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भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज को “D.Lit. डिग्री” एवं “साहित्य मनीषी” अलंकरण समर्पित किया

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तिजारा जी (विश्व परिवार) | श्रुत पंचमी महापर्व के पावन अवसर पर भावलिंगी संत जिनागम पंथ प्रवर्तक आचार्य श्री 108 विमर्शरसागर जी महामुनिराज को थेम्स यूनिवर्सिटी फ्रांस द्वारा आन्चार्य श्री की अभूतपूर्व मौलिक नवीन भाषा “विमर्श एम्बिसा” कृति पर डी. लिट्. की उपाधि समर्पित कर अप‌ना सौभाग्यवर्धन किया गया। एवं ग्लोबल भक्तामर ग्रुप द्वारा गुरुदेव के अनुपमेय कृतित्व को लक्ष्यकर आचार्य श्री को “साहित्य मनीषी” अलंकरण से अलंकृत किया गया ।

आचार्य श्री 11 जून, मंगलवार की प्रातः बेला में श्रुतपंचमी महापर्व पर विमर्शसागर जी महामुनिराज के ससंघ सानिध्य में “माँ जिनवाणी की आराधना की गई साथ ही गुरुवर की भी अर्चना भक्तों के द्वारा की गई। आराधना के उपरांत देशभर से पधारे विद्वत्वर्ग के द्वारा आचार्यश्री को “डी. लिट्” की उपाधि से एवं “साहित्य मनीषी ” अलंकरण समर्पित किए गए। अलंकरण समर्पण की श्रृंखला में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. अजित जी शास्त्री रायपुर, श्री संजय जी पंजाब, डॉ. नीरू जी पंजाब, श्री विभोर जैन जायना इण्डस्ट्रीज, डॉ. सरिता जी चैन्नई, डॉ. राशू जैन देहरादून एवं श्री मयंक जी, मनोजजी, ऋतुजी आदि विद्वत्‌गण उपस्थित रहे।

जानें, क्या है विमर्श एम्बिसा एवं विमर्श लिपि ?
इतिहास में प्रथम बार किसी संत ने यह अद्भुत – अभूतपूर्व-महनीय कार्य किया है। आज तक किसी भी भाषा का किसी भी व्यक्ति ने सूजन नहीं किया, बोलचाल के प्रचलन में आकर स्वयमेव ही भाषा अपना रूप ले लेती है किन्तु भावलिंगी संत आचार्य है आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ऐसे प्रथम दिगम्बर जिन्होंने स्वयं ही मौलिक रूप से पूर्णतः नवीन भाषा “विमर्श एम्बिसा” लिखकर समस्त साहित्य मनीषियों को आश्चर्य चकित कर दिया है। इस भाषा की सम्पूर्ण व्याकरण, शब्द, क्रिया, वाक्य आदि नवीन रूप में रचित है। इसी तरह ब्राह्मी लिपि, देवनागरी तेलग आदि लिपियों की भाँति आचार्य श्री ने सन् 2011 में पूर्णतः नवीन “विमर्श लिपि ” का भी सृजनकर एक नयी चेतना जागृत की है। विद्वत्‌वर्ग का कहना है कि “निकट भविष्य में आचार्यश्री के इस सृजन कार्य को पाठ्यक्रम में भी रखा जा सकेगा।

श्रुत पंचमी पर्व पर गुरुवर ने दिया शुभाशीष – प्रतिदिन एक

पृष्ठ स्वाध्याय का लें संकल्प आज श्रुतपंचमी महापर्व पर आप एक संकल्प अवश्य लेना कि “मैं प्रतिदिन एक पृष्ठ का शास्त्र स्वाध्याय अवश्य करूंगी इस संकल्प से आप एक वर्ष में आसानी से एक बात हमेशा एक है ग्रंथ पूर्ण ध्यान रखना, जिनवाणी हमारी माँ है और माँ को आज आप शास्त्रदान की आगमिक परंपरा भूलते जा रहे कर सकते हैं। बन्धुओं कभी बेचा नहीं जाता हैं इसीकारण शास्त्र विक्रय की आगम बिरूस परंपरा बढ़ती जा रही है। अतः शास्त्र विक्रय से हटकर शास्त्रदान में आगे आये |

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