गर्भ धारण करना किसी साधना से कम नहीं- भावलिंगी संत
कृष्णानगर दिल्ली(विश्व परिवार)। हमारी आत्मा परमात्मा कैसे बने, हम भगवान कैसे बने, जब यह जिज्ञासा अंतर में पैदा होती है तब समाधान की ओर लदम आगे बढ़ने लगते हैं। जीवन जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न होना चाहिये। जिज्ञासा हमारे जीवंत होने का प्रमाण है। जिज्ञासा के बिना समाधान की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लोक में सबसे बड़े जिज्ञासु तीर्थकर भगवान थे। वे अनंत जिज्ञासु थे तभी उन्होंने आत्मा के अनंत ज्ञान भी प्राप्त किया। आज उनके अनंत ज्ञान से सारा लोक समाधान प्राप्त कर रहा है। उक्त उद्गार परम पूज्य भावलिंगी संत राष्ट्रयोगी श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी मुनिराज ने श्री दिगम्बर जैन मंदिर कृष्णानगर में धर्म सभा को संबोधित करते हुये व्यक्त किये। आचार्य श्री ने कहा कि जब कोई माँ गर्भ धारण करती है तो वो गर्भकाल उस माँ का साधना काल होता है। जिसमणकार उस समय वह किसी साध्वी से कम नहीं होती। जिस प्रभार एक साध्वी अपनी साधना को लेकर प्रतिपल सचेत रहती है. उसी प्रकार वह गर्भणी माँ भी प्रतिपल अपने गर्भस्थ शिशु को लेकर सावधान रहती है। उस काल में माता के प्रत्येक क्रिया कलाप संस्कार बनकर उसगर्भस्थ शिशु पर प्रभाव डालते हैं। माँ जेरता आचरण करती है, माँ जैसा चिन्तन करती है, माँ जेसी क्रियायें भरती है उस गर्भस्थ शिशु का जीवन उसके अनुरूप संस्कारित होने लगता है। जो मातायें गर्भ धारण करती हैं उन्हें चाहिये उतने काल तक वह सात्विक, सहज भऔर सरल जीवन जिये । धर्म ध्यान के साथ अपना समय व्यतीत करें। प्रभु के भजन कीर्तन, उपासना पूजा में अधिक समय लगाये, महापुरुषों के जीवन चरित्रों को पढ़ें, और भावना करें ऐसे महान पुत्र पुत्रियाँ हमारे घर में जन्म ले; आपकी यह साधना निश्चित ही आपके घर में महान संतानों को जन्म देगी।
कृष्णानगर में आज से भक्तामर महिमा प1 भावलिंगी संते राष्ड्योगी श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में कृपणा नगर जैन मंदिर में श्री भक्तामर महिमा प्रशिक्षण शिविर का भव्य शुभारंभ आज से होगा। अतिशय कारी भक्तामर स्तोत्र के ऊपर प्रतिदिन भरेंगे भावलिंगी संत • अतिशय मांगलिक व्याख्या। इस शिविर को लेकर समस्त जरे समाज में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है।