सागर(विश्व परिवार) | संसार में जो भी प्राणी हैं वह अपने लिये जीता है सबकी सीमाएं निर्धारित है और लोग सीमाओ का उल्लंघन करते समय कहते हैं यह हमारी सीमा नहीं है सामने वाले की सीमा है। भक्त पहले अपने मंदिर की सोचता है फिर दूसरे स्थान की सोचता है फिर अपने नगर की सोचता है। फिर जिले की, प्रदेश की, देश की और विश्व की सोचता है लेकिन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने हमेशा विश्व कल्याण की बात की है जो जीव उन्हें देखते थे। और जो नहीं देखते थे। उन सबके कल्याण के लिए उन्होंने कार्य किया है उन्होंने कभी किसी के प्रति पक्षपात नहीं किया। ऐसे थे आचार्य श्री विद्या सागर महाराल जिन्होने विश्व के कल्याण के लिए जैन धर्म कि पताका को और आगे बढ़ाने के लिए तीर्थ क्षेत्रों के निर्माण के लिए अद्भुत कार्य किए हैं। यह बात निर्यापक मुनिश्री वीर सागर महाराज ने गोपालगंज जैन मंदिर मे धर्मसभा को सम्बोधित करते यह बात कही।
उन्होंने कहा कि आचार्य श्री ने सागर को सबसे बड़ा जिनालय सर्वतोभद्र दिया है यह भाग्योदय तीर्थ जैसी पावन भूमि पर बन रहा है जहां पर 6 पंचकल्याणक हो चुके हैं। शास्त्रों में बड़े जिनालयों के बारे में पढा और सुना भी था। लेकिन आचार्य श्रीजी ने सागर वालों को यह सौगात उनके समर्पण के कारण दी है। गुरुदेव ने क्या क्या नहीं दिया महापुरुष वर्तमान को नहीं? भविष्य को जान लेते हैं और उसी दिशा में वह कार्य करते हैं। धर्म सुरक्षित कैसे रहेगा? इसलिए गुरुदेव ने जगह जगह पाषाण के मंदिर बनवाने का आशीर्वाद दिया था कुंडलपुर, नेमावर, रामटेक, बीना बारह सहित करीब कई राज्यों में सैकड़ों स्थानों पर पत्थर के मंदिर का निर्माण कार्य लगातार जारी है। मुनिश्री ने कहा लोगों का दायरा सीमित होता है लेकिन गुरुदेव हमेशा पूरे विश्व कल्याण की बात करते थे।
आचार्य श्री इस धरा से ऊपर उठकर सोचते थे जो कुछ नहीं भी दिखता था। उसके बारे में भी सोचते थे। वे सारी वसुधा एक हो जाए एक परिवार की भांति रहे ऐसे हमारे गुरुदेव थे उदार चित्त वाले वह मेरे तेरे में कभी नहीं पढ़ते थे ना क्षेत्र को बांटने वाले और ना ही भगवान को बांटने वाले जिन्होंने क्षेत्र और गुरु को बांधा है बांटा है। उन्होंने ना तो गुरु को जाना है ना ही गुरु को अपनाया है। आज स्थिति यह है कि गुरु हमारे मन से चलें तो गुरु हमारे हैं और मन से नहीं चले। तो हमारे नहीं।
ऐसा कहने वालों ने ना तो गुरु को जाना है ना ही गुरु को अपनाया है। लोग कहते हैं कि गुरु पक्षपाती हैं। मन का होने पर सब साथ चलते हैं। लेकिन सच यह है कि महापुरुष अपने को सीमित नहीं रखते हैं वे सबके कल्याण की भावना के साथ रहते हैं। मुनिश्री ने कहा कि भगवान आपके पास नहीं आ सकते है। आप को भगवान के पास मंदिर में जाना होता है लेकिन गुरु आपके पास पहुंच जाते हैं। गुरु कभी भी पक्षपाती होते ही नहीं है और श्रद्धा के दम पर भी मोक्ष जाया जा सकता है।
मुनि संघ अंकुर कालोनी से बिहारकर गोपालगंज पहुंचे और वहीं पर आहार चर्या हुई
मुनि सेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि 13 जून को सुबह बालक कॉम्प्लेक्स से मुनि संघ का बिहार एलिवेटेड कॉरिडोर होते होंगा। अगवानी जुलूस कोतवाली तीनबत्ती से नमक मंडी स्थित कटरा पारसनाथ जैन मंदिर पहुंचेगा नमक मंडी में सुबह 7.30 बजे से मुनि संघ के मुखारविंद से शांति धारा होगी और मंगल प्रवचन होंगे शाम को शंका समाधान भी होगा। नमक मंडी में मुनि संघ का प्रवास दो दिन का रहेगा। उसके पश्चात 15 और 16 जून को भाग्योदय तीर्थ में मुनिसंघ का प्रवास होगा जहां पर युवाओं के लिए एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।