Home सागर मन का कार्य नहीं होने से व्यक्ति दुखी है मुनि श्री

मन का कार्य नहीं होने से व्यक्ति दुखी है मुनि श्री

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सागर(विश्व परिवार) | व्यक्ति सुखी होना चाहता है लेकिन सुखी हो नहीं पा रहा है मन में कई बातें और विचारों ऐसे आते हैं जो उसके मन के नहीं पाते हैं। मन हमारा होते हुए भी हमारा नहीं इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा, हमारा मन भटक जाता है और मन का कार्य नहीं होने से व्यक्ति आज दुखी है यह बात निर्यापक मुनिश्री सुधा सागर महाराज ने मोराजी में प्रवचन मे कहीं।
उन्होंने कहा कि पापियों का नाश करने के लिए भगवान या महापुरुष इस संसार में जन्म लेते है यह दुनिया के हर दार्शनिक के विचार हैं। जैन दर्शन में भगवान और गुरू पापियों का नाश करने के लिए नहीं, पुण्य आत्माओं का उद्धार करने के लिए जन्म लेते है। मुनि श्री ने कहा कि साधु अंधेरा हटाने के लिए नहीं बल्कि उजाले में रास्ता दिखाने के लिए तुम्हारे यहां आए हैं।उजाले में तुम्हें रास्ता दिखाने के लिए ही तुम्हारे नगर में आते है साधु अंधेरे में नहीं आते है।
उन्होंने कहा कि।अनंतानंत जीव हैं संसार में लेकिन मन सिर्फ हमें मिला है। हमें अपने कानों, मन, आंख पर बस नहीं है मुँह पर भी हमारा बस नहीं है। ऐसी विकट है हमारी जिंदगी, खुद की जिंदगी खुद को घातक बना यह सबसे बड़ा अशुभ है। मुनिश्री ने कहा कि अपराध से डरो तो जिंदगी सुखी रहेगी और अपराध के बाद डरोगे तुम भगौड़े माने जाओगे और जेल में होगे। दुख हर मानव की संपत्ति है। अच्छे दिन के बाद बुरा दिन कैसे आता है इसको सबसे पहले समझना है तुम मंदिर जाते है। बुरे दिन को अच्छा दिन मैं परिवर्तित करने के लिए सबसे ज्यादा दुनिया में खतरा जैनों को है क्योंकि तुम ऊंचाइयों पर हो।

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