नांदणी(विश्व परिवार)। जैन धर्म के अनुसार श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथजी का मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया जाता है। जो सम्मेद शिखरजी से मोक्ष गए हैं | इस दिन पूरे भारतवर्ष में 11 अगस्त 2024 को उनका निर्वाण दिवस मोक्ष कल्याणक के रूप में भगवान पार्श्वनाथ की विशेष पूजा-अर्चना, शांतिधारा कर,निर्वाण लाडू चढ़ाकर मनाया जायेगा।
नांदणी मठ में सुबह 8.30 बजे भगवान पार्श्वनाथ जी के रजत प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक होगा। और दोपहर 3.30 बजे आचार्य विशुद्ध सागर जी गुरुदेव का विशेष प्रवचन होगा।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज-
सम्यकदर्शन, ज्ञान और चारित्र ही मोक्षमार्ग है। ऐसी बात को बहुत सरल रुप से बताने वाले आचार्य भगवन्त प.पू. आध्यात्म योगी १०८ श्री विशुद्ध सागर जी महाराज यथा नाम तथा गुण रुप है। जैसा नाम है, वैसा ही आचरण है। आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज को तत्वो का इतना गहन चिन्तवन है कि जिनवाणी उनके कण्ठ मे विराजमान रहती है। आचार्य श्री के प्रवचन इतने सरल व स्यादवाद से भरे होते है कि हमारे अष्टमूल गुण तो क्या, अणुव्रत और महाव्रत तक लेने के भाव हो जाते है। इनके प्रवचन मे स्यादवाद व अनेकान्त रुपी शस्त्र से मिथ्यात्व का शमन तो सहज ही झलकता है।
प्रवचन सुनकर ऎसा लगता है कि हमारे ही बारे मे बात कही जा रही हो। आचार्य श्री के बारे मे जितना कहे कम है, हे गुरुवर, आचार्य भगवन्त नमोस्तु शासन को सदा जयवतं रखे। परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के बचपन से प्रारंभिक क्रियायें उनके भविष्य में वैराग्य की और बढ़ते क़दमों का संकेत दे रही थी।उनका विवरण निम्न प्रकार से है।
बचपन से ही जिनालय जाना:- महाराज श्री अल्पायु से अपने पिता जी श्री रामनारायण जी एवं माता जी श्रीमती रत्ती देवी एवं अपने अग्रजों के साथ प्रतिदिन श्री जिन मंदिर जी दर्शनों के लिये जाने लगे थे।
रात्रि भोजन एवं अभक्ष्य वस्तुओं का त्याग:- लला राजेंद्र (आचार्य श्री का बचपन का नाम)ने ७ वर्ष की अल्पायु में श्री जिनालय में रात्रि भोजन का त्याग एवं अभक्ष्य वस्तुओं के त्याग का नियम ले लिया था और उसका पालन भली प्रकार से किया ।
सप्त व्यसनों का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन:- लला राजेंद्र जब ८ वर्ष के थे तभी से उन्होंने सप्त व्यसन का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन करना प्रारंभ कर दिया था।
बिना देव दर्शन भोजन न करने का नियम:- लला राजेंद्र ने १३ वर्ष की अल्पायु में तीर्थराज श्री दिग. जैन सिद्ध क्षेत्र शिखर जी में बिना देव दर्शन के भोजन न करने का नियम ले लिया था । स्वत: ब्रहमचर्य व्रत अंगीकार :- अल्पायु में लला राजेंद्र ने अपने ग्राम रुर के जिनालय में भगवान् के समीप स्वयं ही ब्रहमचर्य व्रत ले लिया था|
अनेक तीर्थ क्षेत्रों की वंदना करने का सौभाग्य :- राजेंद्र लला ने अपने पिता जी माता जी एवं अनेक परिवार जनों के साथ बचपन से ही शिखर जी,सोनागिरी जी,एवं अनेक तीर्थ क्षेत्रों के दर्शन करने एवं वह विराजमान पूज्य महाराजों के दर्शन करना भी उनके वैराग्य का एक बिंदु है।