हैदराबाद(विश्व परिवार)। छोड़़ना है तो पूरा छोड़ो – भोजन हो या साथ..
दोनों चीजें आधी अधूरी छोड़ना अच्छे इन्सान की पहचान नहीं है..!
भोजन भाग्य से मिलता है, भाग्य और सौभाग्य से मिले भोजन को जूठा छोड़कर मत जाओ। क्योंकि भोजन परमात्मा का प्रसाद है, भक्त प्रभु के प्रसाद का कभी अपमान नहीं करता। जो भक्त प्रभु के भोजन का अपमान करता है, वह भक्त नहीं कम्बख्त है।
इसलिए जब भी प्रभु का प्रसाद ग्रहण करो, अपने विवेक से ग्रहण करो। ध्यान रखो – जीभ जो मांगती है वह मत दो,, पेट जो मांगता है वह दो। भोजन करना पुण्य है और जूठा छोड़ना पाप है। इसलिए भोजन को बर्बाद होने से बचायें, क्योंकि भोजन को आपकी मेज तक लाने में किसान ने पूरे साल कमर तोड़ मेहनत की है,, उसकी मेहनत का और पुण्य से मिले भोजन का अपमान ना करें।
बहुत बोलने और खाने से जीभ बिगड़ती है। सादा भोजन करने से स्वास्थ्य सुधरता है और कम भोजन करने से जीवन संवरता है। जीभ सुधरने से सम्बन्ध सुधरते हैं और आँख सुधरने से मन सुधरता है। जिसकी जीभ सुधर गई, समझो उसका जीवन सुधर गया।
सौ बात की एक बात – भोजन हो या साथ – यदि किसी को ज्यादा दे दो तो वह आधा अधूरा छोड़कर चला जाता है,, इसलिए जितनी जिसकी आवश्यकता हो उतना ही दें, जिससे दोनों का अपमान ना हो…!!!।