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जल से शरीर का मेल दूर होता है, धर्म ध्यान से आत्मा में लगे कर्म रुपी मेल दूर होते हैं – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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बांसवाड़ा(विश्व परिवार) | पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सहित खांदू कॉलोनी में 48 साधुओं सहित विराजित हैं। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सानिध्य में प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी का 152 वा अवतरण वर्ष वर्धन आषाढ़ कृष्णा 6 कृष्ण 27 जून को पूर्ण श्रद्धा एवम भक्ति ,गुणानुवाद विशेष पूजन से मनाया जावेगा। पारसनाथ भगवान जिनालय में दर्शन शांति धारा के बाद आयोजित धर्म सभा में वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने बताया कि वर्तमान भरत क्षेत्र में आदिनाथ भगवान से लेकर महावीर स्वामी 24 तीर्थंकरों ने धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया है। जीवन में धर्म को धारण करने से कर्मों का प्रक्षालन होता है । भगवान श्री पारसनाथ ने भी धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया उन्होंने मुनिधर्म का मार्ग दिखाया । नदी सरोवर के किनारे खड़े होने से शरीर का मेल दूर नहीं होता हे उसके लिए पुरुषार्थ कर सीढ़ियां उतर कर जल में जाना होता है तब जल में स्नान से मेल दूर होता है ।इसी प्रकार आत्मा में लगे कर्म रूपी मेल धर्म ध्यान करने से दूर होते हैं। इसलिए प्रभु के दर्शन ,अभिषेक ,पूजन ,भक्ति स्वाध्याय के बाद जाप करना चाहिए। जीवन में दुख कष्ट से घबराना नहीं चाहिए भगवान पारसनाथ की जीव ने भी 10 तक कष्ट उत्सर्ग सनकी एक मटके जीव ने 10 भव मैं उपसर्ग कष्ट समता पूर्वक सहन किया
पारसनाथ भगवान ने भी मुनि दीक्षा धारण कर संयम तप से कर्मों की निर्जरा की । संयम से केवलज्ञान प्राप्त कर ध्यान से सम्मेद शिखर जी स्वर्ण कूट से सिद्ध अवस्था प्राप्त की।ब्रह्मचारी गज्जू भैया समाज सेठ अमृत लाल अनुसार आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने आगे बताया कि
सभी प्राणियों में सिद्ध बनने की शक्ति है पुरुषार्थ कर क्षमता में वृद्धि करना चाहिए ।धर्म से कर्मो की निर्जरा कर नवीन कर्मो को रोक कर संवर कर परमात्म पद पाने की यात्रा कर सकते हैं आत्मा में परम सुख पाने की क्षमता हैं धर्म से भगवान के दर्शन भक्ति अभिषेक पूजन आदि धार्मिक क्रियाओं से जीवन को मंगलमय बनाने का पुरुषार्थ कर मानव जीवन को सफल बनाएं।
इसके पूर्व श्री श्रेयांसनाथ जिनालय में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी द्वारा शांति धारा का मंत्रोचार किया गया। शांति धारा का सौभाग्य संघस्थ बाल ब्रह्मचारी गज्जू भैया और अन्य सौभाग्यशाली परिवार को प्राप्त हुआ। राजेश पंचोलिया अक्षय डांगरा अनुसार जिनालय में मुनि श्री पुण्य सागर जी का उपदेश हुआ।मुनि श्री पुण्य सागर जी महाराज ने पुण्य की महिमा बताई ।पुण्य बढ़ाने के लिए जीवन में मन वचन काय के साथ कृतकारित अनुमोदना करना पड़ती है।देव शास्त्र साधु समागम से दान से पुण्य का उपार्जन होता है। अधिक पुण्य होने पर जंगल में मंगल हो जाता है, पुण्य हमारा सुरक्षाकर्मी है जो हमें दुख कष्ट रोगों से बचाता है, पुण्य से आत्मा पवित्र होती है। पुण्य का संचय किस प्रकार करना चाहिए इसकी विवेचना में मुनि श्री पुण्यसागर जी ने बताया कि आप बुद्धिमान, ज्ञानी है अच्छे निमित्त से देव, शास्त्र ,गुरु की पूजा, चारो दान आदि करने से पुण्य में वृद्धि होती है। देव शास्त्र गुरु की भक्ति से पुण्य प्राप्त होता है, जीवन को जिन मंदिर में साधुओं की संगति में ,तीर्थ की ओर ले जाने से पुण्य से मंगल ही मंगल होता है। साधुओं की भक्ति वेय्यावृत्ति सेवा दान परोपकार करने से पुण्य का संपादन बढ़ता है इसके लिए मन वचन काय में सरलता भक्ति और कषाय मंद होना चाहिए आज का मनुष्य पुण्य बढ़ाने का कार्य नहीं करता है और फल अच्छा चाहता है कांटा बोने से फूल नहीं मिलते हैं ,जैसी क्रिया करेंगे वैसा फल मिलता है। गृहस्थ जीवन में आप आरंभ परिग्रह हिंसा करने से पाप का संचय होता है। आज आप को उच्च कुल , निरोगी शरीर, धन संपदा मिली है वह पिछले जन्मों के संचित पुण्य के कारण आज उसका आप लाभ ले रहे हैं ।दान देना महा पुण्य का कार्य है इसलिए दान देने से कभी वंचित नहीं होना चाहिए कुछ पाने के लिए कुछ खोना अर्थात त्याग करना होता है।

 

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