। यहां 2019 में भाजपा के सीआर पाटिल नवसार सीट से 6.90 लाख वोटों से जीते थे।

इंजीनियरिंग के बाद राजनीति में गए

शंकर लालवानी को उनके मिलनसार व्यक्तित्व के लिए पहचाना जाता है। वे विवादों से दूर रहना पसंद करते हैं और भाजपा के अधिकांश वरिष्ठ नेता उन्हें पसंद करते हैं। वे भाजपा की गुटबाजी से भी दूरी बनाकर रखते हैं। शंकर लालवानी का जन्म 16 अक्टूबर 1961 को इंदौर में हुआ था। उनके पिता जमनादास लालवानी अखंड भारत के विभाजन से पहले इंदौर आए थे। जमनादास लालवानी इंदौर आकर भी आरएसएस में सक्रिय थे। वे जनसंघ पार्टी में थे और सामाजिक कामों में सक्रिय रहते थे। वे कई वर्षों तक मध्य प्रदेश में सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। शंकर लालवानी की माताजी गोरी देवी लालवानी एक गृहिणी थीं। शंकर लालवानी ने मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास की, फिर मुंबई से बी-टेक की पढ़ाई की फिर इंदौर आकर व्यापार और कंसल्टेंसी में लग गए।

पार्षद से की शुरुआत
1994 से 1999 तक वे इंदौर नगर निगम में पार्षद रहे। इसके बाद 1999 से 2004 तक वे 5 वर्ष तक इंदौर नगर निगम के सभापति पद पर रहे। 2013 में इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बनाए गए। 2019 में जब भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया तो भारतीय जनता पार्टी करीब 5 लाख 47 हजार वोटों के ऐतिहासिक अंतर से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी से जीत हासिल की। सांसद बनने के बाद, वह लोकसभा में आवास और शहरी मामलों की स्थायी समिति, सदन की बैठक से सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति, संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय की सलाहकार समिति, सहकारिता विभाग सलाहकार समिति, उपभोक्ता मामले खाद्य और सार्वजनिक वितरण परामर्श समिति एवं एमएसएमई नेशनल बोर्ड के भी सदस्य हैं।

सिंधी राज्य की मांग से मुकरे
सांसद बनने के बाद शंकर लालवानी ने लोकसभा में सिंधी भाषा में अपनी बात रखते हुए सिंधी कला बोर्ड, सिंधी टीवी चैनल और अलग सिंधी प्रदेश की मांग पर सरकार को विचार करने के लिए कहा था। उनकी इस मांग के बाद देश में बड़ा बवाल मचा था। बाद में उन्होंने कहा कि मैंने उसी दिन स्पष्ट कर दिया था और बताया था कि मैंने कभी अलग सिंधी राज्य की मांग नहीं की। उसी दिन मैंने खंडन भी कर दिया था। उनकी इस मांग पर उन्हीं के समाज के लोग नाराज हो गए थे।

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