Home राजस्थान अहिंसा, तप, संयम,दया प्रीति रूपी धर्म से आत्मा से कर्म पृथक करने...

अहिंसा, तप, संयम,दया प्रीति रूपी धर्म से आत्मा से कर्म पृथक करने का पुरूषार्थ करे -आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

41
0

बांसवाड़ा(विश्व परिवार) | पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी बांसवाड़ा संघ सहित विराजित हैं खांदू कालोनी श्री श्रेयांसनाथ जिनालय में 1008 श्री शांति नाथ भगवान का जन्म, तप और मोक्ष कल्याणक श्रद्धा और भक्ति पूर्वक मनाया गया इस अवसर पर निर्वाण लाडू आचार्य संघ सानिध्य में चढ़ाया गया इस अवसर पर आयोजित धर्म सभा में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म देशना में बताया कि पुण्यउदय से संसार में भ्रमण करते हुए दुर्लभ मानव पर्याय आप सब ने प्राप्त किया है। मनुष्य जीवन दुर्लभ है इसमें वीतरागी भगवान की देशना आचार्यों ने लिपिबब्ध की हैं जिसे श्रवण करने का और गुरु सानिध्य प्राप्त करने का अवसर मिला है । देव शास्त्र गुरु की भक्ति से जीवन को आगे बढ़ाया जा सकता है, भक्ति अनेक प्रकार से हो सकती है भगवान के दर्शन, अभिषेक, पूजन, स्तवन, स्वाध्याय , जाप नृत्य से भक्ति कर सकते हैं भगवान का जो भी स्तवन स्त्रोत का पाठ किया जाए वह शालीनता और विनय पूर्वक करना चाहिए क्योंकि भक्ति से भाव परिणाम में परिवर्तन आता है। भक्तामर स्त्रोत मुख्य स्रोत है इसे धर्म की प्रभावना हुई। इसलिए शांत निराकुलता से भगवान का स्रोत का दीप पूजन करें। परिणाम में निर्मलता आने , भगवान का भक्ति पूर्वक स्तवन करने से कर्मों का नाश होता है। इसलिए देव शास्त्र गुरु के समक्ष अभिषेक पूजन स्वाध्याय स्तवन आदि क्रियायो को भावनाओं के साथ करने से धर्म धारण करने का अवसर मिलता है ।इससे जीवन की उन्नति होती है तभी आपके जीवन की सार्थकता होगी। ब्रह्मचारी गज्जू भैया, अध्यक्ष सेठ अमृतलाल , प्रवक्ता अक्षय डांगरा अनुसार आचार्य श्री ने बताया कि आज श्री शांतिनाथ भगवान का जन्म तप और मोक्ष कल्याणक है ग्रंथो अनुसार समय-समय पर धर्म विच्छेद होता रहा यह धर्म विच्छेद पाल्य प्रमाण काल का रहा शीतल नाथ भगवान के समय धर्म मिला ,धर्म जीवन का अमूल्य भाग है। शांतिनाथ भगवान जो की तीर्थंकर ,कामदेव , चक्रवर्ती भी थे उनका अपूर्व सौंदर्य था वर्तमान में आप नाना प्रकार के भौतिक साधनों से सौंदर्य लगाने का प्रयास करते हैं धर्म की शरण से आत्मा का सौंदर्य मिलता है आज दुनिया धन और पद के पीछे दौड़ रही है जबकि चक्रवर्ती के पास 6 खंड का राज्य साम्राज्य होता है शरीर में अपूर्व सौंदर्य होता है उन्होंने धन संपदा शरीर के सौंदर्य को नश्वर समझ कर चिंतन कर त्याग,तपस्या संयम के माध्यम से आत्मा का सौंदर्य प्राप्त किया है यह जिनेंद्र भगवान और संतों के समागम से मिलता है संसार का सबसे बड़ा सौंदर्य आत्मा का सौंदर्य है और संसार का सुख ,मोक्ष सुख के सामने बहुत ही अल्प है हमें अहिंसा, तप संयम, धर्म से प्रीति करना चाहिए धर्म और दया के लिए जीवन को समर्पित करें, तप और संयम जीवन के अंग है इससे आत्मा कर्मों से पुरुषार्थ करने से मुक्त हो सकती है श्री जी की शांति धारा को सौभाग्य सुखलाल रजावत,अनिल मालवीय और सनत कुमार परिवार ने प्राप्त किया।शाम को श्री जी की आरती के बाद आचार्य श्री की आरती गुरुभक्ति संगीतमय होती हैं |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here