बांसवाड़ा(विश्व परिवार)| प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का कमर्शियल कॉलोनी बांसवाड़ा से खांदू कॉलोनी बांसवाड़ा में विशाल संघ सहित भव्य मंगल प्रवेश हुआ 1008 श्री श्रेयांश नाथ भगवान के जिनालय में दर्शन पश्चात आयोजित धर्म सभा में आचार्य श्री ने मंगल देशना में बताया कि
संसारी प्राणी को पूर्व जन्मों के पुण्य से मानव पर्याय मिली ।आप मंदिर में आते हैं ,भगवान के दर्शन अभिषेक, पूजन करते हैं संसार के दुख को घबरा कर हर आदमी सूख चाहता है। चारों गतियां में 84 लाख योनियों में मानव को सुख की प्राप्ति नहीं हुई है ।सुख तभी मिलेगा जैसा श्रेयांश नाथ भगवान ने घर छोड़कर वन में गए, संयम धारण किया दीक्षा ली वन में जाने पर व्यक्ति बन जाता है। गृहस्थ में शांति नहीं है आप भगवान की पूजा स्वाध्याय करते हैं ।आचार्य उमा स्वामी ने तत्वार्थ सूत्र में मार्ग बताया सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान ,सम्यक चारित्र रत्नत्रय धर्म मोक्ष जाने के मार्ग हैं। समाज अध्यक्ष सेठ अमृत लाल अनुसार आचार्य श्री ने उपदेश में बताया कि बांसवाड़ा आने के लिए अनेक राजमार्ग है, मार्ग में चलने में अनेक बाधा भी आती है संसारी आदमी को मिथ्यातव के कारण अनेक बाधा आती है और इसे हटाने का मार्ग रतनत्रय धर्म है मंदिर आप आते हैं कभी भगवान श्री श्रेयांशनाथ से पूछिए कि आप कैसे भगवान बने ,कैसे सिद्ध बने आचार्य श्री ने आगे बताया कि सिद्ध अवस्था में शाश्वत सुख मिलता है आपका प्रश्न हो सकता है कि सिद्ध अवस्था में हमें क्या क्यों जाना चाहिए ,और क्या सुख मिलेगा ,वहां पर हमें खाने पीने का या आमोद प्रमोद का कोई साधन नहीं मिलेगा सिद्ध अवस्था में शाश्वत सुख मिलता है ऐसा शाश्वत सुख जो चिरस्थाई होता है। संसार का हर सुख नश्वर है सिद्ध अवस्था में जाने के बाद आप जन्म मरण के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं। अनंत भगवान अनेक आत्माएं सिद्ध बनी है उन्होंने सिद्ध अवस्था रत्नत्रय धर्म के माध्यम से प्राप्त की है इसलिए भगवान की शरण , धर्म की शरण से आप रतनत्रय मार्ग को सीधा बनाकर साथ 7 राजू जाने का पुरुषार्थ कर सकते हैं। आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मंगलाचरण ने किया आचार्य श्री शांति सागर जी के चित्र अनावरण और दीप प्रज्वलन ने किया आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन एवम जिनवाणी पुण्यार्जक परिवार द्वारा किया गया।