बड़ौत (विश्व परिवार)। दिगम्बर जैनाचार्य श्री विशुद्धसागर जी गुरुदेव ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि – जैसे-जैसे कषाय मंद होती हैं, वैसे-वैसे व्यक्ति श्रेष्ठ बात स्वीकार कर सत्य-मार्ग का अनुसरण करता है। सत्य-मार्ग पर चलने के लिए, सत्य को जानना आवश्यक है। जब तक सत्य का बोध नहीं होगा, तब तक सत्य मार्ग पर चलना भी नहीं होगा। सत्य जानो, सत्य मानो, सत्य सुनो, सत्य बोलो सत्य का आचरण करो। सत्य ही सुन्दर है, सत्य ही श्रेष्ठ है, सत्य ही मंगल है, सत्य ही उत्तम है, सत्य ही धर्म है और सत्य ही सुख-शांति का मार्ग है । व्यक्ति धन के लिए तन की शक्ति नष्ट कर देता है। धन कमाने में स्वास्थ खराब करता है, फिर तन पर धन व्यय करता है। पूरा जीवन धन और तन पर न्योछावर कर देता है। अनमोल नर तन, धर्म के बिना व्यर्थ खो देता है। धन महत्वपूर्ण नहीं, धर्म महत्वपूर्ण है। धर्म के प्रभाव से ही संसार के सर्व-सुख प्राप्त होते हैं। ‘प्रज्ञ-पुरुषों द्वारा प्रणीत साहित्य पढ़ना चाहिए। साहित्य हमारी प्रज्ञा को प्राञ्जल, पवित्र और पैनी करता है। शास्त्र अध्ययन से कषायें मंद होती हैं। चंचल मन एकाग्र होता है। शास्त्र स्वाध्याय से हेय- उपादेय का ज्ञान होता है जीवन का विकास होता है। पाप का क्षय होता है, पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्र ज्ञान से आत्मानुभव कला प्राप्त होती है। वैराग्य जागृति होती है। परिणाम विशुद्ध होते हैं। आत्मानन्द की उपलब्धि होती है। पढ़ो, आगे बढ़ी। अध्ययन करो, सत्य जानो, सत्य- मार्गपर चलो। ज्ञान से आचरण पवित्र होता है। अध्ययन ही परम तप है और अध्ययन ही तप है । जब तक अच्छे बुरे का बोध नहीं होगा, तब तक उन्नति सम्भव नहीं है। दोषों को जाने बिना छोड़ोगे कैसे? दोष छोड़ो, गुणों को धारण करो। जानोगे नहीं तो मानोगे कैसे? जानी, मानो, मार्ग पर चलो। सत्य का पक्ष मत छोड़ो। सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन, विनोद जैन, सुभाष जैन, सतीश जैन, दिनेश जैन, धनेंद्र जैन, मनोज जैन,राकेश जैन आदि थे।