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समाधिस्थ गणाचार्य विरागसागर महाराज के संस्मरणों को याद करते हुये विनयांजलि सभा आयोजित

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विदिशा(विश्व परिवार) | विगत 4 जुलाई को इस युग के महान संत गणाचार्य विरागसागर जी महाराज की सल्लेखना समाधि हुई,उनको स्मरण करते हुये इन्द्रप्रस्तथ कालोनी में श्री बासूपूज्य जिनालय में विनयांजलि सभा आयोजित की गयी, सकल दि. जैन समाज के प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया सभा को सकल दि. जैन समाज की ओर से विभिन्न बक्ताओं ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये उनके सानिध्य काल के संस्मरण सुनाये समाज के वरिष्ठ एडवोकेट सुरेशचंद्र जैन, जिनालय के अध्यक्ष पूर्व शिक्षक विजय जैन, एस एस एल जैन टृस्ट के अध्यक्ष संजय सेठ, जय कुमार जैन स्वागत,संजय भंडारी, योग शिक्षक ए.के जैन, पं.निर्मल जैन,डा.राजीव चौधरी, डा.ए. के जैन,प्रवक्ता अविनाश जैन, मुकेश जैन बड़ाघर,डा.सरस जैन,प्रद्युम्न सिंघई, सहित महिलाओं ने भी अपने विचार रखे इस अवसर पर सकल दि.जैन समाज के अध्यक्ष शैलेन्द्र चौधरी बड़ू,रविन्द्र जैन, सनत जैन मणीधर,डा. अभिषेक जैन,सौरभ लंदन,अशोक जैन ठेकेदार,आदि बक्ताओं ने भी आचार्य श्री का परिचय देते हुये कहा कि पथरिया मध्यप्रदेश में सन्1963 में श्री कपूर चंद्र जैन एवं श्रीमती श्यामा देवी के घर जन्मे बालक अरविंद ने बचपन से ही अपनी प्रतिभा का दर्शन कराया है,वह जब मात्र नौ साल के थे तभी से उनका मुनि बनने के संस्कार थे, एक छोटी सी पिच्छी लेकर अपनी मां से कहा करते थे कि में तो मुनि बनूंगा।और यह संस्कार धीरे धीरे द्रण होते चले गये, 17 वर्ष की आयू में ग्रह त्याग कर 2 फरबरी 1980 में बृहमचर्य ब्रत धारण कर छुल्लक दीक्षा ली। तथा तात्कालीन निमित्त ज्ञानी संत आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से 9 दिसंवर 1983 को मुनि दीक्षा लेकर इस संसार को सीमित करने निकल पड़े। बक्ताओं ने सम्वोधित करते हुये कहा कि “संत आते है और चले जाते है,जब जब भी संतों के दर्शन का मौका मिले तो उसे गंबाना नहीं चाहिये, ऐसे ही दर्शन का सौभाग्य विदिशा बासिओं को भी दिसंवर 2013 में मिला था आचार्य विराग सागर जी महाराज 69 पिच्छिओं के साथ इन्दौर से विहार करते हुये विदिशा नगर में आऐ एवं 8 दिन का प्रवास मिला,इसके बाद पुन्हा उनका विदिशा आना ही न हुआ एवं जिस महाराष्ट्र प्रांत के औरंगाबाद में 9 दिसंवर सन्1983 में उनकी मुनि दीक्षा हुई थी उसी महाराष्ट्र के जालना जिले में औरंगाबाद की ओर विहार करते हुये 4 जुलाई2024 को अंतिम संल्लेखना समाधि हुई 41 वर्ष संयम के इस काल में उन्होंने आचार्य विशुद्ध सागर, आचार्य विनम्र सागर,आचार्य विभव सागर,जैसे नौ आचार्य बनाये एवं 427 दीक्षाऐं प्रदान कर 83 मुनि तथा 4 गणनी आर्यिका 69 आर्यिका 5 ऐलक एवं 25 क्षुल्लक 25 क्षुल्लिका शामिल है। आपके संघ सानिध्य में 3 युग प्रतिक्रमण होकर विशाल संत सम्मेलन हुये जिसमें जयपुर,झांसी तथा अंतिम 2023 का था जो कि उनके ग्रहग्राम पथरिया में हुआ था जिसकी चर्चा सर्वस्व हुई। वर्तमान में उन्होंने अपने अंतिम समय में ज्येष्ठ निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी महाराज को याद किया और ब्रहम्चारी भाईओं के सहयोग से मोवाईल के जरिये सम्वोधन पाया तथा अपना अंतिम समय निकट जानकर जाते जाते उन्होंने जिनधर्म की पताका को आगे अक्षुण्ण बड़ाते हुये आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज को अपना पद देकर इस संसार से विदा ली।

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