भोपाल(विश्व परिवार) | आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी मनुष्य के रोग की चिकित्सा करना है। इस प्रयोजन की सम्पूर्ति हेतु आचार्यो ने दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या का विधान बताया है। आयुर्वेद में हर एक मौसम के अनुरूप जीवनशैली और खानपान के नियम बताए गए हैं। आयुर्वेद के इन नियमों को ऋतुचर्या कहते हैं। हमारे देश में छह ऋतुएं आती हैं। इनमें से एक वर्षा ऋतु भी है। वर्षा ऋतु को वर्षाकाल, वर्षोमास, चौमास अथवा चातुर्मास के नामों से भी जाना जाता है।
छह ऋतुओं में यदि वर्षा ऋतु न हो, तो बाकी की ऋतुएं महत्वहीन हो जाती हैं। इसके बिना उनका सारा सौंदर्य जाता रहता है। वर्षाकाल ही अपने शीतल जल से धरती मां की प्यास बुझा कर उसे उर्वर बनाता है। बदले में धरती मां हमें धन-धान्य से परिपूर्ण कर वैभवशाली बनाती है और इस प्रकार हमारी ही नहीं, इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। वर्षाकाल से ही हमारा ऋतु चक्र संभव हो पाता है। वर्षा न हो तो सूखा और अकाल पड़ना अवश्यंभावी है।
वर्षाकाल आते ही कुछ स्वाभाविक बदलाव प्रकृति में होने लगते हैं, जिनमें पर्यावरण का परिवर्तन सबसे प्रमुख है। जहां वर्षा का शीतल जल वातावरण को ठंडक प्रदान कर सुहावना और प्रिय बना देता है, वहीं यह नाना प्रकार के जीवों की उत्पत्ति में भी सहायक बनता है। वर्षाकाल जप-तप और त्याग को निमंत्रण देता है। इन सबका संबंध मन की स्वस्थता व आत्मशुद्धता से है। विचारों की एकाग्रता से मन स्वस्थ रहता है। आहार की स्वल्पता से तन को स्वस्थ रहने में सहायता मिलती है।
इसके अतिरिक्त वर्षा ऋतु में बहुत से पदार्थ बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं। उनका सेवन शरीर के लिए हानिकारक है इसलिए वर्षाऋतु में उपवास का महत्व बढ़ जाता है। तप इस ऋतु में तन को निरोग रखता है।
ऋतु चक्र और पर्यावरणीय विशेषताओं को ध्यान में रख कर निर्धारित किए गए हमारे धर्माचार हमारे जीवन को प्रकाशित कर हमें सन्मार्ग की ओर ले जाते हैं, जिससे हमारा जीवन सुगंधित बनता है। अत: वर्षाकाल हमारे जीवन का सुनहरा अवसर है। इस से लाभ प्राप्त करने के लिए हमें सदैव तत्पर रहना चाहिए। इन दिनों प्रकृति की समस्त कृपा हम पर बनी रहती है। शारीरिक दृष्टि से जप, तप, स्वाध्याय और मनन-चिंतन इस ऋतु में आवश्यक है, क्योंकि प्रकृति का परिवर्तन हमारे शरीर को प्रभावित करता है। जप-तप करने से इस परिवर्तन का कोई दुष्प्रभाव हम पर नहीं पड़ता।
आयुर्वेद में काल को वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म इन छः ऋतुओं में बाँटा गया है। इन ऋतुओं में पृथक-पृथक् चर्या बतायी गयी है। यदि मानव इन सभी का ऋतुओं में बतायी गयी चर्याओ का नियमित व विधिपूर्वक पालन करता है, तो किसी प्रकार के रोग उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहती है, अन्यथा अनेक मौसमी बिमारियों से ग्रस्त हो जाता है।
मौसम के बदलाव के साथ ही खान-पान में बदलाव जरूरी है, ये बदलाव करके मौसमी-रोगों से बचा जा सकता है। वर्षा, शीत या उष्ण ऋतुओं में मात्रापूर्वक भोजन करने पर बल-वर्ण और आयु की वृद्धि तो दूर रही, व्यक्ति बीमार पड़ जाते हैं।
जो व्यक्ति यह जानता है कि किस ऋतु में किस प्रकार का विहार (व्यवाय-व्यायाम अभ्यंग निद्रा आदि) और आहार अनुकूल पड़ता है तथा तदनुसार ही आहार- विहार करता है, उसी पुरुष के माषापूर्वक अशित, पोत, लौढ या खादित आहार से उसके बल और वर्ण श्री वृद्धि होती है।
हमारे यहाँ वर्ष का तीसरी ऋतू वर्षा ऋतू होती हैं। यह जुलाई से अक्टूबर तक वर्षाकाल होता हैं। शुरू शुरू में आकाश मेघों से घिरा रहता हैं, इससे कड़ी गर्मी पड़ती हैं और पसीना अधिक आता हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से वर्षा का आरम्भ और अंत दोनों कष्टकाल होते हैं। गर्मी के कारण मनुष्य का शरीर अत्यंत दुर्बल होता हैं । दुर्बल शरीर में एक तो जठराग्नि दुर्बल होती हैं और वर्षा ऋतू आ जाने से दूषित वातादि दोषों से दुष्ट जठराग्नि और भी दुर्बल हो जाती हैं। इस ऋतू में भूमि से वाष्प निकलने, आकाश से जल बरसने तथा जल का अम्ल विपाक होने से जब अग्नि का बल क्षीण हो जाता हैं तव वातादि दोष प्रकुपित हो जाते है इसलिए इस ऋतू में अत्यंत सावधानी की जरुरत होती हैं ।
ज्यादातर हेल्थ प्रॉब्लम्स हाथों की गंदगी से शुरू होती है इसलिए जब भी कुछ खाएं, पहले हाथ धो लें। बिना हाथ धोए कोई भी चीज टच न करें। यहां तक कि अपने बाल और स्किन को भी नहीं। अगर नाखून बढ़ाने के शौकीन हैं, तो बारिश के मौसम में इन्हें छोटा ही रखें क्योंकि नाखून में फंसी गंदगी भी बीमारियों का कारण बन सकती है।
वर्षा ऋतु में पथ्य आहार- विहार
– कड़वे और नमकीन टेस्ट वाली चीजों का सेवन अधिक करें।
– चावल, छाछ, पतली दही, दूध, कद्दू, करेला, जीरा, अदरक और कच्चे प्याज का सेवन कर सकते हैं।
– बरसात में गैस, अपच जैसी पेट की प्रॉब्लम्स अधिक होती है इसलिए बाहर का खाना या बासी खाना न खाएं।
– अपनी डायट में विटमिन ई और ओमेगा 3 को शामिल करें।
– नींबू, आलूबुखारा, ऑरेज, आंवला, अमरूद जैसे विटमिन सी से भरपूर चीजें बीमारियों से बचाने के साथ ही स्किन को भी फ्रेश करने का भी काम करती है।
वर्षा ऋतु में अपथ्य आहार- विहार
– पत्तेदार सब्जियां मॉनसून में बिलकुल न खाएं। इनमें सेल्यूलोज होता है, जो बारिश के मौसम में ठीक तरह से डाइजेस्ट नहीं हो पाता।
– स्ट्रीट फूड और फास्ट फूड से करें परहेज।
– पहले से कटे और खुले में रखे फल बिलकुल न खाएं।
– तेज नमक वाला खाना या खट्टी चीजें खाने से परहेज करें।
– बहुत ज्यादा तला-भुना खाना भी न खाएं।
गीले कपड़ों से करें तौबा
अगर आप बारिश में भीग गए हैं, तो जितनी जल्दी संभव हो खुद को सुखाकर साफ कपड़े पहन लें। खासतौर पर गीले अंडरगार्मेंट्स को पहनकर रखना फंगल इन्फेक्शन की वजह बनता है। इसके अलावा जूते, मोजे को भी हमेशा सूखा रखें। हफ्ते में एक दिन जूतों को कुछ देर धूप में रखें, जिससे उसमें मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाए।
घर की साफ-सफाई है जरूरी
घर के आसपास पानी न जमा होने दें। इससे मच्छर व दूसरे कीटाणु पैदा नहीं होंगे। घर को नमी से बचाने के लिए जहां लीकेज हो रहा हो, उसे तुरंत ठीक करवा लें। कई बार दीवारों में नमी होने से भी घर में कीड़े हो जाते हैं। घर के हर एंट्रेस गेट पर फ्लोर मैट लगाएं। इससे कीचड़ घर के अंदर नहीं आएगा। साथ ही, एंट्रेस गेट के किसी कोने में शू रैक रखें। इससे बारिश में भीगकर आए जूते वहीं उतारे जा सकेंगे। मॉनसून में किचन को बदबू से बचाने के लिए रोजाना स्प्रे करें। किचन में चीटियां न आए, इसके लिए सिरके से 2-3 बार वाइप करें। रात को नालियों में पेस्टिसाइड्स डालें, जिससे कॉकरोच घर के अंदर जगह न बना पाएं।
डॉ शैलेष जैन